अरबों के भूमि घोटाले में घिरे उत्तराखंड के पत्रकार मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अदा भी निराली है। पहले कायदे कानूनों को ठेंगा दिखा घोटाला करो और फिर सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो समझो हो गई बल्ले-बल्ले। लेकिन पाप का घड़ा फूटने लगे तो बचाव के लिए बेशर्मी की हद तक उतर जाने में भी कोई संकोच नहीं। एक के बाद एक घोटालों में घिरते देख निशंक की अब तक की शैली यही है। लेकिन आखिर काली करतूतों पर पर्दा भी चढ़े रहे तो कब तक, वह तो कभी न कभी बेपर्दा हो ही जाती है।