नेशनल दुनिया अखबार से खबर है कि यहां पर कार्यरत कर्मियों में मायूसी छाई हुई है. तीन महीने से सेलरी नहीं मिल रही और दीवाली सिर पर होने के बावजूद सेलरी मिलने की कोई उम्मीद नहीं है. नेशनल दुनिया अखबार से कई लोगों ने भड़ास को फोन कर अनुरोध किया कि उनकी पीड़ा को प्रकाशित कर संपादक और मालिक के कानों तक पहुंचाया जाए ताकि दीवाली के दिन ही सही, कुछ पैसे मिल जाएं.
सूत्रों का कहना है कि अखबार से जुड़े लोग अब बुरी तरह आशंकित हैं. आलोक मेहता से सभी का मोहभंग होने लगा है. एक तरफ तो प्रबंधन नए संस्करण लांच करने की बात प्रचारित कराता है पर दिल्ली में ही इस अखबार में काम करने वालों के सामने खाने के लाले पड़ गए हैं. दिल्ली जैसी जगह में एक ईमानदार पत्रकार के लिए तीन महीने बिना सेलरी के रह जाना मुश्किल है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि नेशनल दुनिया के इमानदार साथी कितने मुश्किल हालात से गुजर रहे हैं.
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