लखनऊ: आर सुंदर ने आखिरकार पत्रकारिता को टाटा बाय-बाय कर दिया है। मतलब यह नहीं कि वह अब अभिव्यक्ति के असीम क्षेत्र को छोड़ने जा रहा है, बल्कि उसने पत्रिकारिता के परम्परागत क्षेत्र को छोड़कर अध्यापन को अंगीकार कर लिया है। वह भी फोटोग्राफी। लखनऊ के रामस्वरूप विश्वविद्यालय में अब वह सहायक प्रोफेसर के तौर पर अपने छात्रों को कैमरे के कमाल और बारीकियों-तकनीकियों से रू-ब-रू करायेगा।
कैमरा तो सुंदर की पहली मोहब्बत थी। बचपन से ही उसे कैमरे से बेइंतेहा मोहब्बत थी। लेकिन उसने अपनी इस पहली-पहली मोहब्बत को अब अपनाया है। पत्रकारिता में करीब 26 साल खपाने के बाद। हालांकि इसके पहले वह दो बैंक में भी काम कर चुका था, लेकिन जल्दी ही उसे इलहाम हो गया था कि बैंक की नौकरी उसका अभीष्ट नहीं है, और यहां रकम की जमा-निकासी का धंधा करने के लिए ही नहीं जन्मा है। आर सुंदर वैसे तो चेन्नई में जन्मा था। उसके पिता सेना में थे और बचपन में ही अपने पिता के साथ कानपुर में बस गया था। वहीं पढ़ाई की। एमकाम तक।
सन-82 में उसे बैंक आफ इंडिया में जुड़े। बाद में केनरा बैंक में क्लर्की मिल गयी। इसी बीच बैंक की हाउस मैग्जीन में उसका एक लेख छपा। उसी अंक में फतेपुर के जहानाबाद की रहने वाली और बैंक ऑफ इंडिया की ही कर्मचारी नमिता सचान की कविता छपी थी। दोनों से आपसी बातचीत की और मामला इतना ज्यादा बिगड़ गया कि आखिरकार इन दोनों ने शादी कर ली। अरे एक-दूसरे से ही यारों।
लेकिन सुंदर की सुंदरता तो पत्रकारिता में ही थी। सो, सन-88 में उसने टाइम्स इंस्टीच्यूट में प्रवेश लिया और 89 में उसका सलेक्शन लखनऊ के नवभारत टाइम्स में हो गया। सब एडीटर के तौर पर। सन-90 में उसने जयपुर के राजस्थान पत्रिका में काम शुरू किया और फिर 92 में कानपुर के स्वतंत्र भारत में नौकरी कर ली। फिर सन-94 में लखनऊ के राष्ट्रीय सहारा में और उसके बाद सन-2001 में हिन्दुस्तान के बाद उसने सन-2004 मुम्बई में सीएनबीसी आवाज ज्वाइन कर लिया। सन-2007 में बिजनेस स्टैंडर्ड में काम किया लेकिन सन2009 में नौकरी छोड़ दी। उसे लग चुका था कि परम्परागत पत्रकारिता के लिए वह नहीं जन्मा है। काफी उहापोह के बाद अब उसने शिक्षण का काम शुरू कर दिया है।
उधर नमिता अब बैंक की नौकरी से निवृत हो चुकी है। नमिता की कविताएं अभी भी सुंदर और उसके बेटों के साथ ही उनके मित्रों को ऊर्जा देती रहती हैं। न न, कभी भी इन लोगों में कोई बड़ा झगड़ा नहीं किया। अगर कोई काम पूरी शिद्दत के साथ किया तो इकलौता काम वह था सिर्फ एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत। दो बेटे हैं, एक संकल्प और दूसरा शुभम। दोनों ही बैंगलोर में सेटल हैं, जबकि यह पुरानी जोड़ी लखनऊ में।
करीब बीस साल बाद आर सुंदर से मेरी मुलाकात आज दोपहर वाराणसी के हरीशचंद्र घाट के पास एक इडली की दूकान पर हुई। नमिता साथ ही थी। हमारे एक संयुक्त मित्र भी हमारे साथ मौजूद थे। यह परिवार अपनी माता-पिता के श्राद्ध के सिलसिले से काशी आया था। बातचीत का दौर चला तो सुंदर ने माना कि आज के कैमरे किसी सब्जेक्ट को केवल यथावत पेश करते हैं, उनमें तकनीकियों का तानाबाना बेहद न्यूनतम हो चुका है। उसने बड़ी निराश स्वर में कहा 'अरे! थ्रिल ही नहीं बची है आज के कैमरों में।'
लेखक कुमार सौवीर यूपी के वरिष्ठ और बेबाक पत्रकार हैं। संपर्क 09415302520