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Abhishek Manu Singhvi Sex CD (8) : कांग्रेसियों के बीच नंबर बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया पर किटकिटाने लगे काटजू

: सच में कांग्रेसी एजेंट लगने लगे हैं मिस्टर काटजू : कारपोरेट मीडिया का कुछ उखाड़ नहीं पाए, अब कांग्रेसियों के आंख का तारा बनने के लिए बेवजह सोशल मीडिया को दुश्मन मान रहे : मिस्टर काटजू, हम आपको उन नब्बे फीसदी भारतीयों में शुमार करते हैं जिन्हें आप मूर्ख कहते हैं : जस्टिस काटजू के पिछले कुछ महीनों की गतिविधियों को अगर आपने ध्यान से देखा होगा तो उसके कई नतीजे निकाल सकते हैं. जैसे, अन्ना के आंदोलन के बाद कांग्रेस सरकार ने मीडिया पर निशाना साधा तो कांग्रेस के प्रवक्ता की तरह काटजू भी उस अभियान को चलाते बढ़ाते दिखे. टीवी वालों से आमतौर पर लोग नाखुश रहते हैं इसलिए कोई भी चैनलों के खिलाफ बोलता है तो लोग उसका समर्थन ही करते हैं. सो, काटजू का समर्थन हुआ.

: सच में कांग्रेसी एजेंट लगने लगे हैं मिस्टर काटजू : कारपोरेट मीडिया का कुछ उखाड़ नहीं पाए, अब कांग्रेसियों के आंख का तारा बनने के लिए बेवजह सोशल मीडिया को दुश्मन मान रहे : मिस्टर काटजू, हम आपको उन नब्बे फीसदी भारतीयों में शुमार करते हैं जिन्हें आप मूर्ख कहते हैं : जस्टिस काटजू के पिछले कुछ महीनों की गतिविधियों को अगर आपने ध्यान से देखा होगा तो उसके कई नतीजे निकाल सकते हैं. जैसे, अन्ना के आंदोलन के बाद कांग्रेस सरकार ने मीडिया पर निशाना साधा तो कांग्रेस के प्रवक्ता की तरह काटजू भी उस अभियान को चलाते बढ़ाते दिखे. टीवी वालों से आमतौर पर लोग नाखुश रहते हैं इसलिए कोई भी चैनलों के खिलाफ बोलता है तो लोग उसका समर्थन ही करते हैं. सो, काटजू का समर्थन हुआ.

वही काटजू जब बिहार में जाते हैं तो उनको वहां की मीडिया कैद में है बुलबुल टाइप लगती है लेकिन जब वे यूपी जाते हैं तो मीडिया वालों से कहते हैं कि अभी अभी तो अखिलेश जी आए हैं, क्यों आलोचना लिख रहे हैं आप लोग, वक्त दीजिए. मतलब, दो स्टेट और दो पालिसी. मीडिया का काम वक्त देना नहीं होता है मिस्टर काटजू, मीडिया का काम हर वक्त अपना काम करना होता है. खैर, अब काटजू सोशल मीडिया के पीछे पड़े हैं. तो क्या, पापी सिंघवी का वीडियो जो सोशल मीडिया ने रिलीज कर दिया. अरे काटजू भाई, कांग्रेसियों के नंगेपन को ढंकने की आप चाहें जितनी कोशिश कर करा लें, लेकिन ध्यान रखिएगा, जनता सब समझती है. आपको आपके तेवर व सोच के हिसाब से सोशल मीडिया को थैंक्यू बोलना चाहिए कि इस मीडिया ने आपके कोर्ट और आपकी सत्ता के डर भय के बिना सच को सामने लाने का साहस किया.

आखिर कोई नेता किसी वकील को जज बनाने का प्रलोभन देकर सेक्स कर रहा हो तो उस वीडियो को कैसे पब्लिक में आने से आप रोक सकते हैं. आपकी न्यायपालिका भी न, बड़े लोगों के मामले में तुरंत स्टे टाइप की चीज दे देती है और छोटे लोग मर जाते हैं, कोई सुध लेने नहीं पहुंचता. आप हम सोशल मीडिया वालों को जेल भिजवा दीजिए या फांसी दे दीजिए, बहुत फरक नहीं पड़ेगा, चार मरेंगे तो चार सौ पैदा होंगे. और, जब सोशल मीडिया व न्यू मीडिया को अमेरिका जैसा सर्वशक्तिमान नहीं कंट्रोल कर पाया तो आप किस डाल की चिड़िया हैं. विकीलीक्स अगर अमेरिका में बंद किया गया तो वह स्विटरलैंड से आन हो गया. न्यू मीडिया व सोशल मीडिया की ताकत का दरअसल आपको अंदाजा है ही नहीं. हो भी कैसे, आपके लिए तो सत्ता व सिस्टम की ताकत सर्वोच्च जो है.

पर आप इस भ्रष्ट तंत्र से जो अनुरोध कर रहे हैं कि वह सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए कानून बनाए तो यह आपके वैचारिक दिवालियेपन की ही निशानी है. इस देश में सैकड़ों ऐसे कानून हैं जो पूरी तरह अनुपयोगी हैं और हम सभी उसका हर रोज किसी न किसी रूप में उल्लंघन करते हैं, पर वे बने हुए हैं. आपको कानूनों को कम करने की लड़ाई लड़ना चाहिए. कानून व बंदिश से अगर समस्याएं हल होनी होती तो जाने कबकी हल हो गई होती. और, आपको भी पता है कि कानून सिर्फ आम लोगों के लिए बनाए जाते हैं. बड़ा आदमी कानून का अपनी मनमर्जी के हिसाब से उपयोग व व्याख्या करके राहत छूट पा लेता है. पर आम आदमी तो कानून के नाम से ही डर जाता है और अपना दोनों हाथ हथकड़ी की तरफ बढ़ा देता है.

आप अंबिका सोनी और कपिल सिब्बल जैसों से उम्मीद करते हैं कि वे देश के सिस्टम को सही करेंगे तो यह आपकी एक और दृष्टिविहीनता है. जिस निर्मल बाबा पर अंबिका सोनी चुप्पी साधे है, उस अंबिका सोनी से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती. निर्मल बाबा मुद्दे पर चैनलों को एक नोटिस तक जारी करने की इस अंबिका सोनी में हिम्मत नहीं है. अंधविश्वास को बढ़ाने का धंधा रोज रोज जारी है पर सब आंख वाले इस कदर आंख मूदे हैं गोया जन्म से अंधे हों, बहरे तो खैर ये हैं ही. और रही बात कपिल सिब्बल की तो जिसका काम ही गलत को सही और सही को गलत साबित करना है, उससे सही गलत के लिए गुहार लगाना सावन के अंधे को हरियाली दिखाने जैसा है. अंबिका सोनी, कपिल सिब्बल आदि इत्यादि कांग्रेसियों व उनके कैरेक्टर को तो दुनिया जानती है काटजू साहब, आप क्यों अपने अच्छे खासे अतीत की वाट लगाना चाहते हैं.

आपने जब अन्ना को खारिज किया था तब भी शक हुआ था कि आप किसी एजेंडे के तहत ऐसा कर रहे हैं. आप सबको खारिज करते हो पर कांग्रेस को नहीं. आप सब पर बोलते हो पर कांग्रेस से जुड़े मसलों मुद्दों पर नहीं. यह चुप्पी क्यों काटजू साहब. एक महिला वकील एक बड़े कांग्रेसी नेता के साथ जज बनाए जाने के नाम पर सेक्स कर रही है तो आप चुप क्यों हैं. सेक्स कोई मुद्दा नहीं है. हर आदमी के पास लिंग होता है और हर आदमी एक या अनेक के साथ सेक्स करता है, यह बेसिक इंस्टिंक्ट है, इसे आप लाख गलत सही कहें, यह चलता रहा है और चलता रहेगा. हर देश का कानून सेक्स को अपने अपने हिसाब से सही गलत मानता है. सेक्स की परिभाषा एक इस्लामी देश में अलग है तो एक अफ्रीकी देश में अलग.

अभी हाल में ही एक तस्वीर छपी थी जिसमें एक अफ्रीकी नेता बुढ़ापे में छठवीं शादी के लिए टाई कोट के साथ साथ कमर कसे दिखा था. सो, नैतिकता पर कोई यूनिवर्सल कानून नहीं है, यह देश काल समाज के हिसाब से परिभाषित किया जाता है. इसलिए इसे छोड़िए. बताइए यह कि जज जैसे पद पर कोई आओ सेक्स सेक्स खेलें खेलकर पहुंच जाए तो उस देश के आम आदमी को कैसा इंसाफ मिलेगा? इस मुद्दे पर आपकी क्या राय है काटजू? पार्टनर, आपकी पालिटिक्स सिर्फ कुछ को खारिज करना नहीं होना चाहिए. आप उन्हें खारिज करें जिनके कारण इस समय का देश समाज और जनता खारिज हुई जा रही है, अपनी जिंदगी, जमीन, आत्मा से…. आप उन्हें खारिज करें जिन्हें दुखों की मारी जनता खारिज कर रही है तो समझ में आता है कि आप जनता के साथ खड़े हो.

पर आप बेहद चालाकी के साथ, बेहद ब्यूरोक्रेटिक एप्रोच के साथ जो खेल खेल रहे हैं, वह अब लोगों के समझ में आने लगा है. न आ रहा होगा तो हम जैसे लोग समझाएंगे क्योंकि काटजू साहब, इस देश को आप जैसे पढ़े लिखे चालाकों की नहीं बल्कि कम पढ़े लिखे और लड़ने भिड़ने वाले अन्नाओं की जरूरत है. अन्ना में कमियां हो सकती हैं लेकिन कांग्रेस के भ्रष्ट राज काज के मुकाबले हजार गुना कम कमियां होंगी. फिलहाल तो आपको बधाई कि आपने सोनी-सिब्बल को पत्र लिखकर अपनी पक्षधरता के बारे में बता दिया है. आप कारपोरेट मीडिया वालों का तो कुछ उखाड़ बिगाड़ नहीं पाए, हां, अब गरीब मीडिया वालों जिसे लोग सोशल मीडिया और न्यू मीडिया कहते हैं, पर डंडा बरसाने की व्यवस्था कराकर खुद को भ्रष्ट तंत्र का जो पहरेदार साबित कर रहे हैं, वह आपकी राजनीति को स्पष्ट करता है.

मिस्टर काटजू, इंटरनेट महासमुद्र है. पहले भी वहां पोर्न था और आज भी वहां खूब पोर्न है. पहले भी वहां ज्ञान था, आज भी वहां खूब ज्ञान विज्ञान है, पहले भी वहां गासिप और अफवाहें थी, आज भी वहां खूब गासिप व अफवाहें हैं. पहले भी वहां विद्रोह था, आज भी वहां खूब क्रांतियां है…. जाकी रही भावना जैसी के अंदाज में हर आदमी अपनी अपनी जरूरत का माल खोजता देखता सीखता है. आप क्यों चाहते हैं कि इस माध्यम पर जो माल पड़े, वह आपकी रुचि-अरुचि के हिसाब से हो. आप दरअसल खुद को भले ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से लैस डेमोक्रेट बताते हों लेकिन सच तो ये है कि आप अरिस्टोक्रेट की तरह जीते, व्यवहार करते और काम करते हैं. खुद के अंदर झांकिए. वैसे, हम लोग अब आपको उन नब्बे फीसदी भारतीयों में शुमार करने लगे हैं जिन्हें आप मूर्ख बताते हैं. इस मुद्दे पर बहस जारी रहेगी. आपके जवाब का इंतजार रहेगा. सोशल मीडिया और न्यू मीडिया के साथियों से अपील है कि वे इस बहस को अपने अपने मंचों पर ले जाएं और ज्यादा से ज्यादा प्रचारित प्रसारित करें ताकि दूसरे लोगों के भी विचार सामने आ सकें.

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आखिर में, काटजू साहब, आपको सोशल मीडिया के लोगों को खुलकर धन्यवाद देना चाहिए, जिनके अभियान के कारण निर्मल बाबा एक्सपोज हुए और मेनस्ट्रीम मीडिया को भी मजबूरन निर्मल बाबा के फ्राड का खुलासा करना पड़ा. और फिर सिंघवी के बहाने जज बनाए जाने के इस सेक्सी सिस्टम की कलई खोलने का काम सोशल मीडिया ने किया. इसी कारण सिंघवी को प्रवक्ता पद से हाथ धोना पड़ा, कांग्रेस के अन्य शीर्ष पदों से भी हटना पड़ा. अगर सब कुछ सही था तो आखिर कांग्रेस ने क्यों सिंघवी को हटाया. बने रहने देते और रोज रोज प्रेस ब्रीफिंग करने देते. सच तो ये है कि कांग्रेस, सिंघवी और आप जैसों ने पूरी कोशिश की कि सिंघवी का सच कहीं सामने न आ सके, सेक्सी सिस्टम की सच्चाई न खुल सके, इसी कारण अदालत के नाम पर सारे मीडिया वालों का मुंह सील दिया गया. लेकिन सोशल मीडिया वालों ने बिना डरे सारा सच सबके सामने परोस दिया. और, फिर कलई खुलने से कालिख पुती कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं बचा. ऐसे में आपको सोशल मीडिया व न्यू मीडिया के लोगों का इस्तकबाल करना चाहिए था, भले ही चोरी छुपे, लेकिन आप तो पूरी तरह से सिस्टम परस्त ही नहीं बल्कि एक पार्टी परस्त निकले. मिस्टर काटजू, मैं भी भाजपाई नहीं हूं, संघी नहीं हूं. लेकिन मैं इस डर से कांग्रेस के करप्शन, कांग्रेस की गंदगी का समर्थन नहीं कर सकता कि ये गई तो भाजपा आ जाएगी. भाजपा कोई भूत नहीं. अगर आपने जो डेमोक्रेटिक व इलेक्टोरल सिस्टम बनाया है, उसके माध्यम से भाजपा जनमत लेकर आती है तो उसे सरकार बनाना चाहिए. और, तब भी हम लोग उस सरकार की कलई उसी तरह खोलते रहेंगे जैसे आज खोल रहे हैं. सोशल मीडिया और न्यू मीडिया किसी का सगा नहीं होता, खुद अपना भी. और आपको शायद पता नहीं होगा, क्योंकि यह कानून की किसी किताब में नहीं लिखा है कि आप और आपकी सरकारें लाख चाहें, इस सोशल मीडिया और न्यू मीडिया को मैनेज कर ही नहीं सकतीं, पैसे के दम पर भी नहीं और कानून के डंडे के बल पर भी नहीं. हां, लेकिन आप जरूर एक्सपोज हो गए मिस्टर काटजू. आपके प्रति जो थोड़ा बहुत साफ्ट कार्नर था अब खत्म. अब आपसे हर मुद्दे पर बात होगी, और खुलकर बात होगी. मैं ही नहीं, हर सोशल मीडिया वाला और न्यू मीडिया वाला अब आपसे मुखातिब होगा. जय हिंद.

फिलहाल यहां वो पत्र डाल रहा हूं जिसे काटजू ने सिब्बल को भेजा है, सोशल मीडिया पर लगाम लगाने का अनुरोध करते हुए…

यशवंत

एडिटर, भड़ास4मीडिया

[email protected]


April 23, 2012

Shri Kapil Sibal,

Hon’ble Minister for Communications and Information Technology

Shastri Bhawan,

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New Delhi.

Re: Regulation of Social Media.

Dear Shri Sibal,

I had sent a letter yesterday to Mrs. Ambika Soni recommending a committee be set up by the Government of India consisting of legal and technical experts for placing some restrictions on the social media as it is often acting in an arbitrary and irresponsible manner. A copy of the letter is enclosed.

Mrs. Ambika Soni wrote back today that I should write to you in this connection as your Ministry is the relevant Ministry. A copy of the letter is enclosed.

I, therefore, request you to immediately set up a committee as proposed by me so that the social media can be regulated and suitable legislation be initiated on the basis of the recommendations of this committee. Unless this is done irreparable damage may be done to individuals or to society, as the material shown may be inflammatory or defamatory or otherwise harmful to people.

With regards,

Yours faithfully,

Markandey Katju

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और ये शुरुआती पत्र है, जो अंबिका सोनी को काटजू ने भेजा, सोशल मीडिया पर लगाम लगाने का अनुरोध करते हुए….

22.4.2012

Mrs. Ambika Soni

Hon’ble Union Minister for Information & Broadcasting

New Delhi

Dear Mrs. Soni, I am deeply distressed that a new practice has developed in the social media of its misuse for defaming people /groups /religions /communities. The recent example is of dissemination of a CD which even the author admitted had been distorted for defaming a reputed senior lawyer of the Supreme Court and Member of Parliament, and the threat to defame a Union Minister.

The social media kept uploading the CD despite a Court injunction against it and despite the author admitting that he had doctored it. In my opinion unless some curbs are placed on the social media nobody’s reputation will be safe in India. I have repeatedly said that while there is freedom of the media in our country, no freedom can be absolute, and has to be coupled with responsibilities. The reputation of a person is a valuable asset, and cannot be permitted to be trampled upon by mischievous people. The social media often acts irresponsibly, which can irreparably damage a person’s reputation.

I would therefore request you to set up a team of legal and technical experts to find out ways and means of checking this menace, including, if the government thinks fit, initiating suitable legislation for this purpose, for filtering out such offensive material.

Yours sincerely,

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Markandey Katju

Chairman

Press Council of India


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