Rajiv Nayan Bahuguna : ढंग से समझ लीजिए . बादल फटने जैसी कोई चीज़ नहीं होती . एक ही जगह पर घनीभूत बारिश को लोग बादल फटना समझ बैठते हैं . इस तरह समुद्र तटीय क्षेत्रों में दिन में बीसियों बार बादल फटते हैं . जैसे गंजी खोपडी पर ओले की मार तगड़ी पड़ती है , वैसे ही वृक्ष और वनस्पति विहीन भूमि की नंगी त्वचा बारिश को नहीं झेल पाती और रपट जाती है . पत्थर और मिट्टी निकालने के लिए किये गए गड्ढे इसमें कोढ़ में खाज का काम करते हैं
उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से.