[caption id="attachment_20832" align="alignleft" width="57"]सलीम अख्तर[/caption]‘हिंदुस्तान’ के 17 जुलाई के अंक में शशि शेखर साहब का आलेख ‘मुंबई हमले से उपजे कुछ प्रश्न’ खुद में कुछ सवाल पैदा करता है। वे आतंकवाद और आजादी की लड़ाई में फर्क करना भूल गए हैं। जिस तरह से अंग्रेज भारत की आजादी के दीवानों को आतंकवादी की श्रेणी में रखते थे, इसी तरह शशि शेखर साहब ने भी फलस्तीन की आजादी की लड़ाई लड़ने वालों को आतंकवादी ठहरा दिया है।
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‘देश के सभी हिन्दू साम्प्रदायिक क्यों नहीं हैं?’
जब से आरएसएस के लोगों की आतंकवादी घटनाओं में संलिप्तता सामने आयी है, तब से आरएसएस के नेता बौखला गए हैं। इस बौखलाहट में ही शायद संघ के इतिहास में पहली बार हुआ है कि इसके स्वयंसेवक विरोध प्रदर्शन करने के लिए सड़कों पर उतरे।
क्या ‘हिन्दुस्तान’ की ये खबर पेड न्यूज नहीं है?
उत्तर प्रदेश में आजकल पंचायत चुनाव को लेकर बहुत गहमागहमी है। जो चुनाव पहले बिना किसी शोर-शराबे के सम्पन्न हो जाते थे, आजकल हाईटेक होने के साथ ही महंगे हो गए हैं। ऐसा लगता है कि पंचायत जैसे छोटे चुनावों में भी अखबारों में ‘पेड न्यूज’ छप रही है। इसका उदाहरण ‘हिन्दुस्तान’ (मेरठ संस्करण) का 9 अक्टूबर का अंक है। इसमें पेज चार पर चार कालम की एक खबर-‘प्रत्याशी विकास के नाम पर मांग रहे वोट’ शीर्षक से प्रकाशित हुई है। खबर के शीर्षक से लगता है कि चुनाव के बारे में एक कॉमन खबर होगी।
यह सफाई हिन्दुस्तान की है या दैनिक जागरण की
14 सितम्बर को भड़ास4मीडिया पर मेरे द्वारा लिखित ‘हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण ने छोटी खबर को बनाया बड़ी’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी। उस रिपोर्ट पर 26 सितम्बर को ‘मेरठ की शान’ नाम से कमेंट के रूप में किसी सज्जन की ओर से ‘सफाई’ पेश की गयी है। बहुत ही हैरत की बात है कि सफाई देने वाला शख्स या संस्थान अपनी पहचान छुपाकर सफाई पेश कर रहा है।
घर के बंटवारे सरीखा नहीं है अयोध्या विवाद
बाबरी मस्जिद बनाम राममंदिर के मालिकाना हक पर 24 सितम्बर को आने वाले फैसले को रोकने के लिए दायर रिट याचिकाएं हाईकोर्ट ने रद्द करके सही किया है। अदालत से बाहर इस मसले का निपटारा असम्भव हो चला है। जब फैसला आने में महज एक सप्ताह ही रह गया है तो इस पर यह कहना कि अदालत से बाहर हल निकालने का समय दिया जाना चाहिए, बेमानी ही नहीं बल्कि मसले को लटकाए का रखने का प्रयास भी था।