लखनऊ। तेजतर्रार माने जाने वाले आइपीएस अधिकारी सुभाष चंद्र दुबे का शासन ने दो महीने में सात बार तबादला किया। इस दौरान इलाहाबाद में उनकी तैनाती को लेकर शासन को मतभेद का भी शिकार होना पड़ा। सुभाष चंद्र दुबे को गोरखपुर, आगरा व इलाहाबाद में एसएसपी के पद पर तैनाती मिली। इसमें से इलाहाबाद में तो वह कार्यभार भी नहीं ग्रहण कर सके। इस दौरान वह डीजीपी कार्यालय से सम्बद्घ रहे और फिर इसके बाद उनको मुजफ्फरनगर भेजा गया। जहां पर उनको दंगों के नियंत्रण में अक्षम मानकर निलंबित कर दिया गया।
इलाहाबाद में उनकी तैनाती को लेकर शासन में मतभेद भी हुए और बिना कार्यभार संभाले, उन्हें वापस डीजीपी मुख्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया। फिलहाल सुभाष चंद दुबे के निलंबन पर आइपीएस एसोसिएशन चुप्पी साधे है और अधिकृत तौर पर बोलने को कोई तैयार नहीं है, लेकिन भीतर काफी आक्रोश है। खासतौर पर नये आइपीएस का तेवर तल्ख है और वह अपने एसोसिएशन को जल्द बैठक बुलाने पर जोर दे रहे हैं।
उधर, शासन की ओर से फरमान जारी किया गया कि जिन जिलों में दंगा फसाद होंगे, उसके लिए संबंधित जिलाधिकारी व एसएसपी जिम्मेदार होंगे। इसके बावजूद सूबे के कई जिलों में सांप्रदायिक तनाव फैले और अधिकांश जगह कार्रवाई नहीं हुई। बीते वर्ष प्रतापगढ़ के आस्थान गांव में सांप्रदायिक बवाल के बाद तत्कालीन जिलाधिकारी वाइके बहल व एसपी ओपी सागर निलंबित किये गये थे। उसके पहले मथुरा के कोसीकलां में दंगा होने पर वहां के डीएम संजय कुमार और एसपी धर्मवीर का तबादला कर दिया गया। फैजाबाद के दंगे में एएसपी समेत छोटे अफसर निलंबित किये गये, जबकि अंबेडकरनगर में तनाव बढ़ने पर एसपी डीपी श्रीवास्तव को निलंबित किया गया। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद तत्कालीन डीआइजी सहारनपुर डीडी मिश्रा, एसएसपी सुभाष चंद दुबे और एसपी शामिल अब्दुल हामिद को हटाया गया, लेकिन बाकी जिम्मेदार पर कार्रवाई नहीं हुई।
साभार- दैनिक जागरण