: जैसे को तैसा- अमेरिका और यूरोप के आप्रवासन प्रक्रिया के संदर्भ में : जान स्मिथ ब्राज़ील का रहने वाला था. वो हर सप्ताह अमेरिका अपने बिज़नस के लिए आता जाता था. अक्टूबर 2001 में वो न्यूयार्क एयरपोर्ट पर उतरा और जब आप्रवासन प्रक्रिया के लिए काउंटर पर गया तो ऑफिसर ने उसे शूज, टाई, कैप, कोट उतारने को कहा उसने ये आदेश मानने से इंकार कर दिया, ऑफिसर ने उससे उसका पासपोर्ट ले कर वापस जाने का हुक्म दिया, जान स्मिथ अगली फ्लाइट से ब्राज़ील वापस आ गया.
ब्राज़ील पहुँचते ही उसने प्रेस कांफ्रेस बुलाई और पत्रकारों को ये पूरी कहानी सुना दी. प्रेस ने अगले दिन हंगामा मचा दिया. सरकार ने अमेरिकी राजदूत को बुला कर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी, लेकिन अमेरिकी हुकूमत ने इसे एक सामान्य प्रक्रिया ठहराया. ब्राजीली हुकूमत ने इस मामले को पार्लियामेंट में भेज दिया, पार्लियामेंट ने ये फैसला किया के आज के बाद जो भी अमेरिकी ब्राज़ील आयेगा उसकी भी विस्तार से तलाशी ली जायेगी. एक प्रस्ताव पारित कर कानून बना दिया गया और अगले ही दिन से इस पर अमल भी शुरू हो गया.
अमेरिकी हुकूमत ने इसे भेदभाव नीति बताया और अपना विरोध भी जताया मगर ब्राजीली हुकूमत ने इसका बड़ा ही खुबसूरत जवाब दिया के ये हमारी भी एक सामान्य प्रक्रिया है. इसलिए २००२ से २००६ तक ब्राज़ील दुनिया का पहला देश था जिसके एयरपोर्ट पर सिर्फ एक देश के नागरिकों की तलाशी होती थी और वो मुल्क था अमेरिका. इस के बाद ईरान में भी अगर कोई अमेरिकी नागरिक आता है तो उस की पूरी चेकिंग की जाती है, बल्कि अधिकारियों को हुक्म है कि बाकी सभी देश के लोगों को छोड़ा जा सकता है मगर अमेरिका के हर नागरिक की सख्त सिक्यूरिटी चेकिंग होनी चाहिये.
एक बार फिर हीथ्रो एयरपोर्ट पर योग गुरु बाबा रामदेव को सुरक्षा अधिकारियों ने तलाशी के नाम पर परेशान किया और उन्हें लगभग 8 घंटे तक रोके रखा. अमेरिका द्वारा भारत के लोगो का अपमान करने की ये पहली घटना नहीं है. इससे पहले देश के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, जार्ज फर्नांडिस, शाहरुख़ खान, आजम ख़ान और भी कई महत्वपूर्ण लोगों का अमेरिका में सिक्यूरिटी चेकिंग के नाम पर परेशान और अपमान किया जाता रहा है और हम सिर्फ दिखावे के लिए अपना एक मामूली विरोध जाता देते हैं.
भारत के विशिष्ट नागरिकों को अमेरिका में इस तरह तंग और अपमानित करने से पूरे विश्व में भारत की साख को भी धक्का पहुँचा है. अब हमें ये जान लेना चाहिए कि एक मामूली विरोध जताने से कुछ नहीं होगा. इसके लिए हमें ठोस कदम उठाने होंगे. हमें भी ब्राज़ील की तरह राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून पारित करना होगा वरना ये सामान्य प्रक्रिया आगे भी चलती रहेगी और हम लोग इसी तरह एयरपोर्ट पर अपमानित होते रहेंगे. सरकार को चाहिए कि अमेरिका और यूरोप के राजदूतों को बुलाये और उन्हें साफ साफ बता दे कि हमारे साथ अगर फिर ऐसा होता है तो हम अपने दौरे रद्द कर देंगे और आप के साथ अपने सभी राजनयिक सम्बन्ध भी समाप्त कर लेंगे.
इस व्यवहार के लिए हम स्वयं और हमारे राजनेता जिम्मेदार है. पता नहीं अमेरिका जाने का ऐसा क्या लोभ है कि हम अपमानित होने के बावजूद भी अमेरिका जाना चाहते हैं. शाहरुख़ खान को एक बार नहीं दो बार एयरपोर्ट पर अपमानित किया गया. फिल्म की शूटिंग कही भी हो सकती है. इसी तरह नरेंद्र मोदी को वीजा नहीं मिलता है तो इस पर भाजपा हंगामा मचाती है और इसके लिए नकली अमेरिकन प्रतिनिधि को बुला कर अमेरिका आने का निमंत्रण दिलाया जाता है. अमेरिका का एक मामूली ऑफिसर भी आता है तो हम स्वागत ऐसे करते है जैसे अमेरिका का राष्ट्रपति आया है आखिर ऐसा क्यों ?
इस क्यों का जवाब एक अमेरिकी कहावत में छुपा है. अमेरिकी कहावत है कि जिस बत्तख की चोंच नहीं होती है बच्चे उसके गले में रस्सी बांध देते हैं. मेरा ख्याल है वो समय आ गया है जब हमें अपनी चोंच बाहर निकालनी होगी, अगर हमने ऐसा नहीं किया तो अमेरिकी बच्चे हमारे गले में रस्सी बांधेंगे और हमें गली गली घसीटना शुरू कर देंगे.
लेखक अफ़ज़ल ख़ान का जन्म समस्तीपुर, बिहार में हुआ. वर्ष 2000 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई कंप्लीट की. इन दिनों दुबई की एक कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत हैं. 2005 से एक उर्दू साहित्यिक पत्रिका 'कसौटी जदीद' का संपादन कर रहे हैं. संपर्क: 00971-55-9909671 और [email protected] के जरिए.
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