यहां सभी प्रोफेशनल्स हैं, सब कुछ स्पांसर्ड है

: खूबसूरत ढलानों पर : क्या मनुष्य होना कोई अपराध है? संवेदनशील और सहज होना पाप है? स्वार्थ से परे या परोक्ष और सूक्ष्म आत्मीय, अतीन्द्रीय स्वार्थ के साथ किसी के दुख में, किसी की पीड़ा में उसके साथ हो जाना या उसे साथ ले लेना कोई कपट है, कोई छल है? कभी-कभी बहुत अटपटे सवाल मन में उठते हैं और उनके जवाब नहीं मिलते। यद्यपि इन सवालों की आज की इस तथाकथित सभ्य दुनिया में कोई गुंजाइश नहीं रह गयी है लेकिन उस मन का क्या करें, जो मेरा है, उन लोगों का क्या करें, जिनके पास मेरे जैसा ही मन है।

श्रीलालजी तिकड़मों से अनजान नहीं थे पर उसकी परवाह नहीं की

श्रीलाल जी कहा करते थे कि कोई काम करना हो तो यह समझ कर करो कि मृत्यु तुम्हारे सिर पर खड़ी है और कोई विद्या सीखनी हो तो यह समझकर सीखो कि तुम अजर-अमर हो। यह शायद उनके जीवन का मंत्र था और हर किसी के लिए यह सफलता का महामंत्र बन सकता है। मंत्र वही दे सकता है, जो स्वयं सिद्ध हो, असिद्ध का मंत्र फलता नहीं, काम नहीं करता। कौन अस्वीकार कर सकता है इस बात से कि वे साहित्य के संत थे, अपनी कला के सिद्ध थे।