प्रिंट-टीवी...
खलनायक जैसे हमारी समूची ज़िंदगी का हिस्सा हैं। गोया खलनायक न हों तो ज़िंदगी चलेगी ही नहीं। समाज जैसे खलनायकों के त्रास में ही...
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खलनायक जैसे हमारी समूची ज़िंदगी का हिस्सा हैं। गोया खलनायक न हों तो ज़िंदगी चलेगी ही नहीं। समाज जैसे खलनायकों के त्रास में ही...
तो क्या प्रणव मुखर्जी या कोई और सही विश्वनाथ प्रताप सिंह को दुहरा सकता है? हालां कि इस की तुरंत कोई संभावना नहीं दिखती।...
हिंदी में अजब घटतौली है। कमोवेश हर जगह। क्या प्रकाशक, क्या संपादक, क्या अखबार या पत्रिकाएं। सब के सब एक लेखक नाम के प्राणी...
विश्रामपुर के संत ने जब आज अंतिम विश्राम ले ही लिया है तो यह सोचना लाजिमी हो गया है कि क्या श्रीलाल शुक्ल ही...