Deepak Sharma : सरकार मुलायम है.. मित्रों मुज़फ्फरनगर का स्टिंग आपरेशन एक मुश्किल असाईन्मेंट था. एक चुनौती हमारे सामने थी की NBSA की हिदायतों के दायरे में इसे कैसे कवर करें. अगर दोनों समुदायों के नेताओं या दंगा कराने वालों का स्टिंग करते हैं तो कंटेंट इतना उकसाने वाला होगा की शायद सच आरोप प्रत्यारोप में खो जायेगा. एक दिन के दौरे में हमारी टीम ये जान गयी थी की इस दंगे के दूसरे चरण में देहात इलाकों में अल्पसंख्यक बहुत तादाद में मारे गए थे .
हम शाहपुर के इस्लामाबाद केम्प में गए और वहाँ से हमे उन गांव और पुलिस चोकी/थानों के नाम मिले जहाँ हिंसा सबसे ज्यादा हुई. हमने तय किया की स्टिंग पुलिस और प्रशासन के राजपत्रित और अन्य अधिकारीयों का होना चाहिय जो मौके पर हिंसा काबू नही कर पाए. हमने देहात इलाकों में ४ इंस्पेक्टर, एक सेकण्ड अफसर और २ एसपी का स्टिंग किया जिन्होंने माना की पुलिस बल कम होने के कारण मौत के आंकड़े यहाँ बढ़ गए.
फिर हमने पहली चरण की हिंसा में एक एसडीम और एक सीओ का स्टिंग किया जिन्होंने बताया की किस तरह ऊपर से दबाव आने पर ७ मुलजिम थाने से छोड़े गए और बाद में ये तनाव की वजह बनी. मित्रों कोशिश यही थी की स्टिंग में किसी भी समुदाय को भड़काने वाली बात ना आए और शायद इस स्टिंग की स्क्रिप्ट आप वेबसाइट पर पड़ेंगे तो कुछ आपतिजनक नही लगेगा. जहाँ तक आज़म खान की बात है तो जब हमारे एक रिपोर्टर ने फुगाना थाने के सेकण्ड अफसर से उनके बारे में पूछा तो उसने कहा …बिलकुल बिलकुल. ये लाइन हमने चौथे पैकज के आखिर में इसलिए शामिल की क्यूंकि ये ज़िक्र हुआ पर एहतियातन हमने बीप लगा दी.
स्टिंग का फोकस पुलिस और सरकार का ३० और ३१ अगस्त और ७ और ८ सितम्बर को लचर प्रशासन था. यकीन मानिये ७ और ८ सितम्बर को मुज़फ्फर्नगर में क़ानून नदारद था. उसके बाद जब PARA MILITARY और ADG अरुण कुमार इलाके में उतारे गए तो हालत संभले. आपरेशन के पार्ट २ में हमने शहर कोतवाल का स्टिंग किया जिनपर दोनों समुदायों और अलग अलग राजनीतिक पार्टी के नेताओं को दंगा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार करने की ज़िम्मेदारी थी. पर कोतवाल इस ज़िम्मेदारी से पीछे हट गए.
मित्रों अलग अलग खुलासे चैनल पर ४ घंटो तक चले जिसका सार ये था की अगर सख्त कारवाई होती तो इतने बेक़सूर लोग ना मारे जाते. अब इस स्टिंग पर राजनीती हो रही है ये दुःख की बात है..अंग्रेजी मीडिया ने आज़म खान की लाइन को मुद्दा बना दिया और शामत उल्टा पुलिस अफसरों की आ गयी जो दंगे काबू ना कर पाने का असली सच बता रहे थे. ख़ैर जिसे जैसा समझ आये समझे.
आजतक के वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से.