प्रिय यशवंत, 'भड़ास' में तुम्हरी जेल डायरी पढ़ी. तुम्हारी हिम्मत भी देखी. बहुत कुछ लिखने का कोई मतलब नहीं. तुम्हारे लिए एक ग़ज़ल कही है लेकिन यह उन सबके लिए भी है जो सच की राह पर चलते हैं…
जो भी जितना खरा रहेगा
उससे शातिर डरा रहेगा
सच बोलो चाहे मर जाओ
सच्चा हर दम डटा रहेगा
लाख कोई तोड़ेगा उसको
सच है तो फिर तना रहेगा
डरते है बुजदिल ही अक्सर
कायर तो बस मरा रहेगा
उठो, चलो हिम्मत ना हांरो
साथ तुम्हारा खुदा रहेगा
यह घमंड न कहलायेगा
सच का सर तो उठा रहेगा
इक दिन मर जायेंगे झूठे
सच्चा लेकिन बचा रहेगा
अंत न होगा यशवंत का
यह खबरों मे बना रहेगा ..
-गिरीश पंकज
Girish Pankaj
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