Vikas Mishra : फरवरी 2005 की बात है। चैनल-7 (अब आईबीएन 7) की शुरुआत होनी थी, हम सब की ट्रेनिंग चल रही थी सूरजकुंड के एक होटल में। एक सेशन में देश की जानी मानी वरिष्ठ पत्रकार मधु त्रेहन आई थीं। उन्होंने बताया कि एक बहुत बड़े नेता के खिलाफ उनके पास स्टोरी आई थी। स्टोरी धमाकेदार थी। स्टोरी देने वाले से उन्होंने पूछा- हू वांट टू प्लांट दिस स्टोरी। यानी कौन चाहता है कि ये स्टोरी छपे, उसका इसमें स्वार्थ क्या है। वो घटना मन में बस गई।
मेरे ही कभी के एक कनिष्ठ साथी ने मेरे एक बहुत ही प्रिय रहे एक साथी के बारे में कहा- सर फलाने सर तो आपको गाली दे रहे थे। मैंने पूछा- जब वो गाली दे रहा था, फिर तुमने क्या किया। उसे डांटा होगा, मारा होगा। वो सकपकाते हुए बोला नहीं सर मैं उनके साथ दारू पी रहा था। मैंने कहा तब तो तुमने जरूर गिलास फेंक दी होगी, ये कहते हुए निकल गए होगे कि नहीं मैं विकास सर के खिलाफ कुछ नहीं सुनूंगा। जाहिर है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। फिर मैंने उसे कड़ी फटकार लगाते हुए कहा- कमीने, तू मेरे और उस साथी के बीच दूरियां बढ़ाना चाहता है, ऐसा तूने किया क्यों।
बहरहाल… इन दोनों बातों के जरिए मैं कहना चाहता हूं कि जब भी कोई आपके किसी अपने के खिलाफ कुछ कहे तो सबसे पहले इस पर विचार करें कि ये बात आपको बताकर ये शख्स चाहता क्या है। दूसरा- क्या आपके उसके रिश्ते इतने कमजोर हैं कि आप किसी तीसरे शख्स की बात सुनना चाहेंगे, मसले पर सीधे अपने उस साथी से बात नहीं करेंगे..? तीसरा- आपके किसी से अच्छे रिश्ते हैं तो क्या आपके बाकी साथी उसे आसानी से पचा पा रहे हैं। और चौथा- पंचतंत्र पढ़ें, कैसे शेर और बैल आपस में घनिष्ठ मित्र थे, लेकिन शेर कान का कच्चा था। करकट-दमनक नाम के सियार उसका कान भरते थे। बिना एक दूसरे के प्रति खता किए शेर और बैल घनिष्ठ दोस्त से दुश्मन बन गए। वफादार मित्र बैल बिना गुनाह मारा गया। इसीलिए कहता हूं कि अपने हर रिश्ते को करकटों-दमनकों से बचाइए। वैसे भी सियारों की बातों पर चलना शेर को शोभा नहीं देता। पोस्ट बड़ी हो गई, ज्ञान ज्यादा हो गया, माफ कीजिएगा। जिन्होंने पूरी पढ़ी, उन्हें धन्यवाद।
पत्रकार विकास मिश्रा के फेसबुक वाल से