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बुश और ब्लेयर के झूठ का एजेंट था पश्चिमी मीडिया

[caption id="attachment_2202" align="alignleft"]शेष नारायण सिंहशेष नारायण सिंह[/caption]जब अमरीका ने इराक पर हमला किया था तो उसकी दुम की तरह एक और प्रधानमंत्री उसके पीछे पीछे लगा हुआ था. वह अमरीकी राष्ट्रपति बुश की हर बात पर हाँ में हाँ मिला रहा था. उस वक़्त के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर इतनी शेखी में थे कि लगता था कि वे दुनिया बदल देंगे,  इराक के सद्दाम हुसैन को हटाकर इंसानियत को तबाही से बचा लेंगें. झूठ के सहारे मीडिया में ऐसी ऐसी ख़बरें छपवा दी थीं कि लगता  था कि अगर सद्दाम हुसैन को ख़त्म न किया गया तो दुनिया पर पता नहीं क्या दुर्दिन आ जाएगा.  उन्होंने अपने लोगों और पूरी दुनिया को बता रखा था कि इराक के पास सामूहिक संहार के हथियार थे और अगर इराक को फ़ौरन तबाह न किया गया तो सद्दाम हुसैन  ४५ मिनट के अन्दर ब्रिटेन पर हमला कर सकते हैं.

शेष नारायण सिंह

शेष नारायण सिंहजब अमरीका ने इराक पर हमला किया था तो उसकी दुम की तरह एक और प्रधानमंत्री उसके पीछे पीछे लगा हुआ था. वह अमरीकी राष्ट्रपति बुश की हर बात पर हाँ में हाँ मिला रहा था. उस वक़्त के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर इतनी शेखी में थे कि लगता था कि वे दुनिया बदल देंगे,  इराक के सद्दाम हुसैन को हटाकर इंसानियत को तबाही से बचा लेंगें. झूठ के सहारे मीडिया में ऐसी ऐसी ख़बरें छपवा दी थीं कि लगता  था कि अगर सद्दाम हुसैन को ख़त्म न किया गया तो दुनिया पर पता नहीं क्या दुर्दिन आ जाएगा.  उन्होंने अपने लोगों और पूरी दुनिया को बता रखा था कि इराक के पास सामूहिक संहार के हथियार थे और अगर इराक को फ़ौरन तबाह न किया गया तो सद्दाम हुसैन  ४५ मिनट के अन्दर ब्रिटेन पर हमला कर सकते हैं.

इस सारे गड़बड़झाले में ब्रिटिश और अमरीकी मीडिया की भूमिका भी कम नहीं है क्योंकि उसने भी ब्लेयर और बुश के राग झूठ को अपना स्थायी भाव बना लिया था. इराक के मामले की जांच कर रही चिल्कोट इन्क्वायरी ने जांच करके पता लगाया है कि यह ४५ मिनट वाला शिगूफा किसी गंभीर इंटेलिजेंस का नतीजा नहीं था, वह तो पश्चिमी देशों के आला अधिकारियों ने एक टैक्सी ड्राईवर की बात पर विश्वास करके अपनी रिपोर्ट में लिख दिया था. हुआ यह था कि बग़दाद के एक टैक्सी वाले ने अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे दो फौजी अफसरों को आपस में गप्प मारते सुना था और उसने ब्रिटेन के इन इंटेलिजेंस अफसरों को यह जानकारी दे दी थी. इस तथाकथित जानकारी पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को इतना भरोसा था कि जब संयुक्त राष्ट्र सहित बाकी सभी विश्वसनीय संस्थाओं ने अपनी रिपोर्टों में यह लिख दिया कि इराक के पास सामूहिक संहार के हथियार  नहीं हैं तो टोनी ब्लेयर और उनके आका, जार्ज डब्ल्यू बुश ने विश्वास नहीं किया.

अपनी इस बेवकूफी की वजह से टोनी ब्लेयर को ब्रिटेन में कहीं भी मुंह छुपाने के लिये जगह  नहीं बची है. उनसे ब्रिटेन की जनता जवाब मांग रही है, ब्रिटिश संसद को भी उन्होंने गुमराह किया, वहां भी उनसे  जवाब माँगा जा सकता है और आपराधिक मामलों की अंतर राष्ट्रीय कोर्ट  में भी उन्हें जवाब देना पड़ सकता है लेकिन ब्रिटेन के इस पूर्व प्रधान मंत्री  की हिम्मत इन मंचों पर अपने झूठ का बचाव करने की नहीं पड़ रही है. उन्होंने अपनी बात कहने के लिए बीबीसी वन के एक धार्मिक प्रोग्राम को चुना और वहां कहा कि अगर सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक संहार के हाथियार न भी होते तो भी उन्होंने मन बना लिया था और इराक पर हमला ज़रूर करते.

टोनी ब्लेयर ने कहा कि उस हालत में वे किसी और बहाने से इराक पर हमला करते लेकिन सद्दाम हुसैन को ख़त्म कर देने का मन बन चुका था तो वे उसमें कोई भी  अड़चन नहीं आने देना चाहते थे. टोनी ब्लेयर ने दावा किया कि उनकी योजना इस्लाम के अन्दर दुनिया भर में चल रहे तथाकथित संघर्ष को दुरुस्त करने की थी. ज़िंदगी की बाज़ी हार चुके एक अपमानित दम्भी राजनेता के अहंकार की कोई सीमा नहीं होती. अपने ही लोगों से ठुकरा दिया गया एक पराजित नेता जब अपने आप को इस्लाम जैसे महान धर्म को दुरुस्त करने के काबिल पाने लगे तो उसके दिमागी तनाजुन के बारे में शक होना स्वाभाविक है. टोनी ब्लेयर की इस्लाम के बारे में जानकारी का दावा सौ फीसदी बकवास है लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं कि उन्हें और जार्ज बुश को अमरीकी और ब्रिटिश अफसरों ने चेतावनी दे दी थी कि इराक के पास सामूहिक नरसंहार के हथियार नहीं थे.

ब्लेयर और बुश को २००१ में ही पता चल गया था कि इराक के पास कोई भी परमाणु हथियार नहीं है.  संयुक्त राष्ट्र के हथियार निरीक्षकों ने भी साफ़ बता दिया था कि इराक के पास १९९८ के बाद से कोई भी परमाणु  हथियार नहीं था और न ही इसके पास ऐसे हथियार बनाने की क्षमता थी. बुश सीनियर के इराक हमले के बाद से ही इराक लगातार कमज़ोर हो रहा था, उस पर आर्थिक  पाबंदी लगी हुई थी,उसकी अर्थव्यवस्था  तबाह हो चुकी थी और उसके पड़ोसी देशों तक को विश्वास था कि इराक के पास सामूहिक नरसंहार के कोई हथियार नहीं थे और उन्हें सद्दाम हुसैन से कोई भी खतरा नहीं था..ब्रिटेन के सरकारी अफसरों ने भी   लिख कर दे दिया था कि संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बिना अगर कोई हमला किया गया तो वह गैर कानूनी होगा और अपने पक्ष का बचाव कर पाना बहुत ही मुश्किल होगा..लेकिन अपनी जिद और अपने आका, जार्ज बुश की इच्छा को पूरा  करने के लिए ब्रिटेन का प्रधान मंत्री किस हद तक जा सकता था इसका अंदाज़ लगा पाना बहुत  ही मुश्किल है.

ब्लेयर ने अपनी सरकार के अटार्नी जनरल, लार्ड गोल्डस्मिथ को आदेश दे दिया कि अंतरराष्ट्रीय कानून की ऐसी व्याख्या कर दें जिनकी बिना पर हमले में भाग लेने वाली ब्रिटिश फौज को आपराधिक आरोपों से बचाया जा सके. अब जब सारी दुनिया को पता है कि इराक पर हमला न केवल गैर कानूनी था बल्कि गलत कारणों के आधार पर किया गया था,  इस बात की एक बार समीक्षा करने की ज़रुरत है कि इंसानियत के खिलाफ इस हमले के जिम्मेवार कौन लोग हैं. इराक पर हुए ब्लेयर और बुश के हमले की वजह से कम से कम १० लाख लोगों की जाने गयी हैं और पश्चिमी देशों के प्रति पूरी दुनिया में जो नाराज़गी है, उसका भी हिसाब माँगा जाना चाहिए.

उस हमले के बाद दुनिया भर में अस्थिरता का  माहौल बन गया है इसलिए इस हमले के बारे में फैसला लेने वालों को  सद्दाम हुसैन के बाद की दुनिया की राजनीतिक  हालात के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए और उन्हें  युद्ध अपराधी मान कर उनके ऊपर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए.. इस सारे गड़बड़ झाले में ब्रिटिश मीडिया की भूमिका भी कम नहीं है क्योंकि उसने भे एब्लेयर और बुश के राग झूठ को अपना स्थायी भाव बना लिया था.

लेखक शेष नारायण सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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