कलयुग की द्रौपदी का चीरहरण, कल रात प्राइम टाइम में देखें। बुलेट न्यूज चैनल पर कार्यक्रम का विज्ञापन चल रहा था। चलो अच्छा है, इलेक्ट्रानिक मीडिया ने किसी ज्वलंत मुद्दे पर ध्यान लगाया है। नहीं तो टीआरपी के रेलमपेल में 'नरक के सातवें द्वार पर हमारा कैमरा टीम पहुंचा', 'किस हिरोईन की नवजात बच्ची की शक्ल पहली बार दिखी', 'किसने छींका' और 'किसमें-किसमें कट्टी हुई' ही दिखाते थे। अब जाके बच्चू अग्नि सत्य के वसीभूत हुए है।
कलयुग में द्रौपदी का चीरहरण कई-कई जगहों पर हुआ। कहीं बस में, कहीं खेत में तो कहीं बाजार के बीच। एक एपिसोड में दुःशासन भीड़ भरे चौराहे पर द्रौपदी का चीरहरण करने लगा। द्रौपदी विलाप कर रही थी और चैनल के कैमरा वाले उसके डाकूमेंटेशन में व्यस्त थे। वहां उपस्थित कुछ रोड-साइड दरबारी ठहाके लगाते हुए मोबाईल से चीरहरण का एम एम एस बनाने में जुटे रहे। इनकी प्रसन्नता अपार थी।
चीरहरण के बाद दुःशासन ने गर्व से बोला- 'मैं बन गया अब बलात्कारी'। यह सुन खुशी से सभी हॅंसने लगे। उनमे से एक दुर्योधन ने बोला- गीत संगीत शुरू किया जाय। हनी सिंह का गाना 'मैं हूं बलात्कारी' बजने लगा। दरबारी उठ कर डांस करने लगे। कार्यक्रम खत्म हुआ सभी वाह-वाह करते हुए सभा से बाहर निकले।
बाहर चिन्तित मुद्रा में भगवान श्रीकृष्ण खड़े थे। सबने पूछा भगवन, आप ये पाप खड़े-खडे़ कैसे देखते रहे? अपनी चरखी से साड़ी की अम्बार क्यों नहीं लगा दी? श्रीकृष्ण को कोई जबाब सूझे इससे पहले ही दूर खड़े रामबर्गीयजी ने आवाज दिया- 'वो साड़ी में थोड़ी ही थी'।
तभी सफेद धोती खुटियाये हुए बंगाली बाबू तपाक से बोले- 'प्रोभु! इस्त्री लोग डेटेड-पेंटेड हो गिया तो दुःशासन जइसा भालोमानुष का किया गोलती है'।
'हॉं भगवन', भीष्म पितामह जैसी उजली दाढ़ी वाले धवल वस्त्र धारण किये दिव्य बापू बोले- 'द्रौपदी अगर गिड़गिड़ायी होती और दुःशासन को धर्म भाई बना लेती तो वह कदापि ऐसा न करता'।
राजस्थानी पगड़ी पहने हुए एक वीर पुरूष ने मूंछों पर ताव देते हुए कहा- 'ये जनानिया फैंन्सी ड्रेस पहनने लगी हैं। इससे हम मर्दों का रक्त दूषित होता जा रहा है। बेचारा दुःशासन क्या करें।' उनके हां में हां मिलाकर एक भोपाली सज्जन ने अपना मुंह खोला- 'बिल्कुल, आप ने सही बोला, अब पानी सिर के ऊपर चला गया है, मैं चला जीन्स और शर्ट की होली जलाने।'
भीड़ में खड़े एक मौलाना साहब से भी अब चुप नहीं रहा गया। लेकिन कोलाहल के बीच उनकी बात ठीक से सुनाई नहीं दी। पर टीवी के मजलिस में बैठे विवेचक महोदय की पैनी नजर से वे बच नही पाये। उन्होंने फैसला सुनाया- 'यह छद्म सेक्युलरवाद नहीं, असली धर्मनिरपेक्षता है। धर्म की रक्षा के लिए मुल्ला और पण्डित एक ही स्वर में बोल रहे हैं'।
तभी ऊंचे भवन के बरामदे में खड़े केशरिया अंगवस्त्र और घनी मूंछों वाले एक गुरूघंटाल की आवाज गूंजी- 'यह पश्चिमी सभ्यता की देन है'। श्रीकृष्ण की ओर मुखातिब हो वे बोले- 'भगवन, आप इस पातक इंडिया के देहली में कैसे आ पहुंचे, जाकर भारत के इन्द्रप्रस्थ में देखिये, वहां यह सब कुछ नहीं होता।'
असमंजस की स्थिति में इधर-उधर झांकते हुए श्रीभगवन् ने धीरे से बोला- 'वत्स, मैने सुना है….'
गुरूघंटाल उनकी बात को काटते हुए दहाड़ उठें- 'अगर एैसा है, वह भारत नहीं इंडिया है'।
इस बीच सहयाद्री की घाटी से एक तीखी आवाज सुनाई दी- जय मराठा! ये सभी दुःशासन बिहार के हैं। गौतम बुद्ध के जमाने से ही उनका धर्म व्यभिचार है। उन्होंने ही हमारे अम्बेडकर का भी धर्म भ्रष्ट कर दिया था।
शोर के बीच एक पतला दुबला व्यक्ति छत्तीसगढ़ी बोली में विलाप करने लगा- त्राहिमाम, त्राहिमाम! आजकल स्त्रीओं का ग्रह नक्षत्र ही खराब है। दुःशासन का कोई दोष नहीं। ना ईश्वर से कोई चूक हुई।
यह सब सुन भगवान श्रीकृष्ण ने सिर पकड़ लिया। मन ही मन उन्होंने बोला- चलता हूं, धर्मक्षेत्र-कुरूक्षेत्र की ओर।
कुरूक्षेत्र के एक गांव में चौपाल में बैठे लोग हुक्का-चीलम पीते हुए दिल्ली की घटनाओं पर बात कर रहे थे। तभी चौधरी साहब की गाड़ी वहां आकर रूकी। वे एकदम से बोलने लगे- औरतों के चाउमीन खाने पर तुरन्त रोक लगनी चाहिये। यही उन्हें चरित्रहीन बनाता है। क्या मर्दों से बराबरी करना जरूरी है।
श्रीकृष्णजी बोल उठे- राधे-राधे, न मुझे इंडिया चाहिये, न भारत। मैं चला बैकुंठ की ओर।
इस व्यंग्य के जन्मदाता हैं प्रवीन कुमार सिंह. उनसे 09968599320 पर संपर्क कर सकते हैं.