प्रवासी पंछी हैं प्रभात डबराल

दीपक आजाददेहरादून। पत्रकार से सूचना आयुक्त बने प्रभात डबराल के उत्तराखंडी प्रेम को लेकर राज्य के मीडिया हलकों में एक तल्ख बहस चल रही है। कहा जा रहा है कि डबराल एक ऐसे प्रवासी पंछी हैं जो अपना बुढ़ापा काटने के लिए उत्तराखंड चले आए हैं। ऐसे में अब प्रभात को ही साबित करना होगा कि उन्होंने महज बुढ़ापा काटने भर के लिए दिल्ली से देहरादून के लिए उड़ान नहीं भरी है। वे ऐसा कर पाते हैं या नहीं, यह समय बताएगा।

उत्‍तराखंड : निराशा के निर्माण का दशक

आईनेक्‍स्‍ट नीड़ नहीं, निराशा के निर्माण का दशक, यह कहना है 15 अगस्त, 1947 को मुल्क की आजादी के संग अपना सफर शुरू करने वाले युगवाणी पत्र का। साप्ताहिक से मासिक पत्र के रूप में अपने दस साल पूरे करने जा रही इस पत्रिका ने एक राज्य के रूप में उत्तराखंड की दस वर्ष की यात्रा का विश्लेषण इस तरह किया है। कुछ ऐसा ही तहलका ने भी निराशा के भाव प्रकट किए हैं।

प्रशासन ने फिर सील किया देहरादून प्रेस क्‍लब

तालाउत्तराखंड में मीडिया कई तरह के संकटों का सामना कर रहा है। कुछ संकट सत्ता की हनक से सियासत ने पैदा किए हैं तो कुछ पत्रकारों की आपसी धींगामस्ती उसे आलोचनाओं और विश्वसनीयता के ह्रास के भंवर में धकेल रही है। पत्रकारों के आपसी टकरावों के चलते दो साल से सीलबंद प्रेस क्लब का ताला पत्रकारों के एक धड़े ने दिवाली मिलन पर कानून की परवाह किए बगैर तोड़ दिया।

चाटुकारिता, जीहुजूरी और विज्ञापन

आजाददुनियाभर के धर्मग्रंथ ढेर सारे नीति वाक्यों से लदे-पड़े हैं। अपने अनुचरों को राह दिखाने दिखाने वाले इन नीति मंत्रों की झलक हर रोज हमारे-तुम्हारे दरवाजे पर दखल देने वाले अखबारों के आगे-पीछे के पन्नों पर दर्ज होती है। पर क्या हमारे समय में अखबारी लाल इन पर अमल करते हैं? इस सवाल का जवाब कुछ हां, कुछ ना में ही हो सकता है।

उपेन्‍द्र जी, मेरी सेलरी दिलवाइए

सेवा मे, माननीय श्री उपेन्द्र राय जी, सहारा इंडिया मीडिया, एडिटर एवं न्यूज डाइरेक्टर, विषय- मुंबई ऑफिस की बदउन्वानी और बार-बार शिकायत करने के बाद भी मेरी सेलरी का चेक ना दिए जाने के सन्दर्भ में.