हिंदी फ़िल्मों में रोमांस उतना ही पुराना है, उतना ही शाश्वत और चिरंतन है जितना कि हिंदी फ़िल्म है, जितना कि हमारा जीवन है, जितना कि यह ब्रह्मांड है। सोचिए कि बिना प्रेम के यह दुनिया होती तो भला कैसी होती? और फिर फ़िल्म और वह भी बिना प्रेम के? शायद सांस भी नहीं ले पाती। और मामला फिर वहीं आ कर सिमट जाता कि ‘जब दिल ही टूट गया तो जी के क्या करेंगे?’ और फिर जो ‘दिल दा मामला’ न होता तो ‘तू गंगा की मौज मैं जमुना की धारा’ भी भला कहां होती और भला कैसे बहती?