Dilnawaz Pasha : कितनी अजीब बात है कि राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों में लिखा होता है, "बेग़ुनाह मुसलिम नौजवानों को रिहा किया जाएगा." पहले ये तो बताओ कि जो बेग़ुनाह हैं उन्हें गिरफ़्तार करने की तुम्हारी मजबूरियाँ क्या हैं? जिन्होंने ग़लत गिरफ़्तारियों को अंजाम दिया उनके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाइयाँ की गईं?
और सिर्फ़ मुसलमान बेग़ुनाहों को ही क्यों रिहा किया जाए? तुम ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाते जिसमें कोई भी बेग़ुनाह जेल में न जाए? ज़ाहिर है तुम्हारे ये घोषणा पत्र वोट बैंक की राजनीति से ज़्यादा कुछ नहीं है.
पहले तुम बेग़ुनाहों को गिरफ़्तार करोगे और फिर उन्हें रिहा करने के नाम पर वोट माँगोगे. और इस बीच उन बेग़ुनाहों की ज़िंदगी के जो साल ज़ाया हो जाएंगे, उनके परिवार जिस पीड़ा से गुज़रेंगे उसका हिसाब तुम 'हर्ज़ाने' में दोगे.
समझ नहीं आता कि कोई इतना असंवेदनशील या कोई कौम इतनी 'मुर्दा' कैसे हो सकती है!
पत्रकार दिलनवाज पाशा के फेसबुक वाल से