संपादक, भडास फार मीडिया से आग्रह है कि इसे बिना नाम के ही छापें, अन्य़था लेखक के पेट में लात पड़ते देर नहीं लगेगी। बात मैं ईटीवी के बारे में बताने जा रहा हूं। इस चैनल के 11 साल पूरे हो चुके हैं, 27 जनवरी के दिन। खुद को रीजनल चैनलों का सरताज कहने वाला ईटीवी न्यूज चैनल पैसा कमाने की होड़ में इस कदर आगे बढ़ चुका है कि उसे ये तक ख्याल नही है कि वो न्यूज चैनल है या विज्ञापन चैनल?
खासकर ईटीवी यू पी/उत्तराखण्ड तो लगता पूरा का पूरा विज्ञापन चैनल हो गया है। इस चैनल पर इन दिनों जब देखों विज्ञापन ही नजर आ रहे हैं। ये सही है कि चैनल चलाने के लिए पैसा चाहिए और पैसा विज्ञापनों से ही आता है। बावजूद इसके ई टी वी के यू पी/ यू के चैनल के हाल ये ही कि यहां आधे घंटे के न्यूज बुलेटिन में खबरों को मात्र दस मिनट का समय दिया जा रहा है। जबकि दो तहाई समय विज्ञापनों की भेंट चढ़ रहा है।
चैनल की इस आर्थिक भूख से सबसे ज्यादा वो दर्शक खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। जिन्होनें 11 सालों तक इस चैलन पर विश्वास किया । न्यूज की दुनियां में 11 सालों का सफर तय करने वाले ई टी वी यू पी/यू के चैनल को खबरों के लिए जाना जाता है। यहीं वजह है कि अपना यू पी हो या फिर अपना उत्तराखण्ड दोनों बुलेटिन को देखने के लिए दर्शक अपना सबकुछ छोड़कर बैठ जाते है। लेकिन खबरों के नाम पर इन दिनों उन्हें जमकर विज्ञापन दिखाये जा रहा है।
उत्तराखण्ड की बहुगुणा सरकार के विज्ञापनों ने तो हद कर रखी है। चैनल के हर बुलेटिन में 15 मिनट उन्हीं के कारनामों के विज्ञापन चलते हैं। बहुगुणा की सरकार जनता की नजरों में तो नही चढ़ती दिखाई दे रही है। लेकिन कोई ई टी वी के विज्ञापनों पर यकीन कर ले तो, लगेगा ये राज्य विजय बुहुगुणा के एक साल से भी कम के कार्यकाल में जैसे स्वर्ग बन गया है। जबकि हकीकत एकदम जुदा है। आई वी मंत्रालय की गाइड लाइन कहती है कि एक घंटे में किसी भी चैनल में मात्र 12 मिनट के विज्ञापन दिखाये जा सकते हैं। लेकिन ई टी वी यू पी/ यू के ने तो हद कर दी है। आधे में ही यहां बीस मिनट के विज्ञापन चलाया जा रहे हैं। लेकिन कोई देखने वाला नही है।
रामो जी राव के दौरान इस चैनल ने जो नाम कमाया उसे अब पूरी तरह बेचा जा रहा है। अगर आलम ये ही रहा तो, कुछ दिनों में दर्शक तो इस चैनल से किनारा कर ही लेगें। जिसका नतीजा ये होगा कि भविष्य में इसे विज्ञापन मिलना तक बंद हो जायेगें। खबरों और विज्ञापन का जरूरी तालमेल ही दर्शक पंसद करते हैं। पहले इस चैलन में सिर्फ और सिर्फ खबरें होती थी। लेकिन मात्र की ही खबरे देखने को मिल रही है। ये छल है उन दर्शकों के साथ जो इस चैनल पर विश्वास करते हैं। 11 साल पूरा करने पर चैनल कहता है कि “ बाजारवाद के दौर में उसने खुद को बचाये रखा है” जबकि सच ये है कि बाजारवाद के इस दौर में ये चैनल पूरा का पूरा बाजारू हो चला है।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.