मीडिया घरानों की चमक-दमक में खुद को ढाल नहीं पाया

दीपक : पुराना साल – नया साल : दीपक आजाद की नजर में : बीता साल निजी और सामाजिक तौर पर अच्छा-बुरा दोनों किस्म का रहा। सुकून इस बात का कि बाबरी मस्जिद ढहाने के साथ शुरू हुई सांप्रदायिकता की आंधी को बीते साल हिन्दू-मुस्लिमों ने समझदारी से जोर का झटका दिया। यह भी कि अब बाहरी दुनिया के लिए पवित्र गाय-भैंस समझे जाने वाले मीडिया के खिलखिलाते चेहरों के पीछे की सड़ांध राडिया कांड के बहाने उडेलकर बीते साल ही सड़क पर पसर गई। निजी तौर पर  साल 2010 को देखता हूं तो कुछ भी सीधा-सपाट नजर नहीं आता। लगता है जब घर-परिवार और समाज, सभी घोर किस्म के व्यक्तिवादी सांचे में ढलते जा रहे हैं, तब खुदको समाज की चिंताओं से जोड़े रखना किसी चुनौती से कम नहीं लगता।

उत्‍तराखंड : निराशा के निर्माण का दशक

आईनेक्‍स्‍ट नीड़ नहीं, निराशा के निर्माण का दशक, यह कहना है 15 अगस्त, 1947 को मुल्क की आजादी के संग अपना सफर शुरू करने वाले युगवाणी पत्र का। साप्ताहिक से मासिक पत्र के रूप में अपने दस साल पूरे करने जा रही इस पत्रिका ने एक राज्य के रूप में उत्तराखंड की दस वर्ष की यात्रा का विश्लेषण इस तरह किया है। कुछ ऐसा ही तहलका ने भी निराशा के भाव प्रकट किए हैं।