Connect with us

Hi, what are you looking for?

तेरा-मेरा कोना

मीडिया, संयम, राजनीति और अदालत

इन दिनों ‘मीडिया’ को संयम बरतने की हिदायतें खूब दी जा रही हैं। मीडिया को हद में रहने की सलाह देने वालों की कमी नहीं। मीडिया को प्रायोजित, नियोजित करने-होने की बातें भी हो रही हैं। मीडिया को नैतिकता की याद रखने की नसीहतें दी जा रही हैं। सीमा-रेखा और लक्ष्मण रेखा में अंतर का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इन सारी हिदायतों, सलाहों, नसीहतों और पाठ पढ़ाने का एकमात्र मकसद है मीडिया को दबाना। मीडिया पर काबू पाना। मीडिया को स्वार्थपूर्ति का अखाड़ा बनाना। मीडिया को खरीदने की हसरत पालना। अपनी हसरतों को अंजाम देने के लिए खुद मीडिया बन जाना-यही आज की राजनीति बन गई है। ‘राज’ करने की इच्छा रखने वाले वर्ग ने अपनी एकमात्र ‘नीति’ बना रखी है कि अपने राज-रसूख को कायम रखने के लिए आचोलना करने वाले हर मुंह को बंद किया जाए। ‘जय जयकार’ की आवाज बुलंद हो और ‘हाहाकार’ करने वालों की गर्दन दबोच ली जाए।

<p align="justify">इन दिनों 'मीडिया' को संयम बरतने की हिदायतें खूब दी जा रही हैं। मीडिया को हद में रहने की सलाह देने वालों की कमी नहीं। मीडिया को प्रायोजित, नियोजित करने-होने की बातें भी हो रही हैं। मीडिया को नैतिकता की याद रखने की नसीहतें दी जा रही हैं। सीमा-रेखा और लक्ष्मण रेखा में अंतर का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इन सारी हिदायतों, सलाहों, नसीहतों और पाठ पढ़ाने का एकमात्र मकसद है मीडिया को दबाना। मीडिया पर काबू पाना। मीडिया को स्वार्थपूर्ति का अखाड़ा बनाना। मीडिया को खरीदने की हसरत पालना। अपनी हसरतों को अंजाम देने के लिए खुद मीडिया बन जाना-यही आज की राजनीति बन गई है। 'राज' करने की इच्छा रखने वाले वर्ग ने अपनी एकमात्र 'नीति' बना रखी है कि अपने राज-रसूख को कायम रखने के लिए आचोलना करने वाले हर मुंह को बंद किया जाए। 'जय जयकार' की आवाज बुलंद हो और 'हाहाकार' करने वालों की गर्दन दबोच ली जाए। </p>

इन दिनों ‘मीडिया’ को संयम बरतने की हिदायतें खूब दी जा रही हैं। मीडिया को हद में रहने की सलाह देने वालों की कमी नहीं। मीडिया को प्रायोजित, नियोजित करने-होने की बातें भी हो रही हैं। मीडिया को नैतिकता की याद रखने की नसीहतें दी जा रही हैं। सीमा-रेखा और लक्ष्मण रेखा में अंतर का पाठ पढ़ाया जा रहा है। इन सारी हिदायतों, सलाहों, नसीहतों और पाठ पढ़ाने का एकमात्र मकसद है मीडिया को दबाना। मीडिया पर काबू पाना। मीडिया को स्वार्थपूर्ति का अखाड़ा बनाना। मीडिया को खरीदने की हसरत पालना। अपनी हसरतों को अंजाम देने के लिए खुद मीडिया बन जाना-यही आज की राजनीति बन गई है। ‘राज’ करने की इच्छा रखने वाले वर्ग ने अपनी एकमात्र ‘नीति’ बना रखी है कि अपने राज-रसूख को कायम रखने के लिए आचोलना करने वाले हर मुंह को बंद किया जाए। ‘जय जयकार’ की आवाज बुलंद हो और ‘हाहाकार’ करने वालों की गर्दन दबोच ली जाए।

‘राज’ करने वाले और राज करने की इच्छा पालने वाले यही कर रहे हैं। ‘राजनीति’ की यही परिभाषा बन गई है। इस नीति पर चल रहे लोग अपने-अपने ढंग से मीडिया का इस्तेमाल करते है। मीडिया को सीमा में रहने की नसीहत देते हैं। लक्ष्मण रेखा पार न करने की धमकी देते हैं। फिर भी संतोष नहीं होता तो खुद मीडिया बन जाते हैं। बाजारवाद के इस माहौल में एक और दूकान खुल जाती है। एक और अखबार निकल जाता है। एक और चैनल खुल जाता है।

गत 7 जनवरी को आंध्र प्रदेश में एक विशेष उद्योग पर गए शाम और देर रात तक भड़की हिंसा और हमलों के लिए ‘मीडिया’ को जिम्मेदार माना गया। सरकारी मशीनरी के आला कल- पुंजी ने अपने आका के इशारे पर एक टी.वी. चैनल के अलावा दो अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया। दूसरे पर छापा मार कर छोड़ दिया। कोई गिरफ्तारी नहीं। तीजे के दफ्तर मे सी.डी. और उपकरण जब्ती का समाचार मिला। चौथे को एस.एम.एस. भेजने के आरोप में पकड़ा गया। काम खतम, जांच शुरू।

देश के धर्म, जाति-गोत्र. मौत, बर्बादी सबकी जड़ में ‘राजनीति’ घुस गई है। पूरी तरह सामिष बन चुकी राजनीति को एकमात्र नीति रह गई है किसी तरह ‘राज’ या राज सत्ता पर अधिकार। फिर तो ‘राजसत्ता’ के अन्य छोटे-बड़े संयंत्र, चीफ सेक्रेटरी से लेकर थाने का हवलदार तक, उसके गुलाम बन जाते हैं। यह बॉस! आज ‘राजनीति’ करने वाला हर नेता और उसकी जी-हुजूरी में लगा ‘राजसत्ता’ का सारा संयंत्र, जो मन में उसके आ रहा है, वह कर रहा है। खूब मनमानी कर रहा है। जब ‘मीडिया’ उसे पकड़ती है तो कहता है, ‘मीडिया ने उसके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।’ ‘बदमाशी’ खुद कर रहे हैं और ‘सारी बदमाशी’ मीडिया की बताई जा रही है।

एक क्षेत्रीय चैनल में दिखाए जाने, या किसी शक को हवा देने की कोशिश से, अगर आंध्रप्रदेश के चुनिन्दा क्षेत्रों में, एक खास प्रतिष्ठान को चुनकर तोड़-फोड़ और आगजनी की घटनाएं हो सकती हैं तो देश की तमाम भाषाओं, राष्ट्रीय-क्षेत्रीय चैनलों पर बार-बार दिखाए जानेवाली एक शर्मनाक और उत्तेजक घटना से तो लोगों को मंत्रियों पर हमला कर देना चाहिए था। तमिलनाडु पुलिस में बगावत हो जानी चाहिए थी। ऐसा कुछ नहीं हुआ।

यह घटना भी 7 जनवरी की है। इसी दिन आंध्रप्रदेश के कुछ चुनिन्दा क्षेत्रों में एक खास उद्योग के खिलाफ हिंसक और तोड़फोड़जनक विरोध हुआ। दोष मीडिया को। आंध्र की इस घटना से पूर्व तमिलनाडु के तिरुनलवली में जो घटना राष्ट्रीय टेलिवीजन पर बार-बार दिखाई जा रही थी उसके अनुसार एक पुलिसवाला कटे पैर लेकर अपनी प्राण-रक्षा की गुहार कर रहा था। तड़प रहा था। सड़क के बीचोबीच तड़पते पुलिसवालों से कटकर तमिलनाडु के दो मंत्रियों का काफिला गुजर रहा था। यह दृश्य प्राइवेट और सरकारी चैनलों पर दिखाया गया। सभी भाषाओं में दिखाया गया। चैनलवाले चिल्ला-चिल्लाकर मंत्रियों को बेशर्म, कर्त्तव्यहीन, अपराधी, बेरहम और नेता के नाम पर कलंक बता रहे थे। किसी ने किसी पर हमला नहीं किया। पुलिसवाले की इस दुर्दशा पर किसी पुलिसवाले का खून नहीं खौला। कोई इस्तीफा नहीं हुआ। कोई हड़ताल या बगावत नहीं हुई।

आंध्रप्रदेश की ‘राजनीति’ और उसके संयंत्रों द्वारा ‘मीडिया’ पर हिंसा फैलाने के आरोप में चैनल प्रमुख की गिरफ्तारी के बाद दूसरा बड़ा आरोप 9 जनवरी को लगा। आस्ट्रेलिया में एक भारतीय युवक को जलाकर मान डालने की घटना पर देश के विदेश मंत्रालय ने मीडिया को संयम बरतने की सलाह दे डाली। विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि, ‘अगर मीडिया ने संयम नहीं बरता तो इससे आस्ट्रेलिया के साथ रिश्तों पर असर पड़ सकता है।’ सच तो यह है कि ‘मीडिया’ इस मामले में कुछ कर भी नहीं रहा है। मीडिया तो अपने अधिकार समय में वही कर रहा है जो जनता चाह रही है। जनता अगर ताली बजा रही है तो मीडिया भी ताली बजा रही है। यकीन न हो तो याद कीजिए आस्ट्रेलिया क्रिकेट टीम के हाल के गुजरे चंद महीने पहले दौर को। आस्ट्रेलिया की क्रिकेट-टीम जिस वक्त हमारे देश में क्रिकेट खेल रही थी और हम, उसके-अपने चौकों-छक्कों पर तालियां पीट रहे थे। मीडिया भी यही कर रही थी। अस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के दौरे से पूर्व भी वहां भारतीयों पर हमला हो चुका था। यहां कहीं विरोध नहीं था।

सरकार राजनेता और देश के आला अफसर खुद, नैतिकता, जिम्मेदारी और समझदारी, तीनों की धज्जियां उड़ा रहे हैं और ‘मीडिया’ को संयम बरतने की सलाह दे रहे हैं। मंत्री-अफसर खुद गैर-जिम्मेदाराना बयान दे रहे हैं और मीडिया पर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने का आरोप मढ़ रहे हैं। मंत्री और अफसर दोनों तबका ‘बात फरोशी’ कर रहा है। किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले ‘निर्णय’ सुना रहा है। देश के गृह मंत्रालय के मुख्य सचिव श्री पिल्लई यह बयान देते हैं कि ‘तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद ही होगी’ जब विरोधियां का हंगामा होता है तो बयान देते हैं कि मीडिया ने उसके बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है। मीडिया उन्हें बोलते दिखा रहा है, फिर भी वे कह रहे हैं कि नहीं कहा। विदेश राज्य मंत्री, शशि थरूर, भले ही सच बात कह जाते हों, लेकिन जब ‘हंगामा’ मचता है तो दोष मीडिया को देकर बचने की कोशिश करते हैं। चीन ने देश की हजारों वर्ग मीटर जमीन फिर हथिया ली (पहले 1962 में हमला कर एक बड़े भू-भाग पर वह कब्जा जमा चुका है।) है। अगर मीडिया इस मामले को उछालता है तो उस पर ‘सनसनी’ फैलाने का आरोप लगाया जाता है।

हां, ‘सनसनी’ फैलाता है मीडिया। लेकिन प्रिंट और वीजुअल मीडिया के सारे लोग सनसनी नहीं फैलाते हैं। सभी चैनलों पर दुनिया में प्रलय आता नहीं दिखाया जाता है। कई चैनल तो विज्ञान के इस युग में जनता में अंधविश्वास की रेवड़ियां बांट रहे हैं। एक-दो चैनल तो इतना हंगामा दिन-रात मचा रहे हैं कि दुनिया खत्म होने वाली है। समुद्र का पानी बहुत जल्द खौलने लगेगा। हिमालय अब गिरनेवाला है। ‘सनसनी’ फैलाना इसे कहते हैं। इस पर अंकुश लगाने की बजाए नेता और सरकार द्वारा उन समाचार पत्रों और समाचार चैनलों पर अंकुश की मंशा से ‘फिजा’ तैयार की जा रही है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सरकार और सरकारी संयंत्रों के अतिरिक्त ‘मीडिया’ में ही एक वर्ग ऐसा है जो ‘मीडिया’ को ‘संयम’ और जिम्मेदार बरतने की सलाह दे रहा है। ‘ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एसोसिएशन’ (बीईए) ने आंध्रप्रदेश में, 7 जनवरी को कुछ क्षेत्रों में घटी हिंसक और तोड़फोड़ की घटनाओं को लेकर, दक्षिण के कुछ भाषाई चैनलों को ‘संयम’ बरतने की सलाह दे डाली। बी.ई.ए. द्वारा जारी इस नसीहतनुमा बयान का कोई महत्व है ही नहीं। क्योंकि 7 जनवरी का वह कथित क्षणिक आंदोलन ‘मीडिया’ को उपज था ही नहीं। वह तोड़फोड़ तो एक प्रायोजित कार्यक्रम था। जो संपन्न हो चुका। यहां पूर्व मुख्यमंत्री एन.चंद्रबाबू नायुडू का यह वक्तव्य उल्लेखनीय होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि यह ‘तोड़फोड़’ किसी को हटाने, किसी को तंग-परेशान करने के लिए कराया गया है। एस.एम.एस. भेजकर ‘दंगा’ भड़काने के आरोप में एक शख्स को गिरफ्तार गिया गया है। एस.एम.एस. भेजकर अगर दंगा भड़क सकता है तो चंद्रबाबू नायुडू आज मुख्यमंत्री होते। क्योंकि पिछले चुनाव में उन्होंने खूब एस.एम.एस. भेजकर वोट वोट देने की अपील की थी।

‘मीडिया’ अगर आंदोलन पैदा कर सकता या तोड़फोड़ मचवाने की औकात रखता तो 3 जनवरी को छात्रों द्वारा ‘महागर्जना’ रैली शांतिपूर्ण न गुजर जाती। तेलंगाना राज्य के गठन की मांग से लबरेज और कुछ भी कर गुजरने की तमन्ना से ओतप्रोत युवा-छात्रों की भीड़ ने एक पत्थर का भी इस्तेमाल नहीं किया। छात्रों को इसके लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए।

शासन और सरकार द्वारा प्रतिबंधित छात्रों की इस ‘महागर्जना रैली’ की इजाजत आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट ने दी थी। आंध्रप्रदेश उच्च न्यायालय ने एक ‘रिस्क’ लेकर, कुछ शर्तों के साथ इस ‘महागर्जना रैली’ की इजाजत दी थी। हाईकोर्ट के आदेशात्मक स्वर का साफ संकेत था कि सारी गड़बड़ राजनेता या नेता करते हैं। हैदराबाद में आयोजित तेलंगाना बनने के समर्थन में होने वाली महागर्जना रैली में राजनीतिक दल के किसी नुमाइंदे की शिरकत पर हाईकोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया। एक तिनका भी नहीं हिला। इसके लिए हाईकोर्ट और छात्र दोनों का शुक्रिया अदा किया जाना चाहिए। लेकिन वही 4 और 5 जनवरी को समेक्य आंध्र के समर्थन में जो आंदोलन हुए, तोड़फोड़, रेल रोको आदि की जो घटनाएं हुईं, टी.वी. चैनलों ने उसका भरपूर प्रसारण किया। तेलांगाना क्षेत्र में शांति रही। पत्ता भी नहीं खड़का।

जैसा कि हमने इसके पूर्व ही निवेदन किया है कि बाजारवाद के इस जमाने में ‘मीडिया’ भी एक ‘दूकानदारी’ बन चुका है। नेता, ठेकेदार, उद्योगपति, पूंजीपति सबकी भागीदारी मीडिया में हो चुकी है। सभी लोग ‘दूकानदार’ बन गए हैं। सपने बेच रहे हैं। साबुन बेच रहे हैं। ब्रेकिंग न्यूज में ‘डरा’ रहे हैं। सामाजिक और मनोरंजक चैनलों में हास्य के नाम पर अश्लील फब्तियां परोसी जा रही हैं। समाज के षड़यंत्र, डाह, शक, बलात्कार, दूसरी औरत का कांसेप्ट बताया जा रहा है। शब्दों के खेल खेले जा रहे हैं। एक दृष्य को बार-बार दिखाकर दिमाग में एक ही चीज को घुसाया जा रहा है। अनर्गल बयानबाजी, नेताओं के हास्यास्पद बयान, बलात्कार की कहानी, प्रेम का चक्कर, लूट, हत्या, डकैती के समाचारों से भरपूर रहते हैं, न्यूज चैनल। सबकी डफली और अलग-अलग राग। ऐसी स्थिति में मीडिया पर तोड़फोड़ के लिए भड़काने का आरोप। पत्रकारों की गिरफ्तारी आदि कर्म कोई सत्कर्म नहीं है।

मीडिया पर अंकुश लगाने की मंशा सरकार की भी होती है और सरकार के कारिन्दों की भी। नेता की मंशा तो यह रहती है कि मीडिया केवल उनका ही गुणगान करे। कोई भी संस्था या प्रतिष्ठान, ‘मीडिया’ को अपने हितों के खिलाफ जाता नहीं देखना चाहता। जाहिर है, सभी लोग-तत्व या तो ‘मीडिया’ को दोष देंगे और खुद ‘मीडिया’ बन जाएंगे। कानूनन कोई रोक नहीं है। थोक के भाव से चैनल खोलने के लाइसेंस जारी किए जा रहे हैं। हर चैनल अलग-अलग तरह की अराजकता फैलाने में तल्लीन है।

अतः यह कहना कि ‘मीडिया’ किसी तोड़फोड़ के लिए जिम्मेदार है, सर्वथा सही नहीं है। ‘मीडिया’ में अगर ‘ताकत’ होती तो रुचिका मामले में सजायाफ्ता हरियाणा के पूर्व पुलिस महानिदेशक शंभू प्रसाद सिंह राठौड़ आजकल जेल में होते। लेकिन ‘मीडिया’ के लाख चिल्लाने के बावजूद छेड़खानी के आरोप में अदालत से छह माह की सजा पाए, राठौड़ साहब मुस्करा रहे हैं और मीडिया को अपनी मुस्कुराहट का राज बता रहे हैं। दर्शकों में ‘जुगुप्सा’ पैदा कर रहे है। संस्कृत और उस चैनल के प्रति उपजती है जो ऐसी परिस्थितियां पैदा होने देने के लिए जिम्मेदार हैं। इससे बेहतर, और लाख गुना बेहतर हैं, देश की प्रिंट मीडिया। देश के विभिन्न टेलिवीजन चैनलों ने मिल जुल कर समाज में सामाजिक अराजकता पैदा कर रखी है। एक ही घटना, एक ही मुद्दे को बार-बार दिखाकर ‘बौद्धिक-वैचारिक अराजकता’ मचा रखी है। आर्थिक, भावनात्मक और तथ्यात्मक तीनों प्रकार से देश की ‘इलेक्ट्रॉनिक मीडिया’ ने अराजक माहौल पैदा किया है। मीडिया के इस अराजक माहौल पर ‘लगाम’ लगाने की जरूरत है। पाबंदी या पत्रकारों की गिरफ्तारी हास्यास्पद है। और लगाम लगाने की ‘दशा-दिशा’ का संकेत भी आंध्रप्रदेश के हाईकोर्ट ने दे दिया है।

2 जनवरी को हाईकोर्ट द्वारा छात्र संगठनों को, हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय में, ‘महागर्जना रैली’ करने की इजाजत दिए जाने की शर्तों को इस आलोक में देखा जा सकता है। इस इजाजत की एक प्रमुख और दिलचस्प शर्त यह थी कि इस ‘महागर्जना रैली’ में कोई ‘नेता’ भाग नहीं लेगा। फिर दस जनवरी को एक लोकहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गोपालकृष्णा तामाडा ने जो टिप्पणियां कीं और जो आदेश पारित किये वह रेखांकन के योग्य हैं। न्यायमूर्ति ने कहा कि ‘ये चैनल जो कुछ दिखा रहे हैं, उनमें सिवाय सनसनी पैदा कर दर्शक संख्या बढ़ाने और विभिन्न समुदायों के बीच सौमनस्य को तोड़ने वाले कार्यों के और कुछ नहीं है। अदालत की नजर में, भारतीय भाषाओं के समाचार चैनल अपनी सीमा का अतिक्रमण करने में लगे है।’ सरकार और पत्रकार-संपादकों की संख्या ‘ब्रॉडकास्ट एडीटर्स एसोसिएशन’ को इस ओर ध्यान देकर लक्ष्मण रेखा खींचनी चाहिए।

लेखक भरत सागर वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे इन दिनों हैदराबाद में रहते हुए स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

मेरी भी सुनो

अपनी बातें दूसरों तक पहुंचाने के लिए पहले रेडियो, अखबार और टीवी एक बड़ा माध्यम था। फिर इंटरनेट आया और धीरे-धीरे उसने जबर्दस्त लोकप्रियता...

साहित्य जगत

पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार...

मेरी भी सुनो

सीमा पर तैनात बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव ने घटिया खाने और असुविधाओं का मुद्दा तो उठाया ही, मीडिया की अकर्मण्यता पर भी निशाना...

समाज-सरोकार

रूपेश कुमार सिंहस्वतंत्र पत्रकार झारखंड के बोकारो जिला स्थित बोकारो इस्पात संयंत्र भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का इस्पात संयंत्र है। यह संयंत्र भारत के...

Advertisement