उस लड़की ने उन्हें बताया कि उस वरिष्ठ साथी ने रात में उस लड़की से बलात्कार किया!

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Samar Anarya : फेसबुक पर कुछ लोग बहुत कहानियाँ सुना रहे हैं.. जहरीली बूंदों की कहानियाँ. बहुत दिन सोचा चुप रहूँ पर अब अब खामोश रहना जुर्म में शरीक रहना होगा सो इन कहानियों के जवाब में सच सुनाता हूँ.. हुआ यह था कि उड़ीसा से लौट दिल्ली आने की पहली शाम ही आदतन एक बहुत प्यारे कामरेड और पुराने दोस्त के घर चला गया था. उस शाम हो रही बातचीत के बीच अचानक पुरानी और प्यारी दोस्त और कामरेड Ila Joshi का फोन आया. फोन पर उन्होंने जो कहा वह होश उड़ा देने वाला था, स्तब्ध करने वाला था. खैर, उस फोन के बाद ज्यादा देर वहाँ बैठना मुनासिब नहीं था सो निकल आया.

फिर इला और Mayank ही नहीं बल्कि लगभग पूरी टीम बूँद से दिल्ली कॉफ़ी हाउस में मुलाकात हुई. जो नाम याद हैं उनमे Gaurav Gupta, Nalin Mishra, KaliKant Jha, Pauline Huidrom, स्वाति मिश्र और कुछ और. खैर, वहाँ इला ने बताया कि एक रात टीम बूँद के कुछ दोस्त एक वरिष्ठ कामरेड साथी के घर गए थे जहाँ बहुत शराब पी लेने के बाद समूह की एक महिला साथी की हालत बहुत ख़राब हो गयी. जिनको उस वरिष्ठ साथी के तमाम बार साथ ले जाने के या कमसेकम बूँद के किसी सदस्य के रुकने के आग्रह को नकार पूरी टीम बूँद उस लड़की को वहाँ अकेला छोड़ चली गयी. इला के मुताबिक़ फिर उस लड़की ने उन्हें बताया कि उस वरिष्ठ साथी ने रात में उस लड़की से बलात्कार किया.

मुझे अभी भी याद है कि अविश्वास से लेकर नफरत तक के कितने भाव मेरे मन में एक साथ आये थे. मेरी पोजीशन बिलकुल साफ़ थी कि ऐसे मामलों में लड़की का बयान ही सही माना जाना चाहिए चाहे फिर आरोपी आपका कितना ही करीबी क्यों न हो. मैंने इला, मयंक और पूरी टीम बूँद (वहाँ मौजूद) को यही कहा कि उन्हें तुरंत उस व्यक्ति के खिलाफ़ एफआईआर करनी चाहिए, और साथ ही उसे कनफ्रंट करना चाहिए. मैंने अपनी यह पोजीशन भी साफ़ कर दी थी कि मैं साथ जाकर उस व्यक्ति को कन्फ्रंट करने को तैयार हूँ. तीसरी बात यह कही कि कानूनी कार्यवाही के साथ साथ उसका सामाजिक बहिष्कार करवाना चाहिए और उसके लिए मैं मेरी और उनकी साझा महिला मित्रों से मैं इस विषय में बात कर सकता हूँ और मुझे करनी चाहिये.

पर आश्चर्यजनक तरीके से इनमे से किसी भी बात पर इला, मयंक और वहाँ मौजूद और दोस्त तैयार नहीं हुए. पीड़िता (नाम नहीं ले रहा अभी, क्योंकि जहरीली बूंदों के जहर के बावजूद सामाजिक और कानूनी दोनों नैतिकताओं का सम्मान करता हूँ, पर आप मजबूर करेंगे तो नाम ले भी सकता हूँ) ने भी इससे साफ़ इनकार कर दिया. उनका तर्क था कि लड़की तैयार नहीं है, उसके सम्मान पर असर पड़ेगा, उसका कैरियर ख़त्म हो जाएगा. टीम बूँद जैसे बड़े दावों वाले संगठन की सदस्य से ऐसी बात सुनना दुखी तो करता है पर फिर, अपने निर्णय लेने की एजेंसी लड़की की है इस समझदारी के साथ मैंने एफआईआर न करने वाली बात मान ली पर कन्फ्रंट करने की जरुरत पर जोर दिया. काफी देर तक हुई बात के बाद यही बात तय पायी गयी. खैर, उसके बाद मैं लगभग रोज इन लोगों को फोन करता रहा कि आज कन्फ्रंट करें, आज करें पर वापस हांगकांग आने तक इनका जवाब कभी नहीं आया.

एक बात और साफ़ कर दूं कि इस पूरे दौर में मैंने उस व्यक्ति से बातचीत बंद कर दी थी पर फिर भी एक बात जो लगातार खटक रही थी वह यह कि ये लोग उस व्यक्ति पर सिर्फ आरोप लगा रहे हैं,और कोई कानूनी या सामाजिक कार्यवाही नहीं कर रहे. फिर अचानक एक दिन टीम बूँद के अन्दर चल रहे घमासान के बारे में खबरें (फेसबुक से ही) मिलनी शुरू हुईं. आर्थिक घपलों की खबरें, टीम पर कब्जे को लेकर लड़ाई की खबरें. और उन्ही के साथ टीम बूँद के कुछ लोग जहरीली बूंदों में तब्दील हो उस व्यक्ति के खिलाफ जहर बुझी पोस्ट्स लगाने लगे.

अब मामला कुछ कुछ साफ़ हो रहा था कि कहीं वह आदमी टीम बूँद की आंतरिक राजनीति का शिकार तो नहीं बनाया जा रहा? फिर थोड़े गुस्से में इला और मयंक को फोन किया कि मामला क्या हुआ? उन्होंने अबकी बार जो बताया वह तो और भी स्तब्ध करने वाला था. या कि तथाकथित पीड़िता ने स्वीकार कर लिया था कि वह झूठा आरोप लगा रही थी. यही नहीं, इन दोनों ने मुझे यह भी बताया कि इस सन्दर्भ में टीम बूँद के तमाम सदस्यों के साथ उस व्यक्ति के घर में मीटिंग हुई जिसमे मयंक, इला Pushpendra Singh और अन्य लोगों के साथ Manisha Pandey को भी बुलाया गया था. उस मीटिंग में टीम बूँद के (वहाँ मौजूद) सदस्यों ने माना कि आरोप गलत हैं, झूठे हैं और उन्होंने उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी और सार्वजनिक माफ़ी मांगने का वादा किया.

मैं अब और भी स्तब्ध था. कि यह सब हो गया और मुझे बताया भी नहीं जबकि आरोप के ठीक बाद पहला फोन मुझे किया गया था. उसके बाद और कमाल तब हुआ जब मुझे पता चला कि उस मीटिंग में उस व्यक्ति को यह बताया गया कि टीम बूँद वालों को तो यकीन ही नहीं हुआ, वह तो जब उन्होंने मुझे फोन किया और मैंने कहा कि ऐसे मामलों में पहली नजर में लड़की का पक्ष ही मानना चाहिए और इसीलिए उन लोगों ने कार्यवाही करने का निर्णय लिया. (वैसे मझे इस बात का गर्व है, और अपनी पोजीशन आगे भी यही रहने वाली है, फिर सामने कितना भी जरुरी दोस्त क्यों न हो).

खैर, उसके बाद मैंने वह किया जो मुझे करना चाहिए था. मयंक और इला को फोन और उन्हें या तो कानूनी कार्यवाही करने की या माफ़ी मांगने की सलाह. जब उन्होंने नहीं मांगी, तो मैंने एक स्टेटस लगाया जिसके बाद उन्होंने पहली बिना नाम की माफ़ी मांगी. पर मैं और ठगे जाने को तैयार नहीं था. उसके बाद दूसरा स्टेटस लगाया जहाँ सार्वजनिक चरित्रहनन के लिए सार्वजनिक माफ़ी की बात की. और इसी के बाद मयंक और इला ने टीम बूँद की तरफ से उस व्यक्ति से माफ़ी मांगी.

फिर इस कथा का अगला दौर शुरू हुआ. टीम बूँद के दूसरे खेमे के लोगों द्वारा अपनी राजनीति के लिए उस व्यक्ति को मोहरा बनाने का खेल जिसका नेतृत्व कोई जहरीला तपन नामक आदमी कर रहा है. इस खेल की खबर मुझे तब लगी जब कामरेड Girijesh Tiwari ने मुझे बताया कि जहरीला तपन कोई वीडिओ लेकर उनसे मिलने आजमगढ़ तक गया. उन्होंने यह भी बताया कि जहरीला तपन ने यह माना कि यह वीडिओ नरेंद मोदी भक्त मधु किश्वर के घर में बनाया गया, क्यों यह हममें से कोई नहीं जानता. यह भी कि वह व्यक्ति यह वीडिओ लेकर गली गली घूम रहा है,.

मुझे लगता है कि अब इस मुद्दे से सीधे टकराने का वक़्त आ गया है. वक़्त आ गया है कि अगर इन लोगों को लगता है कि कुछ ऐसा हुआ है तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ पीड़िता के साथ कानूनी और सार्वजनिक दोनों कार्यवाहियाँ शुरू करें और मेरा वादा है कि मैं पीड़िता के साथ खड़ा रहूँगा. और अगर वह ऐसा नहीं करें तो साफ़ होगा कि वह इस कहानी के बहाने कोई और खेल खेल रहे हैं और यह नाकाबिले बरदाश्त है. सो अब सीधी चुनौती है, न्याय की लड़ाई लड़नी है तो सामने आकर लड़ने की हिम्मत करें, और नहीं तो इतना तो सामने आयें ही कि वह व्यक्ति आप पर कार्यवाही कर सके.

सो साहिबान, वीडियो ही नहीं, पूरी कहानी नाम के साथ सार्वजनिक कर दें. फुसफुसाहटों से न्याय नहीं पाया जा सकता न.

[उस वरिष्ठ साथी का नाम इसलिए नहीं लिया क्योंकि मैं चाहता हूँ कि यह महान काम वह लोग करें जिससे अगर वे मुकदमा न करें तो उस साथी को उनपर मानहानि का दावा कर 'डैमेजेज' मांग सकें. इसलिए भी कि वह समझ सकें कि पीड़िता का आविष्कार नहीं किया जा सकता, या तो कोई पीड़िता है, या नहीं है. सो जो बात हो साफ़ हो, सीधी हो.]

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी अविनाश पांडेय 'समर' के फेसबुक वॉल से.

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