धरती की कोख को चीरकर अन्न का दाना उत्पन्न करने वाला किसान इस देश में आत्महत्या क्यों करता है? क्यों उसे खाद और बीज के लिए पुलिस की लाठियां खानी पड़ती हैं? क्यों उसे बाजार से महंगे दामों पर खाद और बीज खरीदना पड़ता है? इन परिस्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार है नेता, अधिकारी या व्यापारी। तमाम ऐसे सवाल हैं जो सिर्फ और सिर्फ सवाल बनकर रह गए हैं। आखिर इन सवालों का जबाब क्या है जानने के लिए हमारी टीम पिछले कुछ महीनों से अथक प्रयास कर रही है। हमारी टीम ने जिला कृषि कार्यालय से लेकर एफसीआई के गोदामों तक जो पड़ताल की है उसी पड़ताल में छिपा है इन सारे सवालों का जबाब।
किसान को अनाज उत्पन्न करने के लिए सबसे पहले खाद और बीज की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन हमारा यह दावा है कि देश के सबसे बड़े प्रदेश यानि की उत्तर प्रदेश में किसानों को सही मूल्य पर खाद-बीज मिल ही नहीं सकता। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार का कृषि विभाग ही ब्लैक करवाता है खाद और बीज। 'ख़बर अब तक' की टीम ने प्रदेश के अधिकांश जिलों में जाकर इसका जायजा लिया लेकिन इस प्रदेश में हमें कोई भी ऐसा जिला नहीं मिला जहां का कृषि विभाग सही तरीके से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहा हो।
सबसे पहले हम बात करते हैं पूर्वांचल की पवित्र नगरी गोरखपुर की। एक अनुमान के मुताबिक गोरखपुर जिले में लगभग 3000 फुटकर खाद की दुकानें हैं। इनमें से 65 से 70 फीसदी दुकानकारों की सेल एक सीजन में महज इतनी है कि वे रेट पर फर्टिलाइजर बेचकर कृषि विभाग के खर्चे को भी वहन नहीं कर सकते यानि की इनकी मजबूरी है कालाबाजारी करना। इस जिले की सबसे खास बात यह है कि कृषि विभाग की सह पर कुछ दुकानदार सिर्फ बोरा असली लेकिन उसमें माल नकली बेचते हैं।
अभी हाल ही में जिला कृषि अधिकारी की कुर्सी पर आसीन हुए बृजेश सिंह वैसे तो कहने के लिए काफी तेज-तर्रार और ईमानदार अधिकारी हैं। कार्यालय से लेकर खाद की दुकान तक साहब के रूतबे और रूआब की जोर-शोर से चर्चा है। लेकिन जिला कृषि अधिकारी साहब कितने तेज-तर्रार और ईमानदार हैं जानने के लिए नीचे हम एक वीडियो का लिंक दे रहे हैं इसे देखिए…
http://www.youtube.com/watch?v=bHLyRe3DTV0
हमारी टीम ने गोरखपुर जिले के सैकड़ों दुकानदारों से सम्पर्क कर जब इस संदर्भ में वार्ता की तो उनका साफ कहना था कि विभिन्न तरीके से यानि की लाइसेंस बनवाने या रिनवल करवाने के नाम पर 6000 हजार, रजिस्टर प्रमाणित करवाने के नाम पर 1 हजार, साहब के दौरे के नाम पर लगभग 3 हजार कम से कम हमें खर्च करना पड़ता है। अगर हम सही मूल्य पर खाद बेचना शुरू कर देंगे तो अपना खर्च तो दूर साहब वाला खर्च ही नहीं निकाल पायेंगे। अब ऐसे में हर कोई यह अंदाजा लगा सकता है कि किसानों को सही मूल्य पर कैसे मिलेगा खाद और बीज।
लेखक बीके सिंह खबरअबतक डाट काम के संपादक हैं. उनसे संपर्क 9453607587 या [email protected] के जरिए कर सकते हैं.