गाजीपुर : कलम के धनी एवं कर्मठता तथा लगनशीलता के प्रतीक विजय बाबू का जन्म गाजीपुर के सदर तहसील अन्तर्गत ग्राम नारी पचदेवरा निवासी स्व0 लक्ष्मण यादव व स्व0 दुखन्ती देवी के पुत्र के रूप मे 19 जुलाई सन् 1932 को हुआ। होनहार विरवान के होत चीकने पात की कहावत को चरितार्थ करते आप बचपन से ही मेधावी व अत्यन्त मेहनती छात्र के रूप मे अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव से ही प्राप्त कर क्रमशः मिडिल स्कूल बरहपुर, हाई स्कूल विक्टोरिया स्कूल गाजीपुर, इण्टर हायर सेकेण्डरी स्कूल कानपुर से पूर्ण कर, दौराने पत्रकारिता शास्त्री की डिग्री काशी विद्यापीठ वाराणसी से प्राप्त किये।
यह आपकी मेहनत प्रतिभा और कुशाग्र बु़द्धि का ही परिणाम था कि न सिर्फ आपने प्रत्येक परीक्षा अच्छे अंको से उत्तीर्ण की बल्कि अपने सहपाठियों को सदा नेतृत्व प्रदान करते हुए अध्यापको के चहेते रहे। बचपन से ही देश सेवा व समाज सेवा की ललक ने आपको राजनीति से जोड़ दिया , फिर शुरू हुआ संघर्ष और जेल यात्राओं का निरन्तर दौर किन्तु वह भी आपके चैरवति-चैरवति सिद्धान्त से आपको डिगा नही पाया तथा आप नित नये उत्साह से बिना पिछे मुडे़ अपने उद्व्देश्य पथ पर अग्रसर रहे।
अपने कर्तव्य एवं जिम्मेदारियों के प्रति पूर्ण आपके समर्पण भरे कार्यकुशलता से प्रभावित होकर पत्रकारिता के तत्कालीन स्तम्भ ईश्वर देव मिश्र, रामकृष्ण रघुनाथ खांडिलकर आदि ने आपको सादर पत्रकारिता जगत मे आमंत्रित किया, जिसे आपने सहजता पूर्वक स्वीकारा भी। यह आपकी कर्मठता, जीवन्तता,व अपनी माटी,अपनी जन्मभूमि के प्रति आपके मोह का यह प्रत्यक्ष उदाहरण है कि दौराने पत्रकारिता प्रदेश व देश के विभिन्न शहरों से मिले प्रस्तावों को ठोकर मार आजीवन पूर्वी उत्तर प्रदेश की माटी हेतु सेवा ब्रती बने रहे।
अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को समझते हुए आपने जनपद मुख्यालय पर ही गाजीपुर समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया जिसकी उन्नति व विकास के लिए पूरी क्षमता से प्रयत्नशील रहे। यह आपके अथक परिश्रम व दृढ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि यह समाचार पत्र अपनी अलग पहचान व प्रतिष्ठा कायम कर सका है। धुन के धनी, प्रतिबद्धता की प्रतिमूर्ति, पत्रकारिता के गौरव पुरूष यह आपके पत्रकारिता के प्रताप और उसके ताप का ही असर रहा है कि समय-समय पर आपके अनेक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हुए है तथा नवम्बर 2006 में तत्कालीन प्रदेश मुखिया मुलायम सिंह यादव द्वारा आप यश भारती सम्मान से विभूषित किये गये।
नित पदयात्रा करके आम जन को दशा व दिशा का ज्ञान कराने वाला 82 वर्षीय पथिक दुबली काया गौरवर्ण सदा मुस्कराहट लिए चेहरा मानवीय गुणो से परिपूर्ण आदरणीय विजय बाबू इस संसार से चले गये जिसे भगवान ने बनाया है पर अपनी अनेक रचनाओं, पत्र, पत्रिकाओं का संसार जो विजय बाबू ने बनाया है वे इस धरती पर रच बस रहे है। अभी समाज के लिए बहुत कुछ करते पर अचानक ही कोई आवाज सुनकर उठे और उसके पीछे चले गये जैसे भरी बहस से उठकर चुपसे से काई चला जाता है।
परमपिता परमेश्वर मे विलीन इस आत्मा की शान्ति से लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हुए हम उनके जन हितार्थ सपनों को साकार करने हेतु आज बचनबद्ध होते है यही इस महापुरूष को सच्ची श्रद्धान्जलि होगी। कर्मयोगी व साधु हृदय स्व0 विजय बाबू को शत-शत नमन्
शिवेन्द्र पाठक
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