भारत में आजकल विदेश से आयातित त्यौहारों की संख्या बढ़ गई है। कैलेंडर में देखें तो रोज कोई न कोई खास दिन होता है। इधर पश्चात्य संस्कृति ने अपने पांव पसारे हैं तो लगता है कि हर दिन ही त्यौहार है। जैसे ही लोग 14 फरवरी प्रेम दिवस (वैलेंटाइन-डे) मनाकर ही निपटे थे कि 8 मार्च को महिला दिवस मनाया और अब 1 अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाएंगे। फिर मित्र दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस और नया वर्ष जैसे दिन तो हर साल आते हैं और कभी एड्स विरोधी दिवस तो कभी कैंसर निरोधी दिवस भी सुनाई देता हैं। निकट भविष्य में अगर बुखार दिवस, बेबी(बच्चा) दिवस भी मनाए जाने लगें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।
दार्शनिकों की व्याख्या के अनुसार अगर मनुष्य अपने भीतर झांक कर देखे तो उसे पता चलेगा कि जन्म से लेकर मरण तक मूर्ख ही रहता है। एक अंग्रेजी कविता की हिन्दी व्याख्या के अनुसार, 'मुर्खता मनुष्य का जन्मजात गुण है और उसे इस गुण से पृथक नहीं किया जा सकता। क्योंकि जब सर्दियों का मौसम होता है तो मनुष्य गर्मी के पीछे भागता है, जब गर्मियों के दिन होते हैं तो सर्दी के पीछे भागता हैं। जब दोपहर तपते हैं तो बारिश को इंतज़ार करता है और जब बारिश आती है तब छुपने का इंतज़ाम करता है।' वहीं, मध्यमवर्गीय गृहस्थों पर कसे गए एक हास्य व्यंग के अनुसार अलमारी खोलने पर हर मनुष्य की एक समस्या होती है कि पहनने के लिए कपड़े नहीं है और रखने के लिए जगह नहीं है। मनुष्य के इन क्रियाकलापों से भी उसे मूख्र का दर्जा दिया जा सकता है।
तमाम जानकारों के मुताबिक मर्ख दिवस को मनाए जाने की अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। एक अंदाज से तो लगता है कि मूर्ख दिवस को मनाए जाने के पीछे जो कथाएं प्रचलित हैं, वो भी मूर्खों के लिए मूर्खों के द्वारा मूर्खों ने बताईं हैं।
किवदंती है कि बहुत पहले चीन में सनन्ती नामक संत थे, जिनकी दाढ़ी जमीन तक लम्बी थी। एक दिन उनकी दाढ़ी में अचानक आग लग गई तो वे बचाओ-बचाओ कहकर उछलने लगे। उन्हें इस तरह उछलते देख कर बच्चे भी जोर-जोर से हंसने लगे। तभी संत ने कहा, 'मैं तो मर रहा हूं, लेकिन तुम आज के ही दिन ख़ूब हंसोगे, इतना कहकर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए, और उसी दिन 1 अप्रैल था।' एक तो बानगी भर है। मूर्ख दिवस से जुड़े ऐसी कई तथाकथित लोक-कथाएं व जानकारियां सामने आ जाएंगी जो विभिन्न देशों में घटित हुईं हैं। ''फूल-डे'' यानि मूर्ख दिवस विश्वभर में 1 अप्रैल के दिन मौज-मस्ती और हंसी मज़ाक के साथ एक-दूसरे को मूर्ख बनाते हुए मनाया जाता है। इस दिन लोग एक-दूसरे को विचित्र प्रकार से अथवा हंसी मजाक करके व धोखे में डालने वाले या ठगने वाले करतबों से मूर्ख बनाते हैं। इसमें धोखा का मतलब ठगने से नहीं बल्कि मनुष्य की उन चारित्रिक इमोशंस से है जिनको पाकर एक-दूसरे के मन-मतिष्क में आनंद की अनुभूति हो। अनजान मनुष्यों को इन हरकतों से कई बार कष्ट भी पहुंचते हैं।
एक मान्यता के अनुसार मूर्ख बनाने का जिक्र सबसे पहले 1392 में चौसर के कैंटरबरी टेल्स में पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक चौसर की किताब 'द कैटरबरी टेल्स' में कैंटरबरी नाम के एक कस्बे का वर्णन है। इसमें इंग्लैंड के राजा रिचर्ड द्वितीय और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई की तारीख 32 मार्च 1381 को होने की घोषणा की जाती है, जिसे कस्बे के लोग सही मानकर मूख्र बन जाते हैं। तभी से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस मनाने की परंपरा है। मूर्ख दिवस अलग अलग देशों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। भारत में मूर्ख दिवस जहां कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों का आयोजन कर मनाया जाता है कि वहीं, फ्रांस, रोम में यह 9 दिन तक रोमांचक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियों से बनाया जाता है।
भारत के मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन शहर में मूर्ख दिवस यानि एक अप्रैल के दिन 'टेपा सम्मेलन' अयोजित किया जाता है जो संपूर्ण हिन्दी भाषी क्षेत्र में प्रसिद्ध है। मालवा क्षेत्र में होने वाले इस टेपा सम्मेलन में देश के ख्यातिलब्ध, प्रख्यात व नामचीन कवि, व्यंगकार व साहित्यकार शिरकत कर अपने कृतियों से श्रोताओं को मनोरंजित करते हैं। वहीं, स्कॉटलेंड में मूर्ख दिवस को 'हंटिंग द कूल' के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहां मुर्गा चुराने की विशेष परंपरा है। मुर्गे का मालिक भी इसका बुरा नहीं मानता। जापान में बच्चे पतंग पर इनामी घोषण लिख कर उड़ाते हैं, और जो पतंग पकड़कर इनाम मांगता है उसे 'अप्रैल फूल' माना जाता है।
पूरी दुनिया में अप्रैल फूल के बढ़ते प्रचलन ने भारत के नागरिको को भी अपनी लोकप्रियता से अछूता नहीं छोड़ा है। प्राचीन काल में भारत में भी अप्रैल फूल मनाने के किस्से सुनाई पड़ते हैं। एक किवदंती के मुताबिक हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बनारस में ढ़िढ़ोंरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक समय पर चंद्रमा और सूरज को धरती पर उतार कर दिखाएंगे। तय समय पर शहरवासियों की भीड़ इस करिश्मे को देखने एकत्रित हो गई लेकिन वहां सूरज-चंद्रमा तो दिख लेकिन कोई वैज्ञानिक दिखाई नहीं दिया, और लोग मूर्ख बनकर वापस आ गए। बताया जाता है कि उस दिन भी 1 अप्रैल था। बस जब से भारतीय मूर्ख दिवस मनाने में पीछे नहीं है।
अंत में, अप्रैल में मूर्ख दिवस की शुरूआत के साथ ही देश में आम चुनाव होने हैं। लोगों को सतर्क रहना होगा कि हमारा नेता हमें इसी महीने में मूर्ख तो नहीं बना रहा क्योंकि समय ही ऐसा है, इसलिए नागरिकों को चाहिए कि मूर्ख भी सोच समझकर बनें।
लेखक नीरज चौधरी माखनलाल विवि के छात्र हैं। संपर्कः 9425724481, ईमेलः [email protected]