बीते दिनों लोकसभा का चालू सत्र देख रहा था। हांलाकि ये सत्र भी अन्य सत्रों की तरह साधारण था, किंतु इसकी विशेषता रही सीबीआई की नवनिर्मित व्याख्या। ये व्याख्या किसी साधारण व्यक्ति ने नहीं बल्कि लोकसभा के सम्मानित सदस्य एवं जदयू अध्यक्ष शरद यादव ने दी। सदन में दिये उद्बोधन में उन्होंने कहा कि हमारी सीबीआई अंधा कुंआ बन चुकी है। ऐसा अंधा कुंआ जिसमें सांप और बिच्छू पाये जाते हैं। सरकार इस कुंए का इस्तेमाल अपने विभिन्न भ्रष्टाचार एवं घोटालों को छुपाकर निश्चिंत होने में करती है। फिर चाहे वो ट्राटा ट्रक घोटाला हो या २जी स्पेक्ट्रम, कोल आवंटन ब्लाक की अनियमितता का मामला हो या पुरातन बोफोर्स तोप घोटाला हर जगह सीबीआई ने जांच के नाम पर मामले को दबाने की अपनी भूमिका से पूर्णतया न्याय किया है।
ध्यातव्य हो कि साधारण मामलों में जांच के निष्कर्ष तक पहुंचाने वाली सीबीआई राजनीतिक भ्रष्टाचार के रोकथाम में पूर्णतया विफल नजर आती है। सीबीआई की ये विफलता वास्तव में कई सवाल खड़े करती है।
क्या सीबीआई मामले को दबाने का सरकारी उपकरण बन चुकी है?
सीबीआई की वर्तमान कार्यशैली क्या उसकी उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाती?
देश में सीबीआई की जांच के नाम पर व्यय होने वाली समस्त धनराशि क्या जनता के पैसे की बर्बादी नहीं है?
सरकार के भ्रष्टाचार के मामलों की निष्पक्ष जांच में क्यों विफल होती है सीबीआई?
और भी कई प्रश्न हैं जो सीबीआई की नाकामियों को देखते हुए आम जनमानस के जेहन में उभरते हैं। अब बात करते हैं हालिया वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर मामले में सीबीआई की विफलता का। ताजा मामले में इस चिरपरिचित नाकामयाबी ने सीबीआई का दामन नहीं छोड़ा है। हेलीकाप्टर सौदे में दलाली और लेनदेन के मामले की जांच के लिए गया सीबीआई का दल बैरंग वापस लौट आया है। बहरहाल इस मामले में हैरान होने जैसा कुछ भी नहीं है। ये तो सीबीआई की प्राचीन कार्यशैली की पुनारावृत्ति ही है। इस मामले में हैरान कर देने वाली सबसे बड़ी बात ये है कि जिस मामले की अनियमितता को लेकर इटली में दो गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, उसी मामले में हमारी सीबीआई एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकी। यहां एक बात और ध्यान में रखने की है कि माननीय न्यायालय ने प्रारंभ में ही यह बात सुनिश्चित कर दी थी की इस पूरे प्रकरण में सूचनाएं साझा नहीं की जाएगी। ऐसे में सीबीआई दल का इटली दौरा भी कहीं न कहीं सवालों के घेरे में आ जाता है।
इस मामले में सबसे दुर्भाग्यजनक बात ये है कि इस सौदे को रद्द करने और शेष राशि की भुगतान पर रोक लगा दी गई है तो दूसरी ओर सीबीआई का ताजा तर्क ये है कि उसके पास जांच को आगे बढ़ाने के लिए प्रारंभिक साक्ष्यों का अभाव है। सीबीआई का ये कथन कई सवाल खड़े करता है। यदि इस मामले में प्रारंभिक सुबूतों का अभाव था तो ऐसे में भुगतान को रोकने का फैसला क्यों किया गया? ऐसे मामलों में जहां देश की पूंजी दांव पर लगी है सीबीआई प्रारंभिक साक्ष्यों का रोना रोकर क्या अपनी भूमिका के साथ अन्याय नहीं कर रही है? खैर इस मामले के नतीजे जो भी हों ऐसे में जब इस पूरी खरीद के नाम पर ३५ प्रतिशत धनराशि का भुगतान किया जा चुका है तो सारा नुकसान तो आखिरकार भारत का ही हुआ है। यदि सीबीआई इस तरह के राजकोषीय घोटाले को रोकने में विफल हो रही है तो ऐसी जांच एजेंसी क्या औचित्य? वास्तव में अब ये विचारणीय प्रश्न हो गया है कि क्या वाकई अंधा कुंआ बन चुकी है सीबीआई?
लेखक सिद्धार्थ मिश्र ’स्वतंत्र’ पत्रकार हैं.