अजमेर। राजस्थान की कांग्रेस सरकार बहुत जल्दी में है। इतनी जल्दी में कि कांग्रेस विचारधारा के वकीलों को स्थायी सरकारी नौकरी देने को आतुर हुए जा रही है। आतुरता-व्याकुलता के इस खेल में नियम-कायदों की औपचारिकता को भी ठेंगा दिखा दिया गया है। गहलोत के बेमिसाल कामों की यह एक बेहतरीन मिसाल कही जा सकती है। मामला नगर पालिकाओं में विधि अधिकारियों के पदों पर सीधी भर्ती का है।
राजस्थान के स्वायत्त शासन विभाग ने 18 सितंबर 2013 को प्रदेश की 36 नगर पालिकाओं में कनिष्ठ विधि अधिकारियों की भर्ती का आदेश जारी किया। पद के लिए मुख्यतः तीन योग्यताएं मांगी गई। दो योग्यताएं तो समझ में आती है कानून में स्नातक की डिग्री और वकालत का तीन साल का अनुभव। सारा गड़बड़झाला तीसरी योग्यता को लेकर है। इसके मुताबिक आवेदक ‘वर्तमान में नगरीय निकायों में विधि सलाहकार अथवा पैनल एडवोकेट के रूप में कार्यरत हो।’
सभी जानते हैं कि नगरीय निकायों यानि नगर पालिका, नगर परिषद, नगर निगम, नगर सुधार न्यास या विकास प्राधिकरणों के मुकदमों की पैरवी के लिए सरकार अपने कार्यकर्ता वकीलों को ही नियुक्त करती है ताकि उन्हंे आर्थिक और व्यावसायिक तौर पर उपकृत किया जा सके। भाजपा राज आया तब उसने भी ऐसा ही किया था। आज कांग्रेस का राज है तो उसी की विचारधारा के वकील नियुक्त हैं। इन्हें एक निश्चित मासिक रकम दो हजार से पांच हजार के बीच भुगतान किया जाता है। साथ में वकालत करने की भी छूट रहती है। जाहिर है दूसरे आवेदकों को इसी आधार पर योग्य नहीं मानते हुए नौकरी से वंचित कर दिया जाएगा।
अब जरा नीयत में खोट का खेल देखिए। 18 सितंबर को भर्ती निकालना तय किया गया। 20 सितंबर को राजस्थान के सिर्फ एक अखबार में इस भर्ती का विज्ञापन छापा गया। आवेदन की अंतिम तिथि कुछ नहीं। इसकी जगह सीधे साक्षात्कार की तारीखें घोषित कर दी गई, 23 और 24 सितंबर। सवाल उठता है कि आवेदन किस तारीख तक प्रस्तुत किए जाएंगे। जवाब और भी दिलचस्प है जो विज्ञापन में ही अंकित है, ‘आवेदन पत्र भी साक्षात्कार दिवस ही प्रस्तुत किए जाने होंगे।’ कहीं देखा है ऐसा। हाथों हाथ अर्जी दीजिए, साक्षात्कार में शामिल होइए और नियुक्ति पत्र ले जाइए।
साक्षात्कार होंगे कहां ? यह स्थान भी खूब सोच विचारकर तय किया गया। जयपुर में नगरीय निकाय एक अलग महकमा है। शासन सचिवालय है। स्वायत्त शासन मंत्री का दफतर है। जयपुर विकास प्राधिकरण है। जयपुर नगर निगम का दफतर है। परंतु साक्षात्कार के लिए बुलाया गया है सीकर रोड स्थित नगर निगम के अग्निशमन केंद्र पर। मजेदार बात यह है कि सरकार सीधे यह भर्ती नहीं करने जा रही। पता नहीं कब सरकार ने एक संस्था गठित कर दी जिसका नाम है, ‘राज्य स्तरीय नगर पालिका अधीनस्थ एवं मंत्रालयिक आयोग।’ यह कब गठित हुआ, कौन इसका अध्यक्ष है और कौन-कौन सदस्य, कहां इसका दफतर है, कुछ पता नहीं ? राजस्थान में सभी तरह की सरकारी नियुक्तियों के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग है, उसके होते सरकार को एक अलग महकमे के लिए एक अलग आयोग बनाने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका भी जवाब किसी के पास शायद ही हो।
जाहिर है सारी कवायद इसलिए हो रही है क्योंकि कांग्रेस, अशोक गहलोत और उनकी सरकार को अच्छी तरह पता है कि अक्टूबर के पहले सप्ताह में विधानसभा चुनावों की आचार संहिता लागू हो सकती है। उन्हें यह भी अहसास है कि शायद फिर से सत्ता ना आए। ऐसे में उचित यही है कि अपने जितने ज्यादा कार्यकर्ताओं को जितना ज्यादा और जितनी जल्दी उपकृत किया जा सके, कर दो। परंतु कांग्रेस और गहलोत भूल रहे हैं कि पिछले दिनों में उन्होंने जितनी ज्यादा भर्तियां निकाली है, उनमें से ज्यादातर आज राजस्थान हाईकोर्ट में मुकदमों के रूप में उलझी हुई हैं।
राजस्थान के वरिष्ठ राजनीतिक समीक्षक और मीडिया विश्लेषक राजेंद्र हाड़ा की रिपोर्ट. संपर्क: 09829270160 या 09549155160