लखनऊ : भ्रष्ट आई.ए.एस. अधिकारियों के लिए यूपी एक अच्छी पनाहगाह हो सकती है क्योंकि जब लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा ने नियुक्ति विभाग में एक आरटीआई दायर कर यूपी में तैनात आई.ए.एस. अधिकारियों के भ्रष्टाचार से सम्बंधित जानकारी लेनी चाही है तो सूबे की समाजवादी पार्टी की सरकार ने संजय को कोई भी सूचना नहीं दी है. बेहद चौंकाने वाली बात यह है कि यूपी की अखिलेश सरकार ने इस मानवाधिकार कार्यकर्ता को इन अधिकारियों के भ्रष्टाचार से सम्बंधित वे सूचनाएं देने से भी इनकार कर दिया है जिन्हें केंद्र की मोदी सरकार ने सी.वी.सी. की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया हुआ है.
यह खबर यूपी में तैनात उन भ्रष्ट आई.ए.एस. अधिकारियों के लिए एक बड़ी राहत देने वाली खबर हो सकती है जो प्रदेश की सरकार की चाटुकारिता करने में निपुण हैं क्योंकि ये अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त होने पर भी यदि प्रदेश की सरकार के मनमाफिक काम करते रहते हैं तो उनके द्वारा किये गए भ्रष्टाचार का उनके कैरियर पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है. इन भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा यूपी में जमकर भ्रष्टाचार करने के बाद उनके भी उनके नाम तक सार्वजनिक होने की कोई भी सम्भावना नहीं हैं.
दरअसल लखनऊ के मानवाधिकार कार्यकर्ता और इंजीनियर संजय शर्मा ने बीते 12 मई को नियुक्ति विभाग में एक आरटीआई दायर कर उन अधिकारियों के नामों की सूचना माँगी थी जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की जांचे लंबित हैं. संजय ने उन अधिकारियों के नामों को भी जानना चाहा था जिनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति के मामले लंबित थे. संजय ने मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव आवास सदाकांत के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों में अभियोजन की स्वीकृति की वर्तमान प्रस्थिति के वारे में भी सूचना माँगी थी. संजय ने यह भी जानना चाहा था कि बिभिन्न जांचों में दोषी पाए गए आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए उत्तर प्रदेश में कौन-कौन से शासनादेश जारी किये गए हैं.
उत्तर प्रदेश शासन के नियुक्ति अनुभाग-5 के अनुभाग अधिकारी और जनसूचना अधिकारी राजेश प्रताप सिंह ने इस सम्बन्ध में संजय को बीते 07 जून को जो जबाब भेजा है वह बेहद चौंकाने वाला है. राजेश प्रताप सिंह द्वारा दी गयी सूचना के अनुसार वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवा के 2 अधिकारी प्रदीप शुक्ल और राजीव कुमार द्वितीय डीम्ड निलंबित हैं. राजेश प्रताप सिंह ने संजय को बताया है कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास उन अधिकारियों के नामों की कोई सूचना नहीं है जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार से सम्बंधित मामलों की जांचे लंबित हैं. राजेश प्रताप सिंह ने संजय को उन अधिकारियों के नामों की सूचना देने से भी मन कर दिया है जिनके खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति के मामले लंबित हैं. मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव आवास सदाकांत के विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामलों में अभियोजन की स्वीकृति की वर्तमान प्रस्थिति के वारे में भी संजय को कोई सूचना नहीं दी गयी है. बिभिन्न जांचों में दोषी पाए गए आईएएस अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी किये गए शासनादेशों के सबाल पर राजेश प्रताप सिंह ने कहा है कि ऐसा कोई भी शासनादेश सरकार के पास नहीं है.
इस पत्रकार से एक विशेष बातचीत में समाजसेवी संजय ने बताया कि उन्होंने यूपी के सन्दर्भ में आईएएस अधिकारियों के भ्रष्टाचार की वे ही सूचना माँगी थी जो केंद्र की सरकार ने सी.वी.सी. की वेबसाइट पर सार्वजनिक की हुईं हैं. ऐसे में सूबे की अकिलेश सरकार द्वारा ये सूचना सार्वजनिक न करने से यह स्वतः ही सिद्ध हो रहा है कि अखिलेश यादव का भ्रष्टाचार-विरोध महज दिखावा है और आज यूपी आईएएस अधिकारियों अधिकारियों की पनाहगाह बनता जा रहा है. बकौल संजय दागी आलोक रंजन को मुख्य सचिव, दागी सदाकांत शुक्ल को प्रमुख सचिव आवास और दागी जावेद उस्मानी को मुख्य सूचना आयुक्त का पद देने से यह स्वतः ही सिद्ध हो रहा है कि अखिलेश सरकार और ये भ्रष्ट अधिकारी साधक-सिद्धक बन अपना-अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. बकौल संजय सरकार इन भ्रष्ट अधिकारियों की कारगुजारियों की बजह से आमजन पर पड़ने वाले दूरगामी दुष्प्रभावों के वारे में कतई भी चिंतित नहीं दिख रही है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि IAS अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले अखिलेश यादव कुछ जरूरत से ज्यादा ‘मुलायम’ हैं.
लखनऊ से Urvashi Sharma की रिपोर्ट. संपर्क: upcpri@gmail.com