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नईदुनिया से छजलानी परिवार बाहर

 

नईदुनिया का पर्याय बन चुका छजलानी परिवार अब अपनी पहचान पूरी तरह खो चुका है २ अगस्त से नईदुनिया कि प्रिंट लाइन से विनय छजलानी का नाम हट गया। इस नाम के हटने के साथ ही हिंदी पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया। करीब ६५ साल से नईदुनिया से जुड़ा छजलानी परिवार अब अखबारी पत्रकारिता से पूरी तरह बाहर हो गया। ५ जून १९४६ को पहली बार प्रकाशित हुए इस अखबार को छजलानी परिवार के बाबू लाभचंद छजलानी ने अपने दो साथियों बसंतीलाल सेठिया और नरेन्द्र तिवारी के साथ निकाला था। 

 

नईदुनिया का पर्याय बन चुका छजलानी परिवार अब अपनी पहचान पूरी तरह खो चुका है २ अगस्त से नईदुनिया कि प्रिंट लाइन से विनय छजलानी का नाम हट गया। इस नाम के हटने के साथ ही हिंदी पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय समाप्त हो गया। करीब ६५ साल से नईदुनिया से जुड़ा छजलानी परिवार अब अखबारी पत्रकारिता से पूरी तरह बाहर हो गया। ५ जून १९४६ को पहली बार प्रकाशित हुए इस अखबार को छजलानी परिवार के बाबू लाभचंद छजलानी ने अपने दो साथियों बसंतीलाल सेठिया और नरेन्द्र तिवारी के साथ निकाला था। 
 
बाबू लाभचंद छजलानी के बाद अभय छजलानी इससे जुड़े। १९८८ मे नरेन्द्र तिवारी इस टीम से बाहर हो गए, लेकिन, बसंतीलाल सेठिया और उनके बेटे महेंद्र सेठिया ने अभय छजलानी का साथ दिया। बसंतीलाल जी के निधन के बाद अभय छजलानी इसके सर्वेसर्वा बने और अखबार को हिंदी पत्रकारिता मे स्थापित किया। २००६ मे अभय छजलानी के बेटे विनय छजलानी ने अपने पिता अभय छजलानी और महेंद्र सेठिया को किनारे करके नईदुनिया की लगाम थामी और इसे पटरी पर लाने की कोशिश की, लेकिन बात बनी नहीं। क्योंकि उन्हें न तो पत्रकारिता आती थी और उनके सलाहकार ही इस तरह के थे।
 
इसका नतीजा ये हुआ कि नईदुनिया के कई संस्करण निकालने के बाद भी ६० साल पुराना अखबार डगमगाने लगा। हालात बिगड़ते देख नईदुनिया को इस साल जागरण को बेच दिया गया। १ अप्रैल से इसका संचालन जागरण करने लगा और श्रवण गर्ग इसके प्रधान संपादक बन गए। इस पर भी तकनीकि कारणों से मुद्रक और प्रकाशक के तौर पर विनय छजलानी का नाम जाता रहा, जो २ अगस्त से हट गया है। अब यदि छजलानी परिवार का नाम नईदुनिया में कहीं है तो वो अखबार के पते में (बाबू लाभचंद छजलानी मार्ग), जो कि ज्यादा दिन शायद नहीं रहे। क्योंकि, नईदुनिया का दफ्तर भी जल्द यहाँ से खाली हो जाएगा।    
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