नाबालिग लडकी के यौन शोषण के आरोप में जोधपुर सेंट्रल जेल में पश्चाताप साधना कर रहे आसाराम ने अपने चोला बदल के शुरूआती दिनों में नैनीताल के स्वामी लीला शाह आश्रम में ध्यान -साधना की थी। आज से करीब तिरेपन -चौवन साल पहले 1959-60 के आसपास आसाराम का नैनीताल के स्वामी लीला शाह आश्रम में आना शुरू हुआ था। वह आसूमल के आसाराम में बदलने का शुरूआती दौर था। तब आसूमल उर्फ़ आसाराम का हर साल गर्मियों का तकरीबन एक महीना स्वामी लीला शाह के नैनीताल के आश्रम में ही गुजरता था।
इस दौरान वे आश्रम में मौजूद सुरई के पेड़ के नीचे आसन लगा साधना किया करते थे। कभी-कभार उनका स्वामी लीला शाह के एक भक्त वीरभान सागर के साथ कुश्ती अखाडा भी लगता था। आसाराम का गर्मियों में एक महीने के लिए नैनीताल आने का यह दौर करीब सात-आठ साल तक चला। पर आसूमल उर्फ़ आसाराम के रहन-सहन, खान-पान, चटकीले पहनावे और उनकी रुचियों को लेकर स्वामी लीला शाह की नापसंदगी के चलते कुछ सालों बाद उनका नैनीताल आना बंद हो गया था।
नैनीताल से करीब चार किलोमीटर दूर हनुमानगढ़ी मंदिर के पास बेहद खूबसूरत पहाड़ी चोटी में जाने-माने सिंधी संत स्वामी लीला शाह का आश्रम है। स्वामी लीला शाह ने हनुमानगढ़ मंदिर बनने से बहुत पहले 1940 के दशक में यह आश्रम बनाया था। स्वामी लीला शाह गर्मियों में करीब तीन महीने इसी आश्रम में रह कर योग साधना किया करते थे। 1959-60 में स्वामी लीला शाह में दूसरे भक्तों के साथ आसाराम का भी इस आश्रम आने का सिलसिला शुरू हुआ। कई दशकों तक स्वामी लीला शाह आश्रम के प्रबन्धक रहे गणेश दत्त भट्ट के मुताबिक स्वामी लीला शाह तपस्वी संत थे। उन्हें दिखावे से कोसों दूर एकांत में योग और साधना करना पसंद था। वे आडम्बर से बहुत दूर रहते थे। स्वामी लीला शाह किसी से और खासकर महिलाओं से अपने चरण स्पर्श करना भी पसंद नहीं करते थे। यहाँ तक कि आश्रम परिसर में महिलाओं का रात्रि विश्राम भी वर्जित था। गणेश दत्त भट्ट बताते हैं कि स्वामी लीला शाह स्वयं बारह आना मीटर कीमत का गाडा पहनते थे और बोरे में ही आसन लगाते थे। जबकि आसूमल से आसाराम बनने के जुगत में लगे आसाराम को राजशी पहनावा और खान-पान प्रिय था। स्वामी लीला शाह को आसाराम की यह रुचियाँ, आदतें और चाहत नहीं भाती थीं। लिहाजा स्वामी लीला शाह को आसाराम सुहाते नहीं थे। स्वामी लीला शाह 4 नवंबर 1973 को आदिपुर कच्छ, गुजरात स्थित अपने मूल आश्रम गांधीधाम में पंचतत्व में विलीन हो गए। उसके बाद कई मौकों पर आसाराम ने अपने को स्वामी लीला शाह का शिष्य बताया। जबकि गणेश दत्त भट्ट का कहना है स्वामी लीला शाह के भक्तों की तादात करोड़ों में थी और आज भी उनके असंख्य साधक हैं। पर उन्होंने अपने जीवनकाल में किसी को भी शिष्य का दर्जा नहीं दिया।
1959-60 के दौर में आसाराम को साधना के साथ कुश्ती लड़ना बेहद पसंद था। उनका स्वभाव शुरू से ही पहलवानों सा था। स्वामी लीला शाह आश्रम के करीब रहने वाले महेश भट्ट के मुताबिक लीला शाह आश्रम में स्वामी लीला शाह के एक भक्त वीरभान सागर के साथ अक्सर आसाराम कुश्ती लड़ा करते थे। चूँकि तब आसाराम एक बेहद हट्टी-कट्टी और मजबूत काया के मालिक थे। लिहाजा कुश्ती का हर दांव आसाराम के हक में ही जाता था। जब आसूमल की आसाराम के रूप में देश-विदेश में पहचान कायम हो गई। आध्यात्मिक और धर्म गुरु के रूप में उनका सिक्का दौड़ने लगा। आसाराम ने देश में सैकड़ों आश्रम और दर्जनों गुरुकुल बना लिए। इसके वावजूद वे नैनीताल के स्वामी लीला शाह आश्रम को भुला न सके। वे अक्सर अपने पुराने जान-पहचान वालों से नैनीताल स्थित स्वामी लीला शाह आश्रम की खैरियत पूछा करते थे। जून 1999 में आसाराम के भक्तों ने नैनीताल संकीर्तन यात्रा निकाली। इस यात्रा में हिस्सा लेने आए उनके ज्यादातर अनुयायी स्वामी लीला शाह आश्रम में टिके। देश भर में कई जगहों में सरकारी-गैर सरकारी जमीनों में अवैध कब्जों के लिए मशहूर आसाराम के भक्तों की नीयत यहाँ भी डोल गई। आसाराम के साधकों ने नैनीताल के स्वामी लीला शाह आश्रम में जबरन कब्जा जमाने की कोशिशें की। आसाराम के साधकों की इन करतूतों के खिलाफ स्वामी लीला शाह आश्रम ट्रस्ट को पुलिस में शिकायत दर्ज करानी पड़ी। पुलिस के आला अधिकारियों के प्रभावी हस्तक्षेप के चलते आसाराम के भक्तों को निराश होना पड़ा था। नतीजन आध्यात्मिक गुरु आसाराम की बेशुमार सम्पतियों की लिस्ट में स्वामी लीला शाह आश्रम, नैनीताल नाम की यह सम्पत्ति जुड़ने से बच गई।
लेखक प्रयाग पाण्डे उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं.