बिहार के मुख्यमंत्री एवं जदयू के अग्रणी नेता नीतीश कुमार के खिलाफ टीम मोदी अब आक्रामक मुहिम चलाने की तैयारी कर रही है। कोशिश की जा रही है कि भाजपा को ठेंगा दिखाने वाले जदयू नेतृत्व को अच्छी तरह से सबक सिखा दिया जाए। 29 जून से 2 जुलाई तक जदयू विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में नीतीश कुमार के खिलाफ खासतौर पर राजनीतिक अभियान चलाने की योजना बनाई गई है।
2003 में कच्छ (गुजरात) की एक सभा में तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हिस्सेदारी की थी। इस दौरान उन्होंने मोदी की खूब सराहना की थी। यहां तक कह डाला था कि अब मोदी को राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने के लिए आगे जरूर आना चाहिए। इस भाषण की आडियो-वीडियो सीडी तैयार कराई जा रही हैं। भाषण की एक लाख पुस्तिकाएं भी छपकर अहमदाबाद से आ रही हैं। इनके जरिए भाजपा कार्यकर्ता नीतीश के खिलाफ ‘पोलखोल’ अभियान चलाने वाले हैं। पहले चरण में यह कार्यक्रम तय किया गया है। दूसरे चरण का अभियान चलाने की भी तैयारी की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि 2010 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 141 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जबकि, बाकी 102 सीटें भाजपा के हिस्से में आई थीं। भाजपा नेतृत्व से गठबंधन टूटने के बाद अब जदयू के प्रभाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में सघन राजनीतिक मुहिम चलाने की रणनीति तैयार की गई है। उल्लेखनीय है कि जदयू ने 118 सीटें जीती थीं। साधारण बहुमत के लिए 122 सीटों की दरकार होती है। भाजपा से अलग हो जाने के बाद नीतीश सरकार को चार निर्दलीय विधायकों समर्थन मिल गया है। पिछले दिनों बिहार सरकार ने बड़े आराम से विधानसभा में विश्वासमत हासिल भी कर लिया है। क्योंकि, इस शक्ति-परीक्षण के दौर में उसे कांग्रेस के विधायकों का समर्थन भी मिल गया। इस कांग्रेसी समर्थन के बाद यह साफ हो गया है कि राज्य की राजनीति में नए राजनीतिक समीकरण तैयार होने लगे हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन कहते हैं कि हम लोग जदयू की छद्म धर्म-निरपेक्षता की जनता के सामने पोल खोल देंगे। लोगों को घर-घर जाकर संदेश देंगे कि नीतीश जैसे नेता सेक्यूलरवादी नहीं, बल्कि घोर अवसरवादी हैं। 2002 के जिन गुजरात दंगों को लेकर जदयू के नेता अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं, इनमें कोई दम नहीं है। क्योंकि, गुजरात दंगों के ठीक बाद 2003 में रेल मंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने हमारे नेता नरेंद्र मोदी की खूब तारीफ की थी। उन्हें एक तरह से दिल्ली की राजनीति में आने का ‘न्यौता’ दे आए थे। लेकिन, अब वोट बैंक की राजनीति के लिए मोदी के खिलाफ प्रलाप कर रहे हैं। ऐसे में, जनता नकली सेक्यूलरवादियों को जान ले, इसी के लिए मुहिम शुरू की जाएगी।
जदयू के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता शिवानंद तिवारी कहते हैं कि बिहार भाजपा के नेता राज्य की सत्ता से हटने के बाद बेचैन हो गए हैं। इसी के चलते ये लोग ‘फ्रस्टेशन’ में हैं। ऐसे में ये कई तरीके से राजनीतिक स्यापा कर रहे हैं। जबकि, हकीकत यह है कि नीतीश कुमार ने गुजरात के कार्यक्रम में उस समय महज औपचारिक शिष्टाचार के नाते मुख्यमंत्री की सराहना की थी। इसके राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए। वे कहते हैं कि भाजपा के लोग कितना भी कुप्रचार करें? लेकिन, वे अपने दंगाई नेताओं की छवि को ठीक नहीं कर सकते।
दरअसल, पिछले दिनों नरेंद्र मोदी के बहुचर्चित मुद्दे पर दोनों दलों का गठबंधन टूट गया है। जबकि, 17 साल से जदयू और भाजपा के बीच मजबूत गठबंधन चला आ रहा था। एनडीए के अंदर भाजपा के बाद जदयू ही सबसे बड़ा घटक था। जदयू के प्रमुख शरद यादव एनडीए के संयोजक के रूप में कई सालों से काम करते आए। राजनीतिक रिश्ता टूटने के बाद दोनों दलों के नेताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ हुंकार तेज कर दी है। जदयू के प्रधान महासचिव के सी त्यागी कहते हैं कि विवादित नेता मोदी को चुनाव अभियान समिति की कमान सौंपकर भाजपा ने ही हमारे साथ विश्वासघात किया है। जबकि, हमारी पार्टी लगातार भाजपा को मोदी के संदर्भ में अगाह करती आई है। लेकिन, राजनीतिक बेईमानी करते हुए मोदी को एनडीए में थोपने की कोशिश की गई। इसलिए हमें मजबूरीवश एनडीए से बाहर आना पड़ा। इस फैसले से हमें कोई खुशी नहीं हुई, लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प ही नहीं बचा था।
पिछले दिनों गोवा में हुई कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा नेतृत्व ने मोदी को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाने का फैसला किया था। इसी फैसले को लेकर जदयू ने भाजपा से अलग होने का निर्णय लिया। दरअसल, मोदी को अगले चुनाव में ‘पीएम इन वेटिंग’ बनाने की तैयारी का यह शुरुआती चरण माना जा रहा है। मोदी के फैसले को लेकर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी नाराज रहे हैं। उन्होंने अपनी नाखुशी जताने के लिए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। आडवाणी की इस पहल से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में हड़कंप मच गया था। संघ प्रमुख मोहन भागवत के समझाने-बुझाने के बाद किसी तरह 36 घंटों बाद आडवाणी अपना इस्तीफा वापस लेने को राजी हो पाए थे। लेकिन, इस प्रकरण में उन्होंने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी। संकेत यही हैं कि वे मोदी प्रकरण में अभी तक नाखुश हैं।
इस विवादित प्रकरण के बाद पहली बार आडवाणी ने शुक्रवार को यहां एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के 61वें बलिदान दिवस के कार्यक्रम में उन्होंने परोक्ष रूप से मोदी प्रकरण में भाजपा नेतृत्व की रणनीति पर तीखा कटाक्ष भी कर डाला। उन्होंने इस अवसर पर अपनी कसक जताते हुए कहा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के दौर में गैर-कांग्रेस दलों को जोड़ने की मुहिम शुरू की थी। ताकि, सत्ता से कांग्रेस का वर्चस्व टूटे। ऐसे में, जोड़ने के बजाए गैर-कांग्रेसी दलों को और दूर करने की राजनीति श्यामा प्रसाद मुखर्जी की राजनीतिक सोच के भी खिलाफ है। यहां राजनीतिक हल्कों में चर्चा यही है कि भाजपा के ‘पितामह’ माने जाने वाले आडवाणी ने अभी तक मोदी की ‘ताजपोशी’ मन से स्वीकार नहीं की है। ऐेसे में, वे जहां-तहां अपनी भड़ास निकालने से नहीं चूक रहे। उल्लेखनीय है कि आडवाणी ने अपनी ‘मोदी कसक’ पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के सामने जाहिर की थी।
गोवा कार्यकारिणी के फैसले के बाद मोदी को जो नई ताकत मिली है, उससे उनके सिपहसालार काफी उत्साहित हो गए हैं। मोदी के खास करीबी माने जाने वाले पार्टी महासचिव अमित शाह को उत्तर प्रदेश के संगठन मामलों का प्रभारी बनाया गया है। शाह, तेजी से उत्तर प्रदेश भाजपा की राजनीति में अपनी पैठ बनाने में लगे हैं। उन्होंने इस तरह की रणनीति बनाई है, ताकि प्रदेश की भाजपा इकाई एक स्वर में मोदी का गुणगान करने लगे। पार्टी रणनीतिकारों को लग रहा है कि लोकसभा की 80 सीटों वाले प्रदेश में बगैर मजबूत पैठ बनाए, मोदी को पीएम बनाने का उनका हसीन सपना पूरा नहीं होगा। खुद नरेंद्र मोदी भी अब राष्ट्रीय राजनीति के सभी मुद्दों पर हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं। इन दिनों उत्तराखंड में ‘जल प्रलय’ की भयानक तबाही का मंजर है। देश के कई हिस्सों की तरह गुजरात के भी कुछ श्रद्धालु वहां फंस गए हैं। ऐसे में, मोदी ने अपनी हनक जताने के लिए उत्तराखंड का दौरा किया। इतना ही नहीं उन्होंने बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे उन स्थलों का भी हवाई सर्वेक्षण किया, जहां कि सबसे ज्यादा तबाही हुई है। इस दौरान उन्होंने मीडिया से अप्रत्यक्ष रूप से यही कहने की कोशिश की कि यदि उनके हाथ में देश की सत्ता होती, तो महज दो दिन के अंदर वे सभी फंसे हुए यात्रियों को निकलवा लेते।
राजस्थान में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद का ‘चेहरा’ वसुंधरा राजे को बनाया है। उन्हीं की अगुवाई में पार्टी विधानसभा का चुनाव लड़ने जा रही है। राजस्थान भाजपा की दिग्गज नेता वसुंधरा राजे पार्टी में आडवाणी खेमे की मानी जाती रही हैं। वे बात-बात पर उनकी तारीफ भी करती नजर आती थीं। लेकिन, पार्टी नेतृत्व के नए मिजाज को देखकर, वसुंधरा भी मोदी की जमकर सराहना करने लगी हैं। वे कई बार रणनीतिक मुद्दों पर मोदी से मंत्रणा भी कर आई हैं। समझा जाता है कि टीम मोदी बड़े नियोजित ढंग से देश की हर राज्य इकाई में अपना वर्चस्व कायम करने में लगी है। इस मुहिम को देखते हुए आडवाणी जैसे नेता अलग-थलग पड़ने लगे हैं। पार्टी में हवा का रुख देखकर आडवाणी के करीबी दूसरे दिग्गज भी मोदी का ‘गुणगान’ करते नजर आ रहे हैं। समझा जाता है कि जदयू के खिलाफ 29 जून से शुरू होने वाला अभियान, खासतौर पर टीम मोदी के कुछ सिपहसालारों ने तैयार किया है। ताकि, धुर मोदी विरोधी नेता को पलटवार का मजा चखाया जा सके। यह अलग बात है कि मोदी के सिपहसालार भाजपा की इस तैयारी को ज्यादा गंभीर नहीं मानते। वे कहते हैं कि दंगाई छवि वाले नेता भला, हमारी सेक्यूलर राजनीति पर ‘प्रमाण पत्र’ देने वाले कैसे बन सकते हैं?
लेखक वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं। इनसे संपर्क virendrasengarnoida@gmail.com के जरिए किया जा सकता है।