Connect with us

Hi, what are you looking for?

No. 1 Indian Media News PortalNo. 1 Indian Media News Portal

उत्तराखंड

उत्तराखंड आपदा के लिये जिम्मेदार जलविद्युत परियोजनाएं क्या अब भी बनेंगी?

उत्तराखंड में 16-17 जून की त्रासदी के बाद जलविद्युत परियोजनाओं पर बहस तेज हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ में इस पर चिंता जाहिर करते हुए परियोजनाओं के निर्माण पर पाबंदी लगा दी हैं साथ ही केन्द्र सारकार को विशेषज्ञ सामिति गठित करने के निर्देश भी दिये हैं। उत्तराखंड़ बनने के बाद वर्ष 2000 में बनी भाजपा की अंतरिम सरकार ने उत्तराखंड को उर्जा प्रदेश बनाने का नारा दिया। इस होड़ में राज्य के भीतर अवैज्ञानिक तरीके से परियोजनाएं बनने लगी।

उत्तराखंड में 16-17 जून की त्रासदी के बाद जलविद्युत परियोजनाओं पर बहस तेज हो गयी है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ में इस पर चिंता जाहिर करते हुए परियोजनाओं के निर्माण पर पाबंदी लगा दी हैं साथ ही केन्द्र सारकार को विशेषज्ञ सामिति गठित करने के निर्देश भी दिये हैं। उत्तराखंड़ बनने के बाद वर्ष 2000 में बनी भाजपा की अंतरिम सरकार ने उत्तराखंड को उर्जा प्रदेश बनाने का नारा दिया। इस होड़ में राज्य के भीतर अवैज्ञानिक तरीके से परियोजनाएं बनने लगी।

जनता के हर इलाके में परियोजनाओं के खिलाफ आन्दोलन हुए, लेकिन सत्ता और परियोजना के मालिको की साठगांठ के चलते आन्दोलन से उठी आवाजों को दबा दिया गया। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने इन परियोजनाओं को बनाने के लिये मार्ग प्रषस्त किया। इस बार उत्तराखंड में आयी आपदा की भयावह तस्वीर ने फिर इन परियोजनओं के बारे में सोचने को मजबूर किया है। आज भी उत्तरखंड का शासक वर्ग परियोजना के पक्ष में खड़ा है। भूगर्भवेत्ताओं, जनपक्षीय संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा परियोजनाओं को निशाना बनाया गया है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीष केएस राधाकृश्णन की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश के बाद राज्य में परियोजना के पक्ष और विपक्ष में चल रही बहस और तेज हो गयी है। राज्य बनने के बाद अकेले गंगानदी घाटी में 11 परियोजनाऐं निर्माणाधीन हैं और 5 परियोजनाऐं विद्युत उत्पादन कर रही हैं। जबकि 41 परियोजनाऐं प्रस्तावित हैं।

राज्य में आयी आपदा को देखें तो गंगा नदी घाटी के इलाके में अलकनंदा में बनी 400 मेगावाट की विश्णुप्रयाग परियोजना का लामगड़ स्थित वैराज पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। पाण्डुकेष्वर और गोविन्दधाट की तबाही भी इसी से हुई है। 24 मेगावाट के सुपर हाइडो पावर प्रोजेक्ट के पास स्थित 98 परिवारों वाले भ्यूडार व पुलना जैसे खुषहाल गांव ध्वस्त हो गये। आज इन लोगों के पास खुले आसमान के अलावा कोई जगह नहीं बची है। अलकनंदा की सहायक खिरोगाड़ पर जीएमके जलविद्युत परियोजना की 150 नाली जमीन बह गयी। फूलों की घाटी की ओर से निकलने वाली अलकनंदा घाटी के आसपास का इलाका आज परियोजनाओं के कारण केवल मरघर बनकर रह गया है। जोषीमठ से 15 किमी दूर स्थित 530 मेगावाट के निर्माणाधीन तपोवन विश्णुगाड़ परियोजना का बैराज टूट गया है। पिछले वर्श इस परियोजना का काफर डाम टूट गया था। इसके सुरंग में टनल बोरिंग मशीन पिछले तीन वर्षों से फंसी हुई है।

बताया गया कि इस मशीन का प्रतिदिन का किराया दो करोड़ रूप्ये का है। इस निर्माणाधीन टनल में पिछले चार साल से खतरनाक तरीके से पानी रिसाव हो रहा है। जिससे पानी के स्रोतों और पारिस्थितिकीय पर खतरे के बादल नजर आ रहे हैं। गोविन्दघाट का भूगोल बदल गया है। पिंडर घाटी में सतलज जलविद्युत निगम की 252 मेगावाट की देवसारी जलविद्युत परियोजना के मलवे ने देवाल से लेकर कर्णप्रयाग तक तबाही मचायी। 12 वर्षों में एक बार होने वाली नंदाराजजात नौटी कर्णप्रयाग से पैदल निकलती है। कर्णप्रयाग से लेकर देवाल तक पैदल चलने के लिये रास्ते तक नहीं बचे हैं। इन दो माहों में सीमा सड़क संगठन और लोक निर्माण विभाग प्रकृति के इस मानवजनित ताण्डव के आगे हार मान चुका है।

सरकार की लाख कोशिश के बाद भी पैदल मार्ग तक नहीं बन पाया और नंदा राजजात यात्रा को स्थगित करनापड़। यह यात्रा के इतिहास में पहली बार हुआ है कि जब यात्रा स्थगित करनी पड़ी। रूप्रप्रयाग से श्रीनगर तक जीवीके कंपनी की निर्माणाधीन जलविद्युत परियोजनाओं ने खूब तबाही मचायी। आज श्रीनगर कस्बा स्वयं संकट में है। धारीदेवी मंदिर को लेकर होहल्ला मचाया जा रहा है। लेकिन श्रीनगर की चालीस फीसदी आबादी इस परियोजना के कारण बेघर हो गयी है। उत्तरकाषी में भागीरथी और उसकी सहायक नदियों में भी उत्पात मचाया।

पिथौरागढ़ जिले की गोरीगंगा तथा धौली गंगा में परियेाजनाओं के निर्माण में प्रयोग के तौर पर सुरंगें बन रही हैं। बागेश्वर जिले की सरयू नदी में बन रही परियोजनाओं की सुरंगों के निर्माण में किये गये अंधाधुंध विस्फोट और इससे निकले लाखों टन मलवे ने इन नदियों को तबाही मचाने में मदद की। उत्तराखंड में परियोजनाओं का जाल बिछाया जा रहा हैं इस त्रासदी में इन परियोजनाओं की क्या भूमिका रही इस पर गढ़वाल विष्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञानी डा. एसपी सती के अनुसार उत्तराखंड के विभिन्न नदियों पर लगभग 70 जलविद्युत परियोजनाऐं निर्माणाधीन हैं। श्रीनगर जलविद्युत परियोजना से ही 50 लाख घनमीटर मलवा नदी में डाला गया।

डा. सती का मानना है कि एक जलविद्युत परियोजना से दो लाख घनमीटर मलवा निकले तो भी सत्तर बांधों से एक करोड चालीस लाख घनमीटर मलवे को नदी किनारे डाला गया था। इस मलवे ने उत्तराखंड की त्रासदी को भयंकर रूप दिया। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के जानकार भूविज्ञानी डा.केएस वल्दिया का कहना है कि उत्तरखंड में इस बार की आपदा प्राकृतिक न होकर मानव जनित है। 45 वर्षों के शोध के आधार पर डा. वल्दिया का कहना है कि नदी घाटी क्षेत्रों में बन रही परियोजनाओं के निर्माण में विस्फोटक तथा मलवे के कारण उत्तरखंड में इस बार भयंकर त्रासदी देखने को मिली है। वे कहते हैं कि उत्तराखं डमें मोटर मार्गों का निर्माण भी वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया जा रहा है। राज्य बनने से पूर्व राज्य में 8 हजार किमी सड़कें थी जो आज 24 हजार किमी तक पहुंच गयी है। पहाड़ में 1 किमी सड़क बनाने में 25 हजार घन मीटर मलवा एकत्रित होता है। सीमा सड़क संगठन तथा लोक निर्माण विभाग सड़क निर्माण में निकले मलवे को नदी घाटी के इलाके में डाल रहे हैं। इसने भी आपदा की भयावहता को और बढ़ाया है।

उत्तरखंड को उर्जा प्रदेश का नाम देने वाली सत्ता हमेशा उत्तराखंड हिमालय के पर्यावरण और जनजीवन को आधार बनाने से मुकरती रही है। उत्तरखंड में बनने वाली परियोजनाओं के संदर्भ में किये गये भूगर्भ विभाग और उर्जा महकमे के सर्वे के अनुसार उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से चालीस फीसदी आबादी को विस्थापन का दंश झेलना है। परियोजनाऐं बनेंगी और पहाड़ खाली होगा इस तर्ज पर चल रहे विकास के योजनाकारों ने कभी यहां की परियेाजनाओं के उत्पादन लक्ष्य और वर्तमान स्थिति पर नजर डालने की कोशिश नहीं की।

उत्तराखंड में वर्तमान में चल रही परियोजनाओं से 20 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन का लक्ष्य है और इसके विपरीत मात्र 4 हजार मेगवाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। 4 सौ मेगावाट की विष्णुप्रयाग परियोजना से मानसून सीजन में केवल 150 मेगावाट बिजली पैदा होती है। एशिया की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना टिहरी बांध के बारे में सरकार ढोल पीटती रही लेकिन 2400 मेगावाट की इस परियोजना से मानसून सीजन में भी 600 मेगावाट से अधिक उत्पादन कभी नहीं हो पाया। पिथौरागढ़ जिले की धारचूला में बनी 280 मेगावाट की धौलीगंगा जलविद्युत परियेाजना से कभी भी 150 मेगवाट से अधिक उत्पादन कभी नहीं हुआ। इस बार गोरीगंगा में एनएचपीसी ने परियोजना निर्माण के लिये करोड़ों रूप्ये लागत की मषीनें नदी किनारे रखी हुई थी। जिन्हें नदी अपने साथ बहाकर ले गयी। उत्तराखंड में आयी इस तबाही के बाद परियोजनाओं से उत्तराखंड़ की जनता डरने लगी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अरूणांचल की तरह उत्तराखंड में बिना सुरंग, बिना बांध वाली परियोजनाओं को बनाकर उर्जा प्रदेश का लक्ष्य हासिल करने के लिये दबाव बनाने वाले जन संगठन और राजनैतिक ताकतें एक बार फिर खुलकर सामने आ गयी हैं। पंचायतों के अधीन 15 मेगवाट से कम उत्पादन की परियोजनाऐं बनाने की बात भी सामने आ रही है। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस हालिया फैसले के बाद और आपदा की इस त्रासदी के बाद सरकार क्या सीखती है।

जगत मर्तोलिया

उत्तराखंड

09411308833

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

… अपनी भड़ास [email protected] पर मेल करें … भड़ास को चंदा देकर इसके संचालन में मदद करने के लिए यहां पढ़ें-  Donate Bhadasमोबाइल पर भड़ासी खबरें पाने के लिए प्ले स्टोर से Telegram एप्प इंस्टाल करने के बाद यहां क्लिक करें : https://t.me/BhadasMedia 

Advertisement

You May Also Like

विविध

Arvind Kumar Singh : सुल्ताना डाकू…बीती सदी के शुरूआती सालों का देश का सबसे खतरनाक डाकू, जिससे अंग्रेजी सरकार हिल गयी थी…

विविध

: काशी की नामचीन डाक्टर की दिल दहला देने वाली शैतानी करतूत : पिछले दिनों 17 जून की शाम टीवी चैनल IBN7 पर सिटिजन...

प्रिंट-टीवी...

सुप्रीम कोर्ट ने वेबसाइटों और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट को 36 घंटे के भीतर हटाने के मामले में केंद्र की ओर से बनाए...

सुख-दुख...

Shambhunath Shukla : सोनी टीवी पर कल से शुरू हुए भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप के संदर्भ में फेसबुक पर खूब हंगामा मचा।...

Advertisement