श्रद्धांजलि नहीं, ‘श्रद्धाशब्द’ आलोक जी आपके लिए!

भाई साहब! मेरे लिए श्रद्धांजलि में यही लिख दीजिएगा‘, आलोक तोमर से मेरी टेलीफोन पर अंतिम बातचीत के ये शब्द रविवार को तब मेरे जेहन में कौंध गए जब सीएनईबी न्यूज चैनल के प्रमुख अनुरंजन झा ने टेलीफोन पर आलोक के निधन की खबर दिल्ली से दी। इस बातचीत के समय आलोक तोमर की आवाज अत्यंत क्षीण थी, फिर भी वे बात कर रहे थे, मैंने कहा कि यह जीवटता आप में ही हो सकती है।

किसकी ‘छवि’ की चिंता करे मीडिया?

एसएनपढऩे-सुनने में यह कड़वा तो लगेगा, किंतु सच यही है कि इंडिया और भारत नाम के हमारे देश में एक ओर जहां सामर्थ्‍यवानों को हजारों-लाखों करोड़ लुटने की छूट मिली हुई है, वहीं दूसरी ओर आम आदमी झूठ, फरेब और धूर्तता की विशाल शासकीय चट्टान के नीचे दब छटपटा रहा है। इसकी सुननेवाला, सुध लेनेवाला कोई नहीं। दुखी मन से निकली इस टिप्पणी के लिए क्षमा करेंगे कि न्यायपालिका का आचरण (अपवादस्वरूप ही सही) भी सामर्थ्‍यवानों का पक्षधर दिखने लगा है।

‘वॉच डॉग’ की भूमिका खतरनाक कैसे?

एसएन विनोद‘वॉच डॉग’ की भूमिका का निर्वाह करने वाला मीडिया भला ‘खतरनाक’ कैसे हो सकता है? निष्ठापूर्वक अपने इन कर्तव्य का पालन-अनुसरण करने वाले मीडिया को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने खतरनाक प्रवृत्ति निरूपित कर वस्तुत: लोकतंत्र के इस चौथे पाये की भूमिका और कर्तव्य निष्ठा को कटघरे में खड़ा किया है। वैसे बिरादरी से त्वरित प्रतिक्रिया यह आई है कि चव्हाण की टिप्पणी ही वस्तुत: लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का आग्रही है। मुख्यमंत्री चव्हाण ने मुंबई के आदर्श सोसाइटी घोटाले के संदर्भ में ऐसी विवादास्पद टिप्पणी की।