मीडिया जगत में तहलका के तरुण तेजपाल ने तहलका मचा दिया है. उन पर अपनी बेटी की उम्र की एक लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप है. ये पीड़ित लड़की तेजपाल की मैगजीन तहलका में काम करती है. पुलिस के पास मामले के पहुंचने से पहले तेजपाल ने गजब की तेजी दिखाई. आरोप स्वीकारा और खुद को 6 महीने के लिए संपादक पद से हटने की सजा दी. ऐसे में सवाल है कि खुद अपराधी ही अपने अपराध की सजा देने लगे तो फिर कानून की कोई ज़रूरत ही नहीं है. कानून सबके लिए एक जैसा होना चाहिए चाहे वो आसाराम हो या फिर तरूण तेजपाल.
कई चैनलों में काम करने के बाद मेरा अनुभव कहता है कि न्यूज चैनलों में भी तरूण तेजपाल जैसे कई मीडिया के मठाधीश हैं जो महिला पत्रकारों को एंकर और रिपोर्टर बनाने के नाम पर उनका शोषण करते हैं. तेजपाल गिरफ्तार हो चुके हैं. काश तहलका की उस महिला पत्रकार की तरह चैनलों की पीड़ित महिला पत्रकार भी मीडिया मठाधीशों की कारगुजारियों का खुलासा करें ताकि वे भी गिरफ्तार हो सकें.
आमतौर पर मीडिया फिल्मों और टीवी इंडस्ट्री में हुए कास्टिंग काउच को बड़े ज़ोर-शोर से दिखाता रहता है. इंडिया टीवी ने अमन वर्मा और शक्ति कपूर जैसे फिल्मी कलाकारों का स्टिंग आपरेशन किया था जिसमें तथाकथित इस चैनल की रिपोर्टर कामदेवी बनकर इन कलाकारों से बात करती है और फिल्मों में काम पाने के बदले कुछ भी करने को तैयार दिखती है. इस स्टिंग आपरेशन की जमकर आलोचना हुई थी. शार्टकट सफलता पाने के लिए अगर कोई लड़की कुछ भी करने को तैयार हो ऐसे में अगर उसका शोषण होता है तो कहीं न कहीं इसके लिए वो खुद भी ज़िम्मेदार है. मीडिया खास तौर पर टीवी मीडिया के बारे में दिया तले अंधेरा वाली कहावत सिद्ध होती है, क्योंकि अलग-अलग जगह हो रहे महिलाओं के शोषण के मुद्दे हों या फिर आए दिन होने वाले बलात्कार के मामले हों. चैनल वाले ऐसी खबरें खूब दिखाते हैं लेकिन जब बात अपनी बिरादरी की हो तो उन्हें सांप सूंघ जाता है. इसके पीछे कारण ये होता है कि लगभग सभी चैनलों में ऐसे मीडिया मठाधीश मौजूद हैं जो अपनी बेटी या भतीजी की उम्र की इंटर्न को जॉब दिलाने के नाम पर या फिर एंकर और रिपोर्टर बनाने के नाम पर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं.
मैंने खुद एक बड़े चैनल के हेड के साथ काम किया था जिन्होंने न्यूज रूम में खुलेआम कहा था कि वे एक दिन इस चैनल को सिर्फ महिलाओं के बलबूते चलाएंगे. इस वाक्य के दो तरह के अर्थ निकलते हैं. एक तो महिलाओं को सशक्त बनाने वाली भावना तो दूसरी महिलाओं के प्रति कामभावना. ऐसे में न्यूज सेलेब्रिटी बनने की इच्छुक कई लड़कियां ऐसे मठाधीशों के बहकावे में आ जाती है और कुछ दिनों या महीनों के लिए ही सही एंकर या रिपोर्टर बन भी जाती हैं. टीवी मीडिया में ऐसी लड़कियों की संख्या बहुत ज्यादा है जो सिर्फ लड़की होने के कारण ही सफलता प्राप्त करने की कोशिश करती हैं. हालांकि सभी लड़कियां और सभी बॉस एक जैसे नहीं होते. मैं ऐसी भी लड़कियों को जानता हूं जो वास्तव में टैलेंटेड हैं लेकिन वे बास के बहकावे में नहीं आई. वे उत्पीड़न से इतना परेशान हुईं कि उनका मीडिया से मोहभंग हो गया. इस तरह से वे चैनलों की चक्की में पिसने से बच गईं. तो दूसरी तरफ मेरे संज्ञान में ऐसी भी लड़कियां है जो कभी इंटर्न हुआ करती थी, देखते ही देखते वे सीनियर एंकर और प्रोड्यूसर बन गई.
कमोबेश ऐसी लड़कियां और ऐसे मीडिया मठाधीश हर चैनल में हैं जो कास्टिंग काउच को बढ़ावा दे रहे हैं. इससे साफ है कि मीडिया के अंदर ही महिलाएं सुरक्षित नहीं है. अगर लड़कियां चैनलों में हो रहे कास्टिंग काउच का खुलासा करें या फिर शारीरिक और मानसिक शोषण करने वाले मीडिया मठाधीशों का स्टिंग आपरेशन करें तो फिर अनेकों तेजपालों का खुलासा हो सकता है. मीडिया रूपी दिये तले बहुत अंधेरा है जिसे उजाले में बदलने के लिए खुद मीडियाकर्मियों को आगे आना होगा. चैनलों में हो रहे कास्टिंग काउच को उजागर करने के लिए पीड़ित महिला पत्रकारों को आगे आना होगा. महिलाओं को भी अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करना चाहिए. चैनल मालिकों को महिलाओं का शोषण करने वाले पत्रकारों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा. मीडिया के किसी बड़े पत्रकार या नेता के प्रभाव में आए बिना कानून को अपना काम ईमानदारी से करना होगा तभी मीडिया के अंदर महिलाएं सुरक्षित हो सकेंगी.
लेखक अरुणेश द्विवेदी ईटीवी न्यूज़, साधना न्यूज़, सीएनईबी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ में काम कर चुके हैं. वर्तमान में वे मंगलायतन विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रवक्ता हैं. इनसे arunesh.dwivedi@mangalayatan.edu.in के जरिए सम्पर्क किया जा सकता है.