मध्य प्रदेश के हजारों किसान अपनी मांगों के समर्थन में कड़कड़ाती सर्दी में भोपाल की सड़कों पर जब आंदोलन कर रहे थे, तब भोपाल के कुछ पत्रकार उनके ज़ख्मों पर मरहम लगाने की बजाय सरकारी दलाल बनकर किसानों के आंदोलन को विफल करने के प्रयास में लगे हुए थे। सरकारी खर्च पर जीवन गुज़ारने वाले इन तथाकथित पत्रकारों ने नीचता की सारी हदें पार करते हुए एसएमएस के जरिए शहर में यह अफ़वाह फैलाने का प्रयास किया कि सरकार और किसानों के बीच समझौता हो गया है।