Vineet Kumar : रेल बजट का दिन था और रेल म्यूजियम में सभी चैनलों के सेट लगे थे. तब आजतक पर पुण्य प्रसून वाजपेयी की सांसें अटक गयी थी. लालू हेडलाइंस टुडे पर जुझार सिंह को बुरी तरह लताड़कर, ''लंदन से पढ़के आए हो, अंगरेजी से पुटपुटियाने से काबिल हो जाओगे'' जैसी बातें करने और लगभग एक मिनट में ही सेट से उठकर चले जाने के बाद आजतक पहुंचे थे. आते ही उन्होंने जोर से झल्लाते हुए कहा था- आपलोग हम पर चुटकुला चला रहे हो.. प्रसूनजी लगातार कह रहे थे- ''नहीं लालूजी, ऐसा नहीं है''.
लालू बोले- ''भक्क, हमको बुडबक समझते हैं, हम देख नहीं रहे थे कि क्या कर रहा था आपका चैनल घंटों से.'' खैर.. पुण्य प्रसून वाजपेयी ने सवाल-जवाब का दौर शुरू ही किया कि अभी ढाई मिनट भी नहीं हुए होंगे कि लालू प्रसाद कान से इपी आदि निकालकर उठ खड़े हुए और शाल को झाड़ते हुए कहा- ''चलो रे, यहां से..इ लोग नाकाबिल समझता है हमलोगों को'' और आजतक को भला-बुरा कहते हुए निकल लिए. हम इन्टर्न दोपहर से ही रेलभवन में मौजूद थे. भारी थकान के बीच थोड़ा उत्साहित भी कि तीन फीट दूरी से एक ही साथ लालू प्रसाद और सबसे पसंदीदा प्यारे एंकर पुण्य प्रसून को बातचीत करते देख सकेंगे..
लेकिन इस घटना के बाद हम सबके चेहरे मुरझा गए. मेरे साथ गेस्ट कार्डिनेशन में इन्टर्नशिप कर रहे आशीष ( Ashish Singh ) पूछने लगे- अब क्या होगा मैम? इन्चार्ज ने कहा- कुछ नहीं और तुम लोग इस तरह उदास क्यों हो, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम जिस चैनल में काम कर रहे हो वहां ऐसे धारदार लोग हैं जिनके सवाल से रेलमंत्री इस तरह तिलमिला जाते हैं. बाकी देखा ऐसा किसी चैनल पर.. हमारे भीतर थोड़े देर के लिए सच में सबसे तेज चैनल से जुड़ने का गर्व हुआ और हम अकेले दिन के जनपथ कार्यक्रम के लिए वापस लौट आए.. लालू प्रसाद का वो तेवर मेरी आंखों के सामने अब भी नाच रहा है.
युवा मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार के फेसबुक वॉल से.