Mangalesh Dabral : गोवा में तरुण तेजपाल द्वारा एक अधीनस्थ पत्रकार का शारीरिक-मानसिक उत्पीडन करने की भीषण घटना और उसके साथ जुड़े हुए ताक़त के कुत्सित विमर्श की जितनी निंदा की जाए, सही है. और वह हो ही रही रही है. लेकिन इसके दो पहलू और हैं: एक यह कि मीडिया की मुख्यधारा के भीतर वैकल्पिक, दक्षिणपंथ विरोधी और नैतिक पत्रकारिता के प्रतीक बन चुके 'तहलका' के मुखिया का यह आचरण अपने समय की सचाई जानने की इच्छा रखने वाले लोगों के गहरे विश्वास के हनन का दुखद उदाहरण है.
और, दूसरा यह कि इसी के साथ उन शक्तियों की राजनीति भी खासी सक्रिय हो गयी है जिनका पर्दाफ़ाश इस पत्रिका ने अपने भेदी अभियानों के ज़रिये किया था. बंगारू लक्ष्मण का रिश्वत कांड, गुजरात के जनसंहार का ऐतिहासिक फ़ाश, आदि. यह अकारण नहीं है कि गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर बढ़-चढ़ कर बयान दे रहे हैं, जैसे कोई प्रतिशोध लेना चाहते हों. तेजपाल का व्यवहार जितना रुग्ण और भयानक था, यह मंज़र भी उससे कम खौफ़नाक नहीं.
जाने-माने पत्रकार और कवि मंडलेश डबराल के फेसबुक वॉल से.
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