बदतर प्रदेश के सेक्रेटरी मित्तल साहब ने ऐसी मेहरबानी दिखाई कि कुम्भ मीडिया सेंटर में तमाम हेर-फेर और घपलों घोटालों के बावजूद परमातमम ग्रुप को पेमेंट का चेक मिल चुका था। श्रेय किसे मिलना चाहिए, इस बात को लेकर होड़ लगी हुई थी।
गजगोबर सिंह घूम-घूम कर चारों तरफ गाता घूम रहा था, घूमते-घूमते वो टेक्निकल हेड पीदक सेन जी के क्यूबिकल में पहुंचा और बोला- ‘टच वुड भगवान जी कृपा है… हनुमान की कृपा है चेक मिल गया… अब कोई साला रिट लगाए या आरटीआई डाले, हमें जो काम करना था वो पूरा हो गया… आज की डेट में तो हम गारनटी के साथ कह सकते हैं … अभी दो चार महीने अपनी नौकरी पक्की…. बाकी बाद में देखा जाएगा…”
पीदकसेन जी बोले– ”अर्रे सर झण्डेवालान में तो चर्चा हैं कि सीईओ साहब नखलऊ न गए होते चेक ही न मिलता। चेक हासिल करने लिए उन्हें ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ गया वो न होते तो चेक की जगह लेने के देने पड़ जाते, वित्तल साहब को खुश करने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़े हैं सीईओ साहब को तब कहीं जा कर चेक मिला ...”
इतना सुनते ही गजगोबर सिंह उबल पड़ा– साले सबके सब बकवास करते हैं पीदकसेन जी, किसी की हिम्मत है वित्तल साहब से बात करने की, सेक्शन अफसर से बात करने में तो पीछे से हवा निकल जाती है। आपके सीईओ कह रहे थे चलो गजगोबर वित्तल जी से बात कर लो, मैंने कहा- मैं नहीं जाऊंगा कहीं। मैं फोन किए देता हूं आप ही मिल लीजिए। जैसे वो निकले मैंने वित्तल साहब से कहा- देखिए भाई साहब कम्पनी का मामला है इसलिए हम तो कुछ कह नहीं सकते, बड़ी अंग्रेजी बक रहे थे हमारे सीईओ साहब आपके लिए और अखिलेश जी के बारे में। अभी जब आपके पास पहुंचें तो जरा कायदे से निपटा दीजिएगा। जैसे ही सीईओ पहुंचे उसने ऐसा लताड़ा की पैंट में ही पेशाब निकल गई। पसीना पोंछते हुए बाहर निकले। सारा स्टाफ हंस रहा था। मेरे पास पल-पल की खबर आ रही थी। कब ड्रॉफ्टिंग हुई कब रिपोर्ट लगी, कितने बजे चेक बना, कब साईन हुआ…और पीदक जी, जब चेक लिफाफे में डाला गया तब उस पर मेरा नाम लिखा गया, ”मिस्टर गजगोबर सिंह, चैनल हेड, यूपी-उत्तराखंड, चापना न्यूज… उसके बाद फिर हमारे पास मैसेज आया कि सर चेक ले जाइए। मैं वहां पहुंचा ही था कि एक बाबू ने आपके सीईओ से मजा लेने के लिए बोल दिया कि सर चेक बन गया है, जैसे सेक्शन अफसर पास पहुंचे और चेक मांगा तो मालूम है सेक्शन अफसर ने क्या कहा, उसने पूछा- आप कौन? इनका जबाव था- भाई मैं सीईओ परमातम ग्रुप, फिर उसने कहा- चेक तो चैनल हेड गजगोबर सिंह को ही मिलेगा, उन्हीं के नाम की डाक बनी है। सीईओ फिर भी खड़े होकर अपनी बेइज्जती करवा रहे हैं और कह रहे हैं कि मैं उनका सीनियर हूं, सीईओ हूं, सीईओ परमातम ग्रुप का… आप समझते नहीं हैं। इस पर तो वो सेक्शन अफसर इन पर चढ़ बैठा, बोला सीनियर होंगे आप परमातम ग्रुप के, बदतर प्रदेश के सीनियर नहीं हैं…आप सीधे-सीधे बाहर जाते हैं या सर को शिकायत करूं।
अच्छा, मेरे पास खबर आ ही गई थी कि चेक बन गया है। मैं पहुंच ही गय़ा था। मजा आ रहा था, चुपचाप खडा़ पीछे से देख रहा था। जब आपके सीईओ सेक्शन अफसर की डांट-डपट से घायल होकर वापस मुड़े तो मैं तुरंत सामने आया…और बोला सर चेक ले लिया क्या… वो बोले- कहां ले लिया यार गजगोबर सिंह जी, ये तो बिना बात ही भड़क रहे हैं… तब मैंने कहा- कोई बात नहीं सर मैं ले लेता हूं। इन बाबुओं के मुंह क्या लगना, आप चलिए। समझे पीदक जी, ऐसे मिला था चैक..तूतिये साले हमें खोदना सिखाने चले थे। हमारे मालिक भी तो ना पीदक जी तूतिये हैं। कुछ भी समझना ही नहीं चाहते।
बातें करते-करते पीदकसेन और गजगोबर सिंह ऑफिस के बाहर तक आ गए थे। पीदकसेन ने सिगरेट सुलगाई और एक लम्बा कश लिया। पीदकसेन को मलाल इस बात का था कि वीडिया सेंटर की टेक्नीकल विड उसी ने तैयार की थी। टेंडर फायनल होने से पहले उसी ने अपने कम्पटीटर्स और अफसरों के तर्कों को झेला-जबाव दिया था… और वो खुद आज वीडिया सेंटर के श्रेय से कोसों दूर है। बहरहाल पीदक अपनी टीस को ज्यादा देर दबा कर नहीं रख सका। कुछ ही देर बाद उसने अपने सभी दूरसंचार संयत्रों का उपयोग किया। खबर जंगल में आग की तरह चारों ओर फैल गई कि सीईओ तो फुद्दू बना गए। चेक तो गजगोबर सिंह ने ही हासिल किया है।
भाण्ड को सब कुछ बर्दाश्त है बस अपनी बेइज्जती बर्दाश्त नहीं है। भाण्ड मुंह से कुछ नहीं कहता लेकिन चाल ऐसी चलता है अच्छा-अच्छा पानी मांग जाए। भाण्ड के सामने सबसे पहले यह सवाल था कि गजगोबर सिंह के दावे को झूठा कैसे साबित किया जाए। भाण्ड ने आनन-फानन में लौंडा मालिक को पाठ सिखाया कि हमें अपने स्टाफ के सामने वीडिया सेंटर की सफलता के किस्से गढ़ने चाहिए और वीडिया सेंटर गए सभी स्टाफ को ईनाम दिया जाना चाहिए। गजगोबर सिंह को लगा कि भाण्ड की चाल सफल हो गई तो उसका दावा झूठा माना जाएगा और स्टाफ में मैसेज यह जाएगा कि चेक सीईओ ही लाए हैं।
गजगोबर सिंह ने लौंडा मालिक की जगह पापा मालिक को सलाह दी कि ईनाम-वीनाम से गलत मैसेज जाएगा क्योंकि मीडिया सेंटर में चुन-चुन कर ऐसे लोगों की ड्यूटी लगाई गई थी जिनकी विदाई कुम्भ के साथ ही हो जानी थी। गजगोबर सिंह ने लाख समझाया पर पापा मालिक भी नहीं पसीजे और गजगोबर सिंह की मौजूदगी में लौंडा मालिक और भाण्ड ने वीडिया सेंटर का सारा श्रेय खुद लूटा और ईनाम कर्मचारियों में बांट दिया। यहां भी गजगोबर सिंह के हिस्से में ठेंगा ही आया और पीदक के हिस्से में कुल अढाई हजार टका। गौर करने वाली बात यह भी है कि भाण्ड ने इस मौके पर अपने चिरप्रतिद्वंदी विनोद जी को भी ऐसी पटखनी दी कि वो चारों खाने चित दिखाई दिए।
मीडिया सेंटर भेजे जाने वाले लोगों की लिस्ट बनाने का जिम्मा विनोद जी को ही दिया गया था। स्पष्ट निर्देश थे कि लिस्ट में उन्हीं लोगों को शामिल किया जाए जिनकी छंटनी करनी है। लिहाजा विनोद जी ने सभी हेड्स को गोपनीय रूप से बुलाया और अपेक्षाकृत कम उपयोगी कर्मचारियों के नाम लिए और लिस्ट बना दी। वीडिया सेंटर में काम करने वाले 75 लोगों में से चालीस चांपना न्यूज से थे। यानी उन सभी चालीस की छुट्टी तय थी। कुम्भ की समाप्ति से पहले कुछ लोगों को इशारतन बता भी दिया गया था कि कोई दूसरा घर ढूंढ लें, लेकिन सभी को लौंडा मालिक के हाथों ईनाम दिलवाकर भाण्ड ने गजगोबर सिंह के हाथ से बाजी छीन ही ली साथ ही स्टाफ को यह संदेश दे दिया कि छंटनी करवाने वाले एसएन विनोद थे और बचाने वाला सीईओ।
सच्चाई यह है कि चांपना से कर्मचारियों को वीडिया सेंटर में परमातम का कर्मचारी बनाकर भेजने की चाल सीईओ भाण्ड की ही थी। कुम्भ के साथ ही परमातम एपीएल भी खत्म हो जानी थी। …और जब परमातम एपीएल ही नहीं तो फिर उसके कर्मचारियों को तो स्वतः बर्खास्तगी में जाना ही था। खैर चेक हासिल करने का श्रेय लूटने की जंग को यह श्रेय जरूर जाता है कि उन चालीस में से लगभग सभी अपनी-अपनी जगह काम कर रहे हैं। एक-दो ही थे जो खुद ही चले गये। बेचारा गजगोबर सिंह और विनोद जी कसमसाकर रह गए लेकिन भाण्ड का कुछ भी टेढ़ा नहीं कर पाए।
चर्चा यह चली कि चांपना के कर्मचारियों को ईनाम मिला है और ये खबर कहीं और नहीं तो कम से कम भड़ास पर तो छपनी ही चाहिए। गजगोबर सिंह को लगा कि अब फिर उसी को घेरा जाएगा। बोला- सर वो यशवंत नम्बर एक का हरामी है…साला कुत्ता है, टुकडा़ डालते रहो तो पूछ भी हिलाता रहेगा और छापता भी रहेगा…टुकड़ा डालना बंद कर दो तो काटने को दौड़ता है। गजगोबर फिर आगे बोला- मैंने सर कई बार कहा है कि उसका महीना बांध दो, इम्पलाईज की सेलरी पर इतना खर्च हो ही रहा है तो समझ लीजिए एक कुत्ता और पाल लिया। सर, आपको क्या बताऊं, जब ये जेल गया था तो मैंने राजा भइया से कह कर इसका जेल में वीवीआईपी अरेंजमेंट करवाया था। वो सारी फेसिलिटीज दिलवाई थीं जो इसी के बगल में बंद आईएएस को नहीं मिल रही थी। पचासों हजार रुपये इसके घर पहुंचवाए थे कि इसके बीवी-बच्चे भूखे न मरें। कमीना एक भी अहसान नहीं मानता। अभी एक खबर छपी, उस पर हमारे लखनऊ के एक साथी के नाम से फर्जी कमेंट भी इसने छाप दिया। मैंने कहा कि, यार कम से कम वो कमेंट तो हटा दो। कमीने ने कमेंट नहीं हटाया। गजगोबर सिंह ने बला अपने ऊपर से टालते हुए कहा कि सर विनोद जी के आजकल बहुत अच्छे संबंध हैं भड़ास से। अभी कुछ दिन पहले उसने विनोद जी का इंटरव्यू भी छापा है। विनोद जी बीच में ही बोले- अरे वो तो तुम लोगों ने ही अरेंज करवाया था। उसने तो छापा भी है तुम्हारे नाम से। बात आई गई हो गई।
मैडम सिंह का चापना न्यूज में आगमन हो चुका था। मैडम से कहा गया कि आपको फिल्हाल बदतर प्रदेश का असाइनमेंट देखना है। चैनल हेड गजगोबर सिंह के पिछवाडे़ को हवा भी नहीं लगी और उनके चैनल में मैडम सिंह की नियुक्ति हो गई। गजगोबर सिंह को पता चला तो उसने धरती आसमान एक कर दिया लेकिन मैडम सिंह को टस से मस न करवा सके। मैडम सिंह आईं तो किसी भगवा सिफारिश पर थीं, फिर भी उनकी एक शर्त थी कि वह गजगोबर सिंह को रिपोर्ट नहीं करेंगी। गजगोबर को यह शर्त बर्दाश्त न थी। मैडम सिंह की लौंडा मालिक और भाण्ड को को रिपोर्टिंग है। गजगोबर सिंह यहां भी मात खा गए। अब गजगोबर सिंह बस नाम के चैनल हेड हैं। ज्यादातर वो लखनऊ में ही सैटिंग-गेटिंग में मस्त रहते हैं। अब पता चला है कि नोएडा प्रवास के दौरान गजगोबर सिंह ने मैडम सिंह के भी तलवे चाटने शुरू कर दिए हैं। कभी भूखे भेड़िये जैसा रुख ऱखने वाला गजगोबर सिंह आज उसी मैडम सिंह के आगे वोडाफोन के पग (सेवा में हर पल तत्पर छोटा सा प्यारा सा कुत्ता) जैसा बना रहता है। अपनी कुर्सी छोड़ मैडम सिंह के क्यूबिकल में घण्टों बैठा रहता है। चिचियाते- मिमियाते घण्टों गपियाता रहता है।
गजगोबर सिंह नोएडा कम लखनऊ सैटिंग गैटिंग में ज्यादा लगा रहता… राजू को हटवाया और वास्तव को ब्यूरो चीफ वनवा दिया। कहते हैं कि उसे बीयर वार का ठेका दिलवा दिया। इसी बार में गजगोबरसिंह सुंदरियों के साथ सुरा पान करते हैं। प्रदेश भर में निल डिस्ट्रीब्यूथन के बावजूद चांपना को विज्ञापन देने वाले कर्मचारी अधिकारी भी इसी बार में गजगोबरसिंह की सुंदरियों के साथ सुरा पान करते हैं। बेचारा गजगोबर सिंह कुछ भी करता है मगर चांपना को हिस्सा तो मिलता है ना…दिलवाता है ना, कहीं न दिखने वाले चैनल को विज्ञापन… ! फिर भी गुप्ताज चाहते हैं कि सारी मलाई उन्हें ही मिले, मुंह भी मीठा रहे और सिर भी चिकना रहे और गजगोबरसिंह बैठ कर सिर्फ चौकीदारी करे, मुंह न मारे। बेचारा मुंह मार लेता है या थोड़ी सी मलाई खुद भी या किसी और को भी खिलवा देता है तो लौंडा मालिक उसे दल्ला दलाल और न जाने क्या क्या खुलेआम कहकर सरे आम बेइज्जत करते हैं…
…जारी…
चैनल का नाम और चैनल के चरित्रों का नाम बदल दिया गया है. घटनाक्रम पूरी तरह सही है.
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