बदायूं में पत्रकारों की बाढ़ आ गई है. अमर उजाला, दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान ने ही गाँव-गाँव पत्रकार बना रखे हैं, साथ ही लखनऊ, दिल्ली, आगरा, मुरादाबाद के साथ आसपास के जनपदों से प्रकाशित तमाम अखबारों की दस-दस प्रतियों की एजेंसी लेकर लोग खुद को ब्यूरो चीफ लिख रहे हैं. गाड़ियों पर वरिष्ठ पत्रकार और ब्यूरो चीफ लिखने के साथ चमचमाते विजिटिंग कार्ड और लेटर पेड यूज कर ऐसे कथित पत्रकार रौब ग़ालिब करते कहीं भी दिख जायेंगे.
इतना सब ही होता, तो भी ठीक था, यह कथित पत्रकार सड़क निर्माण, मनरेगा के कार्य, राशन की दुकानें, आँगनबाड़ी केंद्र और प्राथमिक विद्यालयों में मिड डे मील निरिक्षण करने सुबह ही निकल पड़ते हैं, हर निरिक्षण में सौ-दो सौ, पांच सौ मिल ही जाते हैं, सो शाम तक अच्छी मजदूरी हो जाती है. इसके अलावा शाम तक एक-दो मुर्गा खाने-पिलाने वाला भी फांस लेते हैं, जिससे जेब के साथ घर पेट भर कर ही पहुँचते हैं. ऐसे तीस-चालीस पत्रकार हैं, जिन्हों ने तीन-चार टोलियाँ बना रखी हैं और शाम को ही चार्ट तैयार कर लेते हैं कि सुबह को कौन सी टोली किधर जायेगी. यह सब लगभग एक-दो वर्षों से चल रहा है, सब कुछ आसानी से हो जाता है, क्योंकि सरकारी तन्त्र में चोर भरे ही पड़े हैं, इसलिए पत्रकारिता के नाम पर लूटने में कठिनाई नहीं होती.
इस सब से इन कथित पत्रकारों का दुस्साहस बढ़ता ही जा रहा है, सो आज एक यदुवंशी से पाला पड़ गया. बदायूं के मोहल्ला नेकपुर में ट्यूशन पड़ा रहे एक यादव टीचर का निरीक्षण करने पहुँच गये. यादव टीचर ने दोनों कथित पत्रकारों की लात-घूंसों और जूतों से ऎसी मार लगाईं कि दोनों कथित पत्रकार हाय-हाय कर उठे. पूरे मोहल्ले ने मार का आनंद लिया. दोनों पत्रकारों ने भविष्य में कुकर्म न करने की कसम खाई, तब मास्साब ने दोनों को छोड़ दिया. घटना पूरे शहर में चर्चा का विषय बनी हुई है.