बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद हम कुछ पत्रकारों ने सोचा कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों का एक सममेलन बुला कर साम्प्रदायिकता का मुकाबला करने के लिए कोई रणनीति तय की जाए। नवभारत टाइम्स से हबीब अख्तर और टाइम्स आफ इंडिया से जुबैर रिजवी कुछ उर्दू एवं हिंदी के पत्रकार और जेएनयू के प्रो. इमतियाज अहमद व एक अन्य प्रो. मिल कर बैठे और मुस्लिम इंटेलीजेंसिया मीट बुलाने का फैसला किया गया और स्थान जे. एन. यू. का सिटी सेंटर तय किया गया। तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया, जेएनयू और अलीगढ़ मुस्लिम विवि के बहुत सारे प्रोफेसर, शबाना आजमी और फारूक शेख आदि फिल्मी हस्तियां और सैयद शहाबुद्दीन आदि अनेक नेता शामिल हुए।
सम्मेलन के आरंभ में ही बता दिया गया था कि किसी नेता का भाषण नहीं होगा आज नेता लोगों की बात सुनें। बुद्धिजीवियों ने अपने-अपने अनुसार साम्प्रदायिकता का मुकाबला करने के उपाय बताए। अंत में आम राय से तय किया गया कि साम्प्रदायिकता का मुकाबला अकेले मुसलमान नहीं कर सकते इस के लिए अन्य वर्गों को भी साथ ले कर चलना होगा। आगामी सम्मेलन में अन्य लोगों को भी बुलाया जाना तय हुआ। मगर यह आगामी सम्मेलन कभी न हो सका क्योंकि आयोजकों में से ही कुछ लोगों को प्रधानमंत्री नरसिंह राव के लोगों ने खरीद लिया।
हुआ यह कि जेएनयू के एक प्रो. जो प्रो. इमतियाज अहमद के विरोधी थे इस कार्यक्रम की कैसेट ले कर नरसिंह राव के पास पहुंच गए और बताया कि यह सम्मेलन उन्होंने किया है तथा आगे उत्तर प्रदेश में और सम्मेलन करने की योजना है। इस सम्मेलन को उन्होंने सरकार के समर्थन में हुआ बताया। नरसिंह राव ने इन लोगों को उस समय उनके लिए काम कर रहे पं. एनके शर्मा के पास भेज दिया कि इनको आवश्यक फंड मुहैया करा दें। फंड की कोई कमी नहीं थी, वह मिल गया तो यह टोली पहले देवबंद पहुंची और वहां एक सम्मेलन कर दिया जिसका पता हम लोगों को बाद में चला। इसके बाद दूसरा सम्मेलन मेरठ में हो गया इसका भी बाद में पता चला तो बाकी बचे हम सब बैठे और समस्या पर विचार किया हमारे पास कोर्इ फंड तो था नहीं इसलिए सोचा गया कि इनके अगले सम्मेलन का पता किया जाए वहीं चलकर लोगों को वास्तविकता से परिचित कराया जाएगा। ये लोग सारी योजना गुपचुप बनाते थे। इनका अगला सम्मेलन गाजियाबाद में हो रहा था जिसका पता मुझे ऐन टाइम पर चला तो मैं सीधा सम्मेलन में पहुंच गया। गाजियाबाद में अपने बहुत लोग थे।
सम्मेलन में मुझे देख कर ये लोग घबराए मगर मैं सीधा मंच पर जा बैठा। ये लोग मुझे वहां से हटाने की स्थिति में भी नहीं
थे गाजियाबाद के ही एक परिचित मंच का संचालन कर रहे थे मैने बोलने के लिए अपना नाम दिया तो जेएनयू के प्रो. मेरे पास आकर खुशामद करने लगे कि मैं कुछ ऐसा वैसा न कहूं। मैने उन्हें आश्वस्त कर दिया मगर जब मेरा बोलने का नम्बर आया तो मैने सारी हकीकत बयान कर दी। गाजियाबाद के कई वकील और प्रो. दिल्ली के पहले सम्मेलन में शामिल थे उन्होंने भी मेरी बातों का समर्थन किया। उसके बाद मैने जो उनकी बखिया उधेड़ी तो लोग दांतों तले उंगलियां दबा गए। अच्छा खासा हंगामा हो गया बस ये लोग पिटने से बच गए बाकी इन्हें खूब खरी खोटी सुनाई गई। इसके बाद फिर कोई सम्मेलन इन्होंने नहीं किया इन्हें आवश्यकता भी नहीं थी क्योंकि नरसिंह राव से मिली रकम को ठिकाने लगाने के लिए इन्होंने काम कर ही लिया था। इस प्रकार निजी स्वार्थ के चलते एक अच्छा खासा प्रोग्राम बाबरी मस्जिद की भांति ही ध्वस्त हो गया।

लेखक डॉ. महर उद्दीन खां वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं. रिटायरमेंट के बाद इन दिनों दादरी (गौतमबुद्ध नगर) स्थित अपने घर पर रहकर आजाद पत्रकार के बतौर लेखन करते हैं. उनसे संपर्क 09312076949 या maheruddin.khan@gmail.com के जरिए किया जा सकता है. डॉ. महर उद्दीन खां का एड्रेस है: सैफी हास्पिटल रेलवे रोड, दादरी जी.बी. नगर-203207
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