राजीव शुक्ला की कहानी भी देर सबेर आनी ही थी. आखिर करप्शन की बहती गंगा में वो भी डुबकी क्यों न लगाएं. पता नहीं फिर मौका मिले या न मिले. पत्रकार से नेता बने और जोरदार लायजनर के रूप में कुख्यात राजीव शुक्ला की कंपनी को कौड़ियों में दे दिए गए करोड़ों रुपये के प्लॉट. मामला मुंबई का है. बीएफईएस यानि बैग फिल्म्स एजुकेशन सोसाइटी को करोड़ों रुपये के प्लाट करीब 35 साल पुराने रेट पर आवंटित कर दिए गए. इस बारे में मुंबई मिरर ने खबर प्रकाशित की है. अब यह खबर सोशल मीडिया पर फैलने लगी है.
केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला की बैग फिल्म्स एजुकेशन सोसायटी (बीएफईएस) को करोड़ों के बेशकीमती सरकारी प्लॉट करीब 35 साल पुराने रेट पर कौड़ियों के मोल देने का मामले सामने आया है. 2008 में महाराष्ट्र सरकार ने बीएफईएस को एक प्लाट जहां मामूली कीमत पर बेचा, वहीं उसी दिन दूसरा प्लाट महज 6309 रुपये में 15 साल के लीज पर दे दिया गया.
हाल में जारी किए गए सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक अंधेरी में स्थित प्राइमरी स्कूल के लिए रिजर्व 2821 स्क्वेयर मीटर के प्लॉट को बीएफईएस को 2008 में 98735 रुपये की मामूली सी कीमत पर बेचा गया. दस्तावेजों से पता चलता है कि पहले प्लाट के ठीक बगल के दूसरे प्लॉट को बीएफईएस को 15 साल की लीज पर महज 6309 रुपये में दे दिया गया. ये दूसरा वाला प्लाट एक प्ले ग्राउंड के लिए रिजर्व था लेकिन अब राजीव शुक्ला का हो गया है. हैरान कर देने वाली बात यह है कि इन दोनों प्लॉट्स की मार्केट वैल्यू 100 करोड़ रुपये से ऊपर बैठती है.
2007 में जब इन प्लॉट्स के लिए आवेदन किया गया था तब अनुराधा प्रसाद इस सोसाइटी की अध्यक्ष थीं जबकि उनके पति और सांसद राजीव शुक्ला इसके सेक्रेटरी. महाराष्ट्र के राजस्व विभाग ने सितंबर 2008 में बीएफईएस का आवेदन स्वीकार किया था. शुक्ला के ऑफिस के अजीत देशपांडे ने बताया कि 2007 में जब प्लॉट के लिए आवेदन किया गया था, तब राजीब शुक्ला इसके सेक्रेटरी थे. उन्होंने आठ दिन बाद ही इससे इस्तीफा दे दिया था. 2008 में आवेदनों को सरकार ने स्वीकार कर लिया था.
बीएफईएस को प्लॉट्स आवंटित करते समय सरकार ने 1976 के हिसाब से 140 रुपये/स्क्वेयर मीटर का मूल्य लगाया और महज 98, 735 रुपये वसूले. इसमें शर्त रखी गई कि इसका इस्तेमाल प्राइमरी स्कूल के लिए ही किया जाए. इसी तरह प्ले ग्राउंड के लिए रिजर्व प्लॉट को उसी दिन 15 साल की लीज पर दिया गया. इसकी लीज अमाउंट 1976 में इसकी कीमत की 10 पर्सेंट यानी 6,309 रुपये लगाई गई. आखिर राज्य सरकार ने शुक्ला पर इतनी मेहरबानी क्यों दिखाई, यह अभी तक रहस्य है.
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