देहरादून। बंदर का नाम जुबान पर आते ही हर कोई उसकी मारी जाने वाली गुलाटियो को लेकर आश्चर्यचकित रहता है। लेकिन उत्तराखण्ड में गंजा बंदर के नाम से एक व्यक्ति दलाली की पटकथा लिखकर आज दस करोड़ का कारोबारी बन बैठा है। हमेशा से ही राजनेताओ के इशारे पर नाचने वाला यह बंदर अब खुद का अपना साम्राज्य चलाकर शासन से लेकर बड़े अधिकारियों के तबादलों में भी मोटी दलाली कर रहा है। उसकी इस दलाली की भनक सरकार के सबसे बड़े आका के कानो में भी गूंजनी शुरू हो गई है लेकिन आका का विश्वासपात्र होने के कारण उस पर नकेल कसने के बजाए उसे लूट की खुली छूट दे दी गई है।
पिछले कई दिनों से उत्तराखण्ड के आईएएस व पीसीएस अधिकारियों के तबादलो को लेकर मोटी डील इसी गंजे बंदर के इशारे पर अंजाम दी गई और पहाड़ से मैदान में उतारे जाने वाले कई अधिकारियो से मोटी रकम लिए जाने की बातें गोपनीय रूप से सत्ताधारी दल के नेताओं के कानों में भी जा गूंजी। बंदर की गुलाटियों से परेशान राजनेता अब इसकी शिकायत दिल्ली के बड़े दरबार में करने का मन बना रहे हैं और बंदर की इन करतूतों को जगजाहिर करने का खाका भी तैयार कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड के किसी भी जनपद में भले ही यह गंजा बंदर अपनी राजनैतिक जमीन चमकाने में नाकामयाब साबित हुआ हो लेकिन बड़े आका को चुनाव लड़वाने से लेकर टिहरी के उपचुनाव में उस व्यक्ति की महत्पूर्ण भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उत्तराखण्ड में जिसे राजनीति का चाणक्य कहा जाता है उसके साथ गंजे बंदर ने मिलकर किला तो किसी तरह फतह कर लिया लेकिन टिहरी के उपचुनाव में इस गंजे बंदर का चाणक्य प्रेम उससे दूर होता चला गया और चाणक्य ने गंजे बंदर का साथ छोड़कर इसकी शिकायत कर डाली जिसका परिणाम यह रहा कि चाणक्य के द्वारा की गई शिकायत को सही मानते हुए अब गंजे बंदर पर नकेल कसने की तैयारी की जा रही है।
चंडीगढ़, दिल्ली व उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर इस गंजे बंदर की अकूत सम्पत्ति होने की खबरें भी अब दिल्ली दरबार तक जा पहुंची है और अब 2014 के चुनाव से पहले प्रदेश के आका भी अपने वजीर के साथ इससे किनारा करने की जुगत में जुटे हुए हैं। राजनैतिक जमीन हासिल करने के लिए इस बंदर द्वारा अपने विधानसभा क्षेत्र में कई बार जनता के बीच जगह बनाने की कोशिश की गई लेकिन जनता ने कभी भी बंदर का साथ नही दिया और एक राजनेता को ठिकाने लगाने में इस बंदर ने जो भूमिका निभाई अब उस भूमिका को वह राजनेता बंदर के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है।
लालबत्ती की आस में लगा वह राजनेता अब प्रदेश के आका से टकटकी लगा देख रहा है लेकिन उसकी राह में बंदर ने अपनी गुलाटियां मारनी शुरू कर दी हैं लेकिन इस राह में अब ऐसी जानकारियां रोड़ा बनती जा रही हैं जो हार का कारण माना जा रहा था। धरातल पर जनता के बीच विश्वास कायम करने के बजाए बंदररूपी दलाल का भरोसा करना आका को भी महंगा साबित हुआ और अपने वजीर को टिहरी का उपचुनाव हरा बैठे। प्रदेश से लेकर दिल्ली दरबार तक हार के चलते राजनैतिक दृष्टिकोण की परीक्षा भी बड़े आका की हो गई और पहली राजनैतिक पारी शुरू करने से पहले ही कारपोरेट वजीर बंदर की गुलाटियों का शिकार हो गया।
सूत्र यह भी बताते हैं कि चकराता रोड के जिस एमडीडीए प्रोजैक्ट को लेकर शासनस्तर पर कार्यवाही चल रही है उसमें बंदर की भी हिस्सेदारी कारपोरेट जगत से है और इस मामले मे रोड़ा बनने वाले एमडीडीए के उपाध्यक्ष को भी अब वहां से बाहर का रास्ता दिखाया जाना तय हो गया है। सत्ता का केन्द्र बिन्दु बनने की ललक गंजे बंदर को तब लगी जब पहली डील की कमाई में राजनेताओ का आर्शीवाद बड़े स्तर पर मिलना शुरू हुआ। इसके बाद चंडीगढ़ में कारोबार की जड़ों को बढ़ाकर बड़े नेताओ से सम्पर्क बढ़ा लिया।
देहरादून से नारायण परगईं की रिपोर्ट.