अमर उजाला के स्थापना दिवस के अवसर पर बरेली में आयोजित समारोह में शाहजहांपुर को बेस्ट ब्यूरो का खिताब देने से मेरे साथ हजारों लोग स्तब्ध हैं, क्योंकि शाहजहांपुर के ब्यूरो चीफ अरुण पाराशरी से ज्यादा विवादित और इतने गंभीर आरोपों से घिरा ब्यूरो चीफ शायद ही कोई हो। अन्य तमाम आरोपों को नज़र अंदाज़ कर भी दिया जाए, तो इस बात का प्रमाण है कि अरुण पाराशरी गंभीर आरोपों से घिरे चिन्मयानंद के लॉ कॉलेज की प्रबंध समिति में पदाधिकारी हैं।
नजदीकी संबंध होने के कारण ही अरुण पाराशरी ने अमर उजाला में ख़बरें प्रकाशित कर चिन्मयानन्द को खुला लाभ पहुँचाया, वहीं पीड़ित को ही बदनाम किया। इसके अलावा पुलिस के वरिष्ठ अफसरों पर दबाव बना कर विवेचना न होने देने में मदद की। पीड़ित ने विवेचना बदायूं स्थानांतरित करा ली, तो बदायूं के सीओ के पास आकर चिन्मयानंद के पक्ष में सेटिंग की, जिसमें अमर उजाला का खुला दुरुपयोग करते हुए स्थानीय रिपोर्टर की मदद ली। समय-समय पर पाराशरी के कारनामों की मैंने प्रबन्धन से शिकायत भी की, लेकिन बरेली स्तर पर उस समय पाराशरी के साथ पीने वालों पर ही जांच आती थी, जिससे शिकायतों पर कुछ नहीं हुआ।
उक्त आरोपों के साथ अमर उजाला पिछले चुनाव में बसपा और सपा से टिकिट मांगने की व आय की तुलना में संपत्ति की जांच करा ले, तो पाराशरी की असलियत स्वतः सामने आ जायेगी, पर निष्पक्ष जांच और जांच के बाद कार्रवाई करने की जगह बेस्ट ब्यूरो का खिताब देकर प्रबन्धन भी पाराशरी का साथ देता नज़र आ रहा है, जबकि पाराशरी को तत्काल रूहेलखंड क्षेत्र से ही बाहर तैनात करना चाहिए था और जांच के बाद दंड भी देना चाहिए था। पर अब ऐसा लग रहा है कि जैसे चिन्मयानंद की मदद करने को प्रंबंधन ने ही पाराशरी को हरी झंडी दी हो और सही से मदद करने पर पुरस्कार दिया रहा हो।
बीपी गौतम
(चिन्मयानन्द पर तमाम गंभीर आरोप लगाने वाली पीड़ित महिला के पति)