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सुख-दुख...

उत्‍तराखंड में विज्ञापन नियमावली की आड़ में लघु समाचार पत्रों की हत्‍या की कोशिश

 

देहरादून। उत्तराखंड में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर विज्ञापन नियमावली की आड़ में अघोषित आपात लगाने की तैयारी में विजय बहुगुणा की सरकार लग गई है। ऑपरेशन गला घोटू की जिम्मेदारी दी गई है भाजपा के मुख्यमंत्री रहे बीसी खंडूड़ी के खासमखास अधिकारियों में शुमार आईएएस अधिकारी दिलीप जावलकर को।

 

देहरादून। उत्तराखंड में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर विज्ञापन नियमावली की आड़ में अघोषित आपात लगाने की तैयारी में विजय बहुगुणा की सरकार लग गई है। ऑपरेशन गला घोटू की जिम्मेदारी दी गई है भाजपा के मुख्यमंत्री रहे बीसी खंडूड़ी के खासमखास अधिकारियों में शुमार आईएएस अधिकारी दिलीप जावलकर को।
 
हालांकि उत्तराखंड प्रिंट मीडिया विज्ञापन नियमावली-2012 नाम की जो साजिश रची जा रही है उसका पूरा तानाबाना बुना है उत्तराखंड सूचना निदेशालय में अपर निदेशक डा. अनिल चंदोला ने। चंदोला की गिनती राज्य में हरीश रावत के किचन कैबिनेट में शामिल लोगों में की जाती है। डा. चंदोला भाजपा सरकार में भी काफी रसूखदार अधिकारी माने जाते थे। ये जितने भ्रष्‍टाचार के लिए कुख्यात रहे भाजपाई मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक के करीबी थे, उतने ही तथाकथित ईमानदार मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूरी की भी नजदीकी प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। इससे डा. चंदेाला की डिप्लोमेटिक अनुभव का अंदाजा लगाया जा सकता है।
 
चंदोला जी महिला सशक्तिकरण के प्रखर हिमायती भी हैं, तभी तो इन्होंने देहरादून में एक महिला पत्रकार को आज 21 समाचार पत्रों की मालकिन बना दिया। चर्चाओं की माने तो चंदेाला जी जब भी स्टेशन रोड पर स्थित एक प्लाजा के आसपास देखे गए तभी महिला पत्रकार के अखबारों की सूची में एक अखबार की वृद्धि हो गई। खैर चंदोला जी की गुणगाथा के कई अध्याय है जिनका वाचन किया जाएगा तो कई दिन लग जाएंगे। जैसे चंदोला जी बहुत कम बोलते हैं, लोगों को खुश रखते हैं और जिसने इनके कारनामों पर उंगली उठाई उसका बोरिया बिस्तर बंधवाने की महारत भी रखते हैं।
 
लेकिन इनकी जो सबसे बड़ी खूबी है वो है मुख्यमंत्री के साथ साथ इनके विभाग में कोई भी महानिदेशक आए उसे ये तुरंत पटाने में भी माहिर हैं। उससे सारे अच्छे बुरे काम करवाएंगे और उसने अगर जरा भी अपनी वरिष्‍ठता दिखाई तो अपने तलवे चाटने वाले पत्रकारों के माध्यम से उसके खिलाफ ऐसी साजिश रचते हैं कि उसे अपना बोरिया बिस्तर उठाकर भागने के लिए विवश होना पड़ता है। इसके उदाहरण हैं पूर्व महानिदेशक अरविंद सिंह हयांकी, आईएएस अक्षत गुप्ता, आईएएस सुबर्द्धन, विनोद शर्मा और शायद इसी कड़ी में जल्द ही आईएएस और राज्य में ईमानदार अधिकारी होने की छवि बना चुके दिलीप जावलकर का नाम भी इस जुड़ जाए।
 
जी हां आईएएस दिलीप जावलकर की छवि राज्य में ईमानदार अफसर की है और उन्होंने पौड़ी और देहरादून में जिलाधिकारी के रूप में अपने आप को ईमानदार और तेजतर्रार साबित भी किया है। लेकिन जैसे ही राज्य में निजाम बदला और जावलकर को अपर सचिव मुख्यमंत्री के साथ साथ महानिदेशक सूचना की जिम्मेदारी मिली डा. अनिल चंदोला ने इनके आगे पीछे घूमना शुरू कर दिया। लेकिन दिलीप जावलकर के सामने जब इनकी नहीं चली और उन्होंने इनसे साफ कह दिया कि मैं इस विभाग की छवि को सुधारने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हूं और अब यहां पर पुराने ढर्रे में बदलाव किया जाएगा तो चंदोला के पैरों तले जमीन खिसक गई। 
 
चंदोला को जब लगा कि अब जावलकर के रहते उनका काम धाम बंद होने वाला है तो उन्होंने तुंरत अपने दिमाग को सक्रिय कर दिया और अपने हमराज अधिकारियों वित्त अधिकारी ओमप्रकाश पंत, व्यवस्था अधिकारी कलमसिंह चौहान, प्रशासनिक अधिकारी चंद्रसिंह तोमर, रमेशराम आर्य जैसे लोगों की एक गुप्त बैठक बुलाई, जिसमें दिलीप जावलकर के इरादों को बताया। बताया जा रहा है कि लंबी चर्चा और विचार विमर्श के बाद इन लोगों ने एक ऐसा रास्ता निकाला जिससे जावलकर की तेजी धरी की धरी रह गई और वे फंस गए अपने ही लोगों के एक ऐसे जाल में जिससे निकलना शायद उनके लिए मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। जी हां जो उत्तराखंड प्रिंट मीडिया विज्ञापन नियमावली-2012 भाजपा के पांच साल के शासन में धूल खा रही थी उसे बहुगुणा के छह माह के कार्यकाल में ही निकाला और जावलकर को ऐसी पट्टी पढ़ाई कि वे इसे लागू करने के लिए अड़ गए हैं।
 
अब जैसे ही दिलीप जावलकर ने इस नियमावली को इंप्लीमेंट करने की घोषणा की देहरादून के पत्रकार जगत में आग लग गई। क्योंकि इस नियमावली में जो प्रावधान किए गए है वह न सिर्फ यहां के लघु समाचार पत्रों का गला घोंट देंगे बल्कि आठ सौ से अधिक समचार पत्रों में काम करने वाले तकरीबन ढाई हजार लोगों को एक झटके में बेरोजगार भी कर देंगे। बेरोजगारी के इस दौर में जो सड़क पर आएगा तो वह न तो विजय बहुगुणा की सरकार को बख्शेगा और न ही अभी तक अच्छे अधिकारी की छवि बना चुके दिलीप जावलकर को। अब इस नियमावली के लागू होने पर नुकसान न केवल लघु समाचार पत्रों को होगा बल्कि की विषम परिस्थितियों में सरकार चला रहे विजय बहुगुणा की कुर्सी भी हिलनी तय है। इसका विरोध शुरू भी हो गया है। 
 
जिस दिन नियमावली बनने की खबर देहरादून के पत्रकारों को लगी उसी दिन उन्होंने उत्तराखंड संयुक्त पत्रकार संघर्ष समिति का गठन कर अपना नेतृत्व आरटीआई एक्टिविस्‍ट और राष्‍ट्रीय स्वरूप अखबार के ब्यूरोचीफ सुरेन्द्र अग्रवाल को सौंप दिया। उज्जवल रेस्टोरेंट में पत्रकारों की आपात बैठक हुई उसमें तय किया गया कि इसके विरोध में सूचना दिनेशालय पर धरना दिया जाए। धरना भी अपने नियत समय पर हुआ और पत्रकारों ने वहां पर न सिर्फ दिलीप जावलकर का पुतला फूंका बल्कि व्यस्ततम ईसी रोड को ढाई घंटे जाम कर दिया, जिसके चलते सीओ डालनवाला मणिकांत मिश्रा को भारी पुलिस बल के साथ आना पड़ा लेकिन उनके कहने पर भी पत्रकारों ने जाम नहीं खोला तो अंत में खुद महानिदेशक सूचना दिलीप जावलकर को धरना स्थल पर आना पड़ा। दिलीप जावलकर आए तो सीधे पत्रकारों के बीच पहुंच गए। बातचीत हुई लेकिन जावलकर ने नियमावली में ढील देने से मना किया, जिससे दोनों पक्षों से बातचीत के रास्ते बंद हो गए और आन्दोलित पत्रकारों ने फिर जावलकर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
 
हालांकि इसमें एक उल्लेखनीय और निंदनीय बात यह रही कि ढाई सौ पत्रकारों के धरने को अपने आप को लोक मीडिया कहने वाले चार प्रमुख समाचार पत्रों दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान और राष्‍ट्रीय सहारा ने अपने यहां कोई स्थान नहीं दिया। हालांकि इन समाचार पत्रों का दावा है कि हम किसी के दबाव में नहीं आते और सच को सच कहने की हिम्मत रखते हैं लेकिन जिस दिन पत्रकारों का धरना हुआ उस दिन सूचना के भगवान यानी डा. चंदोला ने इन सभी समाचार पत्रों को खुद फोन किया और अपने ढंग से समझा दिया कि इन पत्रकारों की खबर यदि छपती है तो उसका इनको क्या नुकसान हो सकता है और नहीं छपती है तो क्या फायदा हो सकता है। हालांकि चंदोला ने ऐसा इसलिए नहीं किया कि खबर छपेगी तो बात मुख्यमंत्री तक पहुंचेगी बल्कि उन्होंने ऐसा शायद इसलिए किया कि अगर मुख्यमंत्री को पता चला तो वे इस नियमावली को रद्द करने का आदेश दे देंगे। 
 
खैर इस बात को दिलीप जावलकर जैसा अधिकारी नहीं समझ रहा होगा ये मानना भी थोड़ा मुश्किल है। इससे लगता है कि वे खुद इस विभाग के लोगों से उब गए हैं और चाह रहे है कि उन्हें यहां से जल्दी हटा दिया जाए। बहरहाल मुख्यमंत्री कई दिनों से आपदा को लेकर दिल्ली में हैं और पत्रकार संघर्ष समिति ने दिलीप जावलकर के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी, मुख्य सचिव आलोक जैन और सचिव सूचना आईएएस एमएच खान से मुलाकात कर अपना दुःख इन अधिकारियों को सुनाया है और लिखित में ज्ञापन भी दिया है। कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने जहां तुंरत अपने मोबाईल से मुख्यमंत्री से बात कर इसका विरोध किया है वहीं एनडी तिवारी और मुख्य सचिव आलोक जैन ने भी पत्रकारों को उनके साथ अन्याय न होने देने का आश्‍वासन दिया है। रिपोर्ट लिखे जाने तक जहां पत्रकारों ने अपनी लड़ाई को और व्यापक रूप देते हुए मुख्यमंत्री आवास घेरने का फैसला किया है साथ ही इन पत्रकारो ने डा. अनिल चंदोला की कुटिल चाल को समझते हुए उन पर निशाना लगाने का निर्णय लिया है। पत्रकारों ने डा. अनिल चंदोला की कुछ सालों में जमा की अकूत संपत्ति का आरटीआई के माध्यम से खुलासा करने की योजना भी बनाई है। बहरहाल इस लड़ाई का अंजाम क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
 
देहरादून से एक पत्रकार द्वारा भेजी गई रिपोर्ट. 
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