अपने साथी महिला पत्रकार के साथ यौन प्रकरण में फंसे तहलका के एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल के खिलाफ मीडिया खासकर न्यूज चैनलों पर तीखी बहस चल रही है। तरुण ने जो किया, उसके लिए निश्चित रुप से उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। इस बाबत कानून भी अपना काम कर रहा है। हालांकि, इसकी आड़ में तहलका पत्रिका पर निशाना साधना समझ से परे है। तहलका ने पिछले एक दशक में जो महत्वपूर्ण खुलासे किए, वह भारतीय पत्रकारिता के लिए एक मिसाल है, अगर इसे कोई नकारता है, तो यह तकलीफदेह है।
तरुण तेजपाल प्रकरण के बाद आईबीएन 7 पर आशुतोष हों या एनडीटीवी पर रवीश कुमार या जी न्यूज पर सुधीर चौधरी या अन्य चैनलों के महान पत्रकार, इन सभी लोगों ने तरुण की आड़ में तहलका पत्रिका का छिद्रान्वेषण करना शुरू कर दिया है। उसके सरोकारी पत्रकारिता पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं, जो शर्मनाक है।
इसी साल अगस्त महीने में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ओडिशा के रायगढ़ा जिले स्थित नियमगिरि की पहाड़ियों पर अनिल अग्रवाल की कंपनी वेदांता को बॉक्साइट खनन की अनुमति मिले या नहीं इस बाबत पहाड़ों पर बसे डोंगरिया कोंध आदिवासियों के बारह गांवों में पल्ली सभाओं का आयोजन किया गया था। इन सभी पल्ली सभाओं में ग्रामीणों ने एक सुर में नियमगिरि पर खनन करने की किसी योजना को सिरे से खारिज कर दिया। यह वेदांता और ओडिशा सरकार के लिए बड़ी हार थी, लेकिन आशुतोष, रवीश कुमार और सुधीर चौधरी जैसे संवेदनशील पत्रकारों ने नियमगिरि में वेदांता की हार और आदिवासियों की जीत पर कोई कार्यक्रम अपने चैनलों पर नहीं चलाया। हर बात डंके की चोट पर कहने वाले आशुतोष और बहस करने वाले रवीश कुमार के मुंह से कोई भाप तक नहीं निकला। शायद निकलेगा भी नहीं, क्योंकि वेदांता की हार कॉरपोरेट घरानों की हार थी, लिहाजा ये महान पत्रकार भी ठहरे उनके चारण. अब आप ही समझिए इनकी नैतिकता और इनकी इमानदारी
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित