दिल्ली में रेप हो तो देश उबलता है, देश में रेप हो तो दिल्ली नहीं उबलती। उबलती तो रेप की यह रफ़्तार नहीं होती जो है। मीडिया और राजनीति दोनों का दोमुंहापन देश को और तमाम औरतों को मुंह चिढाता है। 23 मई को रांची के हरमू रोड पर 45 साल की गरीब औरत गैंगरेप का शिकार हुई। शराब की फूटी बोतल से घायल की गई। अगली सुबह दस बजे तक कराहती रही। भीड़ देखती रही। एक बच्ची की पहल पर अस्पताल ले जाई गई। मर गई। रांची दो दिन सुगबुगाई फिर सो गई। चैनल एलेवेन के मालिक अरूप चटर्जी ने डेस्ककर्मी ज़फर साहब को हुकुम दिया कि रेप की वह खबर नहीं चलेगी। एसएसपी पुलिस की छवि बिगड़ने से नाराज़ थे।
अरूप नान बैंकिंग कंपनी चलाते हैं. चेक बाउन्स के वारंट भी आते हैं. पुलिस और मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को नाराज नहीं कर सकते।
रेप की शिकार उस महिला के घर से लौट कर मैं रिपोर्ट लिख रहा था। जब ज़फर ने अरूप का आदेश दुहराया तो बेबस गुस्से से स्क्रिप्ट डेस्क पर फेंक कर मैं ऑफिस से निकल गया। मालिक के हुकुम के आगे चैनल हेड का हुकुम नहीं चलता। आखिर क्या मतलब है ऐसी पत्रकारिता और ऐसे चैनल हेड होने का जब आप रेप-हत्या की शिकार औरत की कथा भी न कह सकें? मामला भड़ास में छप गया तब अरूप ने मुझे फोन करके कहा कि मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा है। आप ऑफिस आइये, खबर चलाइये।
दो दिन बाद अरूप लौटे, मीटिंग में बोले आपकी पत्रकारिता जग गई तो आप चल दिए लेकिन मुझे चैनल स्टाफ के वेतन का भी इंतजाम करना होता है। आपकी पत्रकारिता पर मेरा मालिकत्व जग गया तब क्या होगा?
लेकिन अरूप का मालिकत्व तो हमेशा ही जगा था। ईमान कभी जगा हो – यह पता नहीं। ईमान जगा हो तो कोई स्ट्रिंगर चैनल का मालिक नहीं बनता।
खैर, रांची की जुझारू पत्रकारिता, बहादुर पुलिस, गरीब परवर मुख्यमंत्री, स्टाफ की कमी से दुखी महिला आयोग, झारखण्ड के तमाम आदिवासी नेता हरमू रेप काण्ड की शिकार उस महिला को भूल गए। भूल गए की झारखण्ड के दस वर्षों में 8000 औरतें रेप का रिकार्डेड शिकार हुईं लेकिन दिल्ली में रेप लोमहर्षक लगता है, उस पर चिल्लाना आकर्षक लगता है। झारखण्ड में कौन देखेगा?
लेकिन खुरपी के बियाह में मैं हंसुए का गीत क्यों गा रहा हूँ?
अकल कभी नहीं आएगी।
लेखक गुंजन सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 09334145455 के जरिए किया जा सकता है.