: करोड़ों का घोटाल हो चुका है अब तक : झारखंड राज्य बनने के बाद से ही इस राज्य की यह विडम्बना रही है कि जो जहां पर है इसे लूट रहा है. जिसे मौका मिला उसने लूटा, क्या नेता, क्या पदाधिकारी सभी इस लूट के खेल में बराबर के साझीदार हैं. अब इस खेल में पिछले कुछ वर्षों से मीडिया के नाम पर भी लूट का खेल चालू हो गया है. इसमें भी 100 करोड़ रुपये तक का घोटाला हो चुका है. आइए अब समझते हैं इस खेल को.
अखबारों को सरकार के जनसम्पर्क विभाग द्वारा विज्ञापन दिया जाता है. विज्ञापन देने के लिए केंद्र सरकार और डीएवीपी की स्पष्ट एक नीति लागू है. जनसम्पर्क विभाग में 3-4 पदाधिकारी भ्रष्ट हैं, जिन्हें लोग सांपनाथ और नागनाथ के नाम से जानते हैं. सरकार विज्ञापन किस अखबार को देगी वो ये ही तय करते हैं. ये इतने शक्तिशाली हैं कि अपने विभाग के सचिव तक की कुर्सी को हिला सकते हैं. इतना ही नहीं सरकार बदल गई. सरकार का मुखिया बदल गया पर इन्हें कोई नहीं बदल सकता. तो ये इतने रसूख वाले हैं कि इनकी पहुंच रांची से लेकर दिल्ली तक बताई जाती है. इनके लिए बिचौलिए का काम करते हैं बड़े-बड़े नामवर पत्रकार.
आइए देखते हैं कैसे ये सरकार खजाने का दुरुपयोग कर रहे हैं. सरकार द्वारा उर्दू अखबार के नाम पर सरकारी विज्ञापन देने का प्रावधान है. यह विज्ञापन केवल उन्हें मिलना है, जो डीएवीपी के नियमों एवं कानूनों पर खरा उतरते हों, यानी अखबार की प्रसार संख्या के आधार पर डीएवीपी द्वारा दर तय की जाती है, उसके अनुसार ही उन्हें विभाग से विज्ञापन दिया जाता है. सरकार और डीएवीपी को अपनी प्रसार संख्या कागजों पर 45 से 50 हजार दिखाकर तीन-चार उर्दू अखबार केवल एक वर्ष में 199.9 लाख रुपये का विज्ञापन ले चुके हैं, जबकि उनकी असल प्रसार संख्या 200 से 2000 के बीच बताई जाती है.
इन अखबारों में काम करने वाले कर्मचारी राजधानी रांची के नेताओं के इर्दगिर्द चक्कर लगाते रहते हैं और अखबार में उनकी बड़ी-बड़ी तस्वीर प्रकाशित कर उन्हें खुश रखने का प्रयास करते हैं. जनसम्पर्क विभाग द्वारा उन्हें विज्ञापन तीस से चालीस प्रतिशत की कमीशन पर दिया जाता है. इसके लिए एक-दो दलाल भी विभाग के निदेशक और सहायक निदेशक ने पाल रखे हैं, जो रोजाना शाम को इनके साथ बैठकर शराब भी पीते हैं. जिसकी तस्वीर भी कुछ पत्रकारों के पास है. इसी प्रकार कुछ हिंदी दैनिक के नाम पर भी इस लूट में शामिल हैं. सरकार द्वारा विज्ञापन इसलिए दिया जाता है कि सरकार की योजनाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके, पर यहां सैकड़ों की संख्या में प्रकाशित होने वाले अखबार पर आंख मूंद कर विश्वास का यह खेल कई वर्षों से जारी है.
मैंने इस पर रांची के प्रभात खबर के वरिष्ठ संपादक अनुज सिन्हा जी से भी कई बार कहा, पर वो सरकार के इतने पॉवरफुल पदाधिकारियों के विरुद्ध कोई कदम उठाने में अपने को असमर्थ पाते हैं. बाबूलाल मरांडी भ्रष्टाचार की बात करते हैं, मैं ने उन्हें भी इस बाबत कहा लेकिन वो भी चुप्पी लगा लेते हैं. मीडिया के नाम पर इस लूट के खिलाफ कोई बोलने को तैयार नहीं है. इसमें एक अखबार (उर्दू दैनिक) का संबंध दुबई में बैठे माफियाओं के साथ भी होना बताया जाता है. मूल रूप से वो पटना के निवासी हैं और पटना निवासी आठवीं कक्षा पास अखबार का बंडल बांधने वाले लड़के को प्रबंधक बनाकर लूट का खेल चला रखा है. सरकार के निगरानी विभाग को मैंने इस पर लिखित शिकायत झारखंड में राष्ट्रपति के शासन के समय ही दिया था, पर अब तक इसपर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई है. अब यह मामला पीआईएल के जरिए उच्च न्यायालय में जा रहा है.
शाहनवाज हसन
संपादक
बिरसा वाणी
हिंदी साप्ताहिक