जयपुर : चुनावी चौपाल सज चुकी है और नेताओं को हर मतदाता में रब दिखने लगा है। ऐसे दौर में नेताओं की पृष्ठभूमि पर गौर करना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि आज नेता देश के लिए कम, अपने विकास पर ज्यादा ध्यान देते हैं। उनकी सम्पति के ब्यौरे से ही यह पता लगाया जा सकता है। एक समय था जब देश के नेताओं का लक्ष्य देश की आजादी और मातृभूमि पर मर मिटना था। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोस और हजारों क्रांतिकारियों ने देश को आजादी दिलाने के यज्ञ में अपने जीवन की आहुति दे दी। उनका सिर्फ एक मकसद था कि देश आजाद हो और वह प्रगति के पथ पर आगे बढ़े।
लेकिन आज तो कई नेता रिटायर होने की उम्र से भी ज्यादा बसंत देखने के बावजूद कुर्सी पर काबिज हैं। उनसे सत्ता मोह नहीं छूट रहा। शहरों की बात की जाए तो नेता कहते हैं हमने विधायक कोटे से इतने गेट लगवा दिए। यह तो एक स्वाभाविक सी बात है कि पॉश कॉलोनियों में सिर्फ मेंटिनेंस के कार्य ही होते हैं। उनके लिए स्थानीय प्रशासन ही काफी होता है। इससे अच्छा होता कि जनप्रतिनिधि सुरक्षा व्यवस्था के इंतजाम करते। पुलिस की नफरी बढ़वाते लेकिन हो उल्टा रहा है। अपनी सुरक्षा खुद कीजिए। पुलिस मामले दर्ज नहीं कर सकती या प्रार्थी का धमकी देकर घर भेज देती है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे कह रही हैं कि हम टेट की अनिवार्यता खत्म करवा देंगे लेकिन जो नियम कानून के तहत बने हैं उसके लिए वायदा करना जनता के साथ धोखा है। वर्तमान में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विद्यार्थियों को धोखे में न रखते हुए इस बारे में कहा कि ऐसा संभव होता तो हम ही करवा देते और उन्होंने भर्ती प्रक्रिया में 20 प्रतिशत अंक देकर नौकरियां दीं। वसुंधरा राजे ने जिस दिन नामांकन भरा उस दिन कहा कि पांच वर्ष में कुछ नहीं किया कांग्रेस सरकार ने। रिफायनरी, आईआईएम कॉलेज, आईआईटी संस्थान, विश्वविद्यालय खुलने और चिकित्सा सहित कई क्षेत्रों में रोजगार किसी और ने दे दिया क्या? लेकिन यह सच है भूख का महत्व उसे पता होता है जिसे भोजन नहीं मिलता, जिनका पेट भरा हो वे कुछ भी कहने को आजाद हैं। उनसे पूछना चाहिए जिन्हें संबल मिला। सभी जानते हैं कि भाजपा की पूर्व सरकारों में भी यहां राम राज नहीं था। प्रसूताओं को प्रसव के समय निशुल्क दवाइयां नहीं मिलती थीं। पहले महिलाएं भर्ती हो जाती थीं लेकिन दवाइयों के पैसे नहीं होते थे। पैसों की मजबूरी के आगे मौत सस्ती लगती थी।
अब मीडिया भी कसर नहीं छोड़ रहा। प्रतिद्वंद्वियों में खिंची तलवारें, चुनाव की बिछी चौसर जैसे समाचार चुनाव कम महाभारत का ऐलान ज्यादा कर रहे हैं। सद्भाव, आपसी प्रेम और विकास की बातें तो बाद में होंगी। अब चुनाव आने पर नेताओं को जनता की याद आ रही है। नेता अब जनता के बेटे, बेटी और बहू बन रहे हैं। इससे पहले जनता के साथ अपनापन रखते तो आने की जरूरत नहीं होती। कई नेता तो ऐसे हैं जो जीत के बाद काले शीशे की गाड़ियों से नीचे नहीं उतरते, लेकिन अब मतदाता ही भगवान बन गया है। सबकी बातें सुनी जा रही हैं और लिखी भी जा रही हैं। इसलिए जनता को अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए ध्यान रखना होगा कि वंशवाद और जातिवाद से ऊपर उठे और प्रदेश के लिए योगदान दें।
जयपुर, राजस्थान से सीपी सैन