हिन्दी में दलित साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मशहूर साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि का आज सुबह आठ बजे निधन हो गया. ओम प्रकाश वाल्मीकि पेट के कैंसर से पीड़ित थे जिसके चलते वे बहुत कमजोर चल रहे थे. उन्हें दस पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वे 63 वर्ष के थे.
ओम प्रकाश वाल्मीकि का जन्म 30 जून 1950 को उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के बरला गांव में एक दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने गांव तथा देहरादून में शिक्षा प्राप्त की. उनको बचपन तथा युवावस्था में दलित होने के कारण अत्यधिक सामाजिक और आर्थिक कष्ट झेलने पड़े जिससे उनके साहित्य में दलित चिंतन मुखर हुआ और उन्हें दलितों के उत्थान के लिए काम करने को प्रेरित किया.
वाल्मीकि का मानना था कि दलितों के द्वारा लिखा जाने साहित्य ही केवल दलित साहित्य है क्यूंकि दलित की पीड़ा को केवल दलित ही समझ सकता है. उनकी आत्मकथा 'जूठन' (1997) साहित्य जगत में बहुत चर्चित हुई थी तथा इसे दलित साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. इसमें उन्होंने अपने साथ हर स्तर पर हो रहे भेदभाव का व्यापक वर्णन कर दलित एवं वंचित वर्ग की समस्याओं पर गंभीर बहस खड़ी की.
उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन तथा नाटक भी लिखे हैं. 'जूठन' के अतिरिक्त सदियों का संताप, सफाई देवता, अब और नहीं (कविता संग्रह), सलाम, घुसपैठिए (कहानी संग्रह), दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र (आलोचना) उनकी प्रमुख रचनायें हैं.
उन्हें साहित्य तथा दलित समाज के लिए किये गये कार्यों के लिए अम्बेडकर राष्ट्रीय सम्मान, परिवेश सम्मान तथा साहित्य भूषण सम्मान दिया गया था. वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फैक्टरी में अधिकारी के तौर पर काम करते हुए सेवानिवृत्त होकर देहरादून में ही रह रहे थे.