अपनी निर्लज्जता का क्रूर प्रदर्शन करते हुए जालंधर जागरण के समाचार संपादक शाहिद रजा ने 'छंटनी बंपर' के तहत जालंधर यूनिट की संस्थापक टीम की सदस्य तथा वरिष्ठ पत्रकार, कवयित्री गीता डोगरा का शिकार कर दिया है। उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। महज तीन महीने पहले श्रीमती गीता डोगरा के पति इंजीनियर मनमोहन शर्मा का निधन हो गया था और उन्हें अभी नौकर की सख्त जरूरत थी। अभी तो उनके पति की पेंशन भी शुरू नहीं हुई थी कि उनकी नौकरी खा ली गई है।
तुर्रा यह कि उन्हें कहा गया है कि अढ़ाई माह पहले हुए एक टेस्ट में वह पास नहीं हो सकीं। जिस महिला के पति की मौत 20 दिन पहले हुई हो और उससे अचानक कह दिया जाए कि वह टेस्ट दे, क्या कोई भी औरत यह कर सकेगी? शाहिद रजा को उनकी मानसिक स्थिति का कोई आकलन नहीं हो सका? पत्रकारों को संवेदनशीलता के साथ पत्रकारित करने का सबक सिखाने वाले ये लोग आखिर क्या सोच रहे हैं? 1999 में जब जागरण की शुरुआत होनी थी तब श्रीमती डोगरा के फीचर का प्रभार संभाला था और सालों साल तक सैकड़ों साहित्यकारों को जागरण के साथ जोड़ा। बाद में उन्हें नीचा दिखाया जाने लगा और पूरी कोशिश की गई कि वह स्वयं छोड़ दे।
पंजाब में शुरुआती दौर में रखी गई समूची टीम की छुट्टी की जा चुकी है और रिश्तेदारों को सजाया बढ़ाया जा चुका है। जो किसी सीजीएम का मामा, साला, साढू, भांजा, भांजे का साला, साले का साला नहीं है वह जागरण के पंजाब के किसी यूनिट में काम ही नहीं कर सकता? श्रीमती गीता डोगरा जैसी वरिष्ठ पत्रकार को तब निकाला गया है जब उनकी रिटायरमेंट में महज एक साल बाकी था और अभी अभी वह अपने पति को खो चुकी हैं। शाहिद रजा की टीम में स्वयं उनके समेत कुछ ऐसे हीरे भी हैं जिन्हें अभी तक पंजाब के सारे जिलों के नाम और मंत्रियों के विभागों की जानकारी भी नहीं है…। पत्रकारों को क्या बताया जाएगा कि किस आधार पर इन लोगों की बलि ली जा रही है?
ऋषि कुमार नागर
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